________________
[ ६ ] हिन्दुओं का एक फिरका मानने लग पड़ा है । और उसके नेता तथा सम्पादक बड़े गर्व में यह लिखते तथा कहते हैं कि 'आर्यसमाज ने कभी भी अपने को हिन्दुओं से अलग नहीं कहा।' जहां पहिले हमारे विद्वान हम हिन्दू नहीं इस विषय पर दूसरों से शास्त्रार्थ किया करते थे। वहां आज वे ही विद्वान् हिन्दू शब्द को ठीक सिद्ध करने के लिये बड़े २ लेख लिम्ब रहे है भला इससे बढ़कर और शोक की बात क्या होगी।
हम जहां अपने को हिन्दू कह कर अपने आर्यत्व के नाश का कारण बन रहे हैं, वहां ऋषि दयानन्द के साथ भी विश्वासघात तथा अन्याय कर रहे हैं । एक आर्य प्रतिनिधि सभा के मुख्य पत्र में सम्पादकीय लेख के स्थान पर एक आर्य महाशय का लेख है, वे अपने लेख में म्वामीजी से पहिले की अवस्था का वर्णन करते हुए लिखते हैं-'थोड़े ही समय में एक बड़े पैमाने पर हिन्दुत्व का ह्रास हो गया था।' फिर आगे चलकर श्राप लिखते हैं-'यदि महर्षि दयानन्द जैसे महापुरुप हमारे पथ-प्रदर्शक न होते तो हम, हमारा हिन्दुपन और हमारा हिन्दास्तान कहां होता ?' आर्य-पुरुषों! सोचो और विचार करो कि हम इस सम्बन्ध में कितने गिर चुके हैं ? और स्वयं गिर कर भगवान दयानन्द के साथ भी कितना घोर अन्याय कर रहे हैं। वह दयानन्द कि जिसने इस दीन-हीन तथा मलीन हिन्दू-सभ्यता तथा हिन्दू-पन को नष्ट कर विशुद्ध आर्य-सभ्यता तथा आर्य-धर्म की स्थापना की । अब हम उनके ही अनुयायी उसी दयानन्द को हिन्दुत्व तथा हिन्दुपन का प्रचारक बता रहे हैं । कितने