Book Title: Hemchandracharya mate Pravarteli Bhramanao ane tenu Nirasan Author(s): Shilchandrasuri Publisher: ZZ_Anusandhan View full book textPage 4
________________ फेब्रुआरी २०११ आखिर हेमचन्द्राचार्य खुद एक पथ्थर की बनी हुई चोकी, जिसको कठेहरा लगा हुआ था, और कठेहरेमें हीरे वगेरा जवाहर लगे हुए थे, इस चौकी पर बैठकर अध्वर हवामें उड कर आया । हझरतकी हुझुरमैं आ कर कहने लगा- 'अय झिन्दह, यहांसे चले जाओ' । ह.जमालुद्दीन (क.सि.)ने चाहा कि एक तमाचा-चमाट उस मुझीको लगा दें । लेकीन यकायक वो जती चोकी पर बैठे उपर आसमान की तरफ उडा । जती के सब चेले बहोत खुश हुए, ओर खुशीमें तालीया बजा कर केहने लगे, हमारा गुरु तो गया, कहांसे तमाचा मारोगे ?। हझरत जो बैठे हुए थे, अपने दोनों जुते पकड कर उपर पेंके, वो चोकी जती के साथ उलट गी, गिरी और झमीन में गर्क हो गी । ह. मखदूम (क.सि.) के आस्ताने के करीब, सुबेदार जाफरखान की कबर के नजदीक काली स्याह पथ्थर की चोकीका निशान अब भी हय । उस जती हेमचन्द्राचार्य के तमाम चेले अपने सरों पर खाक डाल कर, अपने राजा कुमारपाल के पास फरियाद करने गये । राजा एक बडा लश्कर लेकर आया और मस्जीद को घेर लीया । सब आदमी और उनके घोडों के पांव, लकडी और पथ्थर के मानिंद, खुश्क हो गये । जब हझरत दुबारा इस्तिजाके लीये आए, राजा की तरफ निगाह करके उसको अपने पास बुलाया के केह "ला इलाहा इल लल्लाह, मुहम्मदुर्रसुलुल्लाह" । उस राजानाने कलमा पढा । दुसरे कुछ लोग जो राजा के साथ थे, जिनकी किस्मत में इस्लाम था, उन्होंने भी कलमा पढा । ओर मुशर्रफ बइस्लाम हुए । दुसरों को कहा जाव, जहां खुदा तुम्हें ले जाए । बाकी सब चले गए । (ये अहवाल कलमी फारसी बयाझ का तरजुमा है ।"१ (पृ. ८-९) आ लखाणमां जणाता देखीता विसंवादो जोईए : १. आचार्यने ४०० शिष्यो हता ज नहि. २. जैन मुनि अधरस्ते आहार भरेली झोळी उघाडे के जुए ज नहि. ३. मस्जिदनी रांगे जैन मुनि कदी ऊभा न रहे. ४. पत्थर के तेवो कोई पदार्थ पडे तो साधु झोळी फेंके नहि; पण १. पुस्तक उर्दू भाषामां पण गुजराती लिपिमां छे. ते लखाण अहीं नागरीमां ऊतारेल छे.Page Navigation
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