Book Title: Hum Aarya Hain
Author(s): Bhadrasen Acharya
Publisher: Jalimsinh Kothari

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Page 15
________________ [ १० ] अपने प्यारे वैदिक धर्म पर छोटे से छोटे संकट के आ पड़ने पर भी हम तो क्या हमारे बड़े-बड़े नेता भी उसके दूर करने में घबराने लगे। हम स्वयं पन्द्रह लाख होते हुए भी अपने संकट को दूर करने के लिये दूसरों का मुंह ताकने लगे। जहाँ पहले बड़ी से बड़ी शक्ति भी हम से भयभीत हो जाया करती थी, वहाँ छोटी से छोटी ताक़त भी हमको भयभीत करने लगी। भला इससे बढ़कर अपने अन्दर हिन्दूपन लाने और अपने का हिन्दू कहने का और अधिक भयंकर परिणाम क्या होगा ? आज पढ़े लिखे सनातनी विद्वान अपने को "आर्य” कहने लग पड़े हैं। जर्मनी का प्रसिद्ध नेता हर हिटलर स्वयं ईसाई होता हुआ भी अपनी प्रजा तथा अपने को आर्य कहने में ही अपनी जाति का गौरव समझता है, किन्तु हम हैं कि स्वयं "आर्य” होते हुए भी आर्य नाम को छोड़ अपने को हिन्दु कहते जा रहे हैं। और यहां तक हिन्दु शब्द से प्रेम होता जा रहा है कि जब तक हम अपने लेखों में आर्य शब्द के पीछे कोष्ठ में (हिन्दू) न लिखें तब तक हमें अपना लेख शोभा ही नहीं देता। यदि हमारी ऐसी ही अवस्था रही तो पहले तो हम विशुद्ध आर्य थे और अब बने हर आर्य (हिन्दू)। और कोई समय आयगा कि हम केवल संकुचित दायरे में बन्द (हिन्दू) ही रह जायेंगे। ___ हमने अपने को हिन्दू कहकर जहां अपना ह्रास किया है, वहां वैदिक धर्म प्रचार को भी भारी धक्का पहुंचाया है। हम जब अपने को आर्य कहते थे, और किरानी, कुरानी, पुरानी तथा जैनी आदि सम्प्रदायों से सर्वथा पृथक् विशुद्ध वैदिक धर्मी ही अपने को बताते थे। जब आर्य सभ्यता, आर्य-धर्म तथा आर्य

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