Book Title: Hum Aarya Hain
Author(s): Bhadrasen Acharya
Publisher: Jalimsinh Kothari

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Page 13
________________ [ ८ ] हैं कि अपने इन पूज्य नेताओं की श्राशाओं को भी भंग करके स्वयं "आर्य" होते हुए भी अपने को हिन्दू ही कहते जा रहे हैं । कहां तो हमारा कर्तव्य था कि हम "कुण्वन्तो विश्वमार्यम” भगवान् वेद की इस आज्ञानुसार हिन्दु आदि सब सम्प्रदायों को भी आर्य बनाते, और कहां हम भी अपने को हिन्दू कहने लग पड़े है । और " यथा नाम तथा गुणः " इस कहावत के अनुसार अपने अन्दर भी वही अवैदिक हिन्दुपन लाते जा रहे हैं । हम आर्यत्व से यहां तक गिर चुके हैं कि मर्दुम शुमारी में भी अपने को "आर्य" लिखाना पसंद नहीं करते। अपने को हिन्दु लिखाया जाय या आर्य इस बात का भी विचार करने के लिये प्रादेशिक प्रतिनिधि सभाको अधिवेशन बुलाना पड़ता है। और उसमें भी बड़े जोरों के वाद-विवाद के पश्चात् कहीं जाकर अपने को आर्य लिखाने का निश्चय होता है । वह भी सर्व सम्मति से नहीं । आर्य बन्धुओं ! जरा अपने हृदयों पर हाथ रख कर सोचो कि इस सम्बन्ध में हमारा कितना अधःपतन हो चुका है । मुसलमान, ईसाई बौद्ध आदि मतों को प्रचलित हुए सदियं बीत गई किन्तु उन्होंने अभी तक अपने असली नाम का परिवर्तन नहीं किया, किन्तु हम पचास वर्षों में ही अपने असली नाम को तिलाञ्जलि देने जा रहे हैं। यदि भविष्य में हमारी यही अवस्था रही तो जैसे भगवान् दयानन्द के श्राने से पूर्व आर्य सभ्यता तथा आर्य नाम का सर्वथा लोप ही हो गया था, उसी प्रकार भविष्य में भी पवित्र आर्य सभ्यता आर्य नाम तथा आर्यत्व का नाम शेप ही रह जायगा । और ——

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