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हेमचन्द्राचार्य माटे प्रवर्तेली भ्रमणाओ अने तेनुं निरसन
- विजयशीलचन्द्रसूरि
श्रीहेमचन्द्राचार्य विषे घj घणुं लखायुं छे. समयना विविध तबक्के लखायुं छे, तेम विविध भाषामां पण लखायुं छे. ए एक एवं व्यक्तित्व छे के जेमना विषे सतत कांइ ने कांइ जाणवानुं गमे. अने जेम जेम एमना जीवननां पानां उथलावतां रहीए, एमना समयना इतिहासने फेरवतां रहीए, एमणे रचेला ग्रन्थोने तेमज ते उपर निर्माएला साहित्यने अवलोकतां रहीए, तेम तेम काइक नवू ज ज्ञातव्य प्राप्त थतुं रहे छे. फलतः तेमना प्रत्ये- आकर्षण, घटवाने बदले, वधतुं ज रहे छे.
तेमना जीवननी वातो लगभग जाणीती छे, एटले ते विषे अहीं कांइ लखवानुं नथी. परन्तु तेमना विषे केटलीक भ्रान्तिओ तेमज भ्रान्तिजनक वातो थती आवी छे, ते अंगे विचारणा करवानो अहीं उपक्रम छे.
__ घणीवार एवो अनुभव थाय छे के इतिहास, महान व्यक्तिओने अन्याय करतो होय छे. आ विधानने हेमचन्द्राचार्यना सन्दर्भमां तपासीए तो, तेमणे तेमना जीवनकाल दरमियान शैवो अने ब्राह्मणो वगेरे, जैनोने नास्तिक माननाराओ साथे, ओछो संघर्ष नथी करवो पड्यो. अकबर-बीरबलनी कथाओमां जेम बीरबलने अन्योनी अदेखाईना भोग बनवू पडतुं, पण ते पोतानी चतुराईथी मार्ग काढीने सौने भोंठा पाडतो, लगभग तेवी ज स्थिति, पण ते काल्पनिक नहि, परन्तु वास्तविक, हेमचन्द्राचार्यनी जोवा मळे छे. पोतानी प्रचण्ड बौद्धिक क्षमता, सत्त्व अने वीतरागी निःस्पृहताथी छलकाती उदारताने बळे तेओ दरेक प्रसङ्गे पोतानी सर्वोपरिता स्थापी शकता अने तेथी बीजा-ईर्ष्यालु जनोए चाट पडवू पडतुं, ए अलग वात; परन्तु तेमणे सतत संघर्षरत तो रहेQ ज पडतुं, एम तेमना जीवन-प्रसङ्गो जोतां जाणी शकाय छे.
अने आ स्थिति फक्त तेमनी विद्यमानतामां ज सर्जाती एवं नथी. तेमना मृत्यु बाद पण तेमने अन्याय करे तेवी अनेक घटनाओ बनी छे. अहीं एवी
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घटनाओ- अवलोकन करवू छे. अलबत्त, आ अवलोकननी पाछळ कोइर्नु खण्डन करवानी के विरोध-विवाद सर्जवानी दृष्टि नथी; मात्र इतिहासबोधनी ज दृष्टि छे.
(१) हेमखाड
__ हेमचन्द्राचार्यनो देहान्त पाटणमां सं. १२२९ मां थयो हतो. तेमना देहनो जे स्थळे अन्तिम संस्कार थयो, ते स्थाने चितानी भस्म वडे राजा कुमारपाले तिलक कर्यु, ते जोइने हजारो लोकोए तेनुं अनुकरण करतां त्यां खाडो पडी गयो, जे 'हेमखड्ड' - हेमखाडना नामे प्रख्यात थयो. (प्रबन्धचिन्तामणि, सिंघी ग्रन्थमाला, पृ. ९५)
__ आजे पण पाटणमां ए स्थानने त्यांनी जनता हेमखाडना नामे ज ओळखे छे. दुर्भाग्ये कहो के इतिहासना प्रबल परिवर्तनने लीधे कहो, मूलतः जैन धर्मनुं अने जैनोना अधिकार हेठळनु ए स्थान आजे मुस्लिमोना कबजामां छे. तेमना कबजाने पण सैकाओ थया होय तो ना नहि. आजे त्यां तेमनी दरगाहो-कबरो-मस्जिद वगेरे प्रकारनां स्थानो जोवा मळे छे.
थोडां वर्षो अगाऊ पाटणना एक पत्रकारे पोताना समाचारपत्रमा आ स्थान विषे ऊहापोह जगाडवानो प्रयास करेलो, परन्तु कट्टर कोमवादी परिबळोए तेने तत्काळ अटकावी दईने ते पत्रना ते अंकोनी तमाम नकलोनो विनाश करेलो, अने ते पत्रकारने चूप करी देवामां आवेलो.
आ आखी वात मने स्व. कविवर मकरन्द दवेए कहेली. ते वृत्तपत्रनी नकल पण वंचावेली. अने पछी भारे हैये मने कहेलुं के "मुनि ! कोई रीते हेमचन्द्राचार्य जेवी विभूतिनी आ भूमि आ लोको पासेथी पाछी मेळवो, अने त्यां कांइ साधनास्थान करावो. ए भूमि निःशङ्क ऊर्जामय भूमि छे."
आ एमर्नु अरण्यरुदन हतुं एम ए ने हुँ बन्ने जाणता हता. छतां एक उच्चकक्षाना साधक अने कवि-साहित्यकार, दर्दभर्या सादे आवी वात करे त्यारे ते अपील कर्या विना कम रहे ? वधुमां, तेमणे मने एक पुस्तक पण
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आप्यं, जेमा आचार्य विषे आपणी लागणी दूभाय तेवू लखाण थयुं छे. ए लखाण अहीं अक्षरशः टांकतुं छे.
पुस्तकनी विगत : "हझरत मखदूम हिसामुद्दीन मुल्तानी र.अ. व दुनिया दीनकी रोशनीमें". - शुजाउद्दीन फारूकी, महम्मदी वाडा, पाटण. (प्रकाशन वर्ष के लेखक - सम्पादकनां नाम इत्यादि विगत अलभ्य छे.) ८९ पृष्ठनुं पुस्तक छे. टाइटल ३ पर 'अहकर, शुजाउद्दीन फारुकी एम छापेलुं छे. आ पुस्तक खास करीने मुस्लिम संत 'मखदूम शाह'ने केन्द्रमां राखीने बनेलुं छे. तेमनी दरगाह/रोजानी तसवीरो पण अंदर छे. आमां ते सन्तना चमत्कारोनी वात करतां हेमचन्द्राचार्य विषे जे लखाणो छे ते अहीं उद्धृत करवामां आवे छे:
"और कहा जाता है के, ह. हिसामुद्दीन (क.सि.) की खानकाह (मस्जिद) के करीब एक पोशाल-जैनोंका अपासर-था । उसमे हेमचन्द्राचार्य नामका एक बडा जती - जैन साधु रहेता था । उस जती के चारसो चेले थे । वो चेले हररोझ खोराक मांगने जाया करते थे ।
एक रोझ उसके चेले अपनी झोलीमें जिलेबी भर कर लाये । मस्जिद की दीवार के नीचे खडे रेहकर झोली खोल कर देखा के झोलीमें कई तरहकी मिठाइयां हैं । इत्तिफाकन ह. जमालुद्दीन (क.सि.)ने मस्जिद के पेशाबखानेमें इस्तिजा करके ढेला पेशाबखानेकी दिवाल पर रक्खा था । दीवाल के नीचे वो चेले झोली खोल कर खडे थे, तो वो ढेला पवन की वजह गिर कर उस झोलीमें गिरा । सब चेलोंने झोलीको दूर फेंक दी और चिखते हुए अपने गुरुजी के पास गए ।
__ गुरुजीने उन चेलों को हुकम दिया के, इन लोगों को बांध कर ले आओ । कुछ चेले आए ओर मस्जिद के दरवाजे पर खडे रहे । वो हयरत ओर वेहशतमें पड़ गए । ओर बोलने की बात करने की भी ताकत न रही।
दोबारा और दुसरे चेले आए । वो भी इस तरह खडे रहे गये । जती हेमचन्द्राचार्यने गुस्से होकर बहोत चेले को वहां भेजा । वो सब भी मुहतय्यर हो कर रेह गये । बोलने ओर बात करने की भी ताकत न रही।
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आखिर हेमचन्द्राचार्य खुद एक पथ्थर की बनी हुई चोकी, जिसको कठेहरा लगा हुआ था, और कठेहरेमें हीरे वगेरा जवाहर लगे हुए थे, इस चौकी पर बैठकर अध्वर हवामें उड कर आया । हझरतकी हुझुरमैं आ कर कहने लगा- 'अय झिन्दह, यहांसे चले जाओ' । ह.जमालुद्दीन (क.सि.)ने चाहा कि एक तमाचा-चमाट उस मुझीको लगा दें । लेकीन यकायक वो जती चोकी पर बैठे उपर आसमान की तरफ उडा । जती के सब चेले बहोत खुश हुए,
ओर खुशीमें तालीया बजा कर केहने लगे, हमारा गुरु तो गया, कहांसे तमाचा मारोगे ?।
हझरत जो बैठे हुए थे, अपने दोनों जुते पकड कर उपर पेंके, वो चोकी जती के साथ उलट गी, गिरी और झमीन में गर्क हो गी । ह. मखदूम (क.सि.) के आस्ताने के करीब, सुबेदार जाफरखान की कबर के नजदीक काली स्याह पथ्थर की चोकीका निशान अब भी हय ।
उस जती हेमचन्द्राचार्य के तमाम चेले अपने सरों पर खाक डाल कर, अपने राजा कुमारपाल के पास फरियाद करने गये । राजा एक बडा लश्कर लेकर आया और मस्जीद को घेर लीया । सब आदमी और उनके घोडों के पांव, लकडी और पथ्थर के मानिंद, खुश्क हो गये ।
जब हझरत दुबारा इस्तिजाके लीये आए, राजा की तरफ निगाह करके उसको अपने पास बुलाया के केह "ला इलाहा इल लल्लाह, मुहम्मदुर्रसुलुल्लाह" । उस राजानाने कलमा पढा । दुसरे कुछ लोग जो राजा के साथ थे, जिनकी किस्मत में इस्लाम था, उन्होंने भी कलमा पढा । ओर मुशर्रफ बइस्लाम हुए । दुसरों को कहा जाव, जहां खुदा तुम्हें ले जाए । बाकी सब चले गए । (ये अहवाल कलमी फारसी बयाझ का तरजुमा है ।"१ (पृ. ८-९)
आ लखाणमां जणाता देखीता विसंवादो जोईए :
१. आचार्यने ४०० शिष्यो हता ज नहि. २. जैन मुनि अधरस्ते आहार भरेली झोळी उघाडे के जुए ज नहि. ३. मस्जिदनी रांगे जैन मुनि कदी ऊभा न रहे. ४. पत्थर के तेवो कोई पदार्थ पडे तो साधु झोळी फेंके नहि; पण
१. पुस्तक उर्दू भाषामां पण गुजराती लिपिमां छे. ते लखाण अहीं नागरीमां ऊतारेल छे.
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गुरु पासे लई जई रजू करे - आ मर्यादा छे. ५. आचार्य क्रोधान्ध थाय अने हझरतने बांधी लाववानो हुकम शिष्योने करे ए वात ज हास्यास्पद छे; आ कांई एवी आफत नहोती के जेने माटे आटलो मोटो उश्केराट लाववो पडे ! अने आचार्य पासे तो राजा हतो ज; तेने कहे ते बनी शके; पण आ तो साधुए कायदो हाथमां लीधानी रजूआत छे, जे केवळ मूर्खतानुं प्रदर्शन ज करे छे. ६. आचार्य रत्नजडित पत्थर-चोकी पर त्यां आवे, पछी ऊडी जाय, आ बेहूदी वात केम मानवी ? ए तो बांधवा माटे आव्या'ता एम पुस्तकनुं कथन छे, तो ते ऊडी शुं काम जाय ? तमाचानी बीकथी ? नयँ हास्यास्पद ! ७. हझरते जूता वडे मार्या ने चोकी साथे आचार्य जमीनमा गरक थई गया (पछी पाछा काढ्या के नीकळ्यानी तो वात छे नहि !) तो पछी आचार्यना शेष जीवननीमृत्युनी-बधी वातो खोटी ज गणवी ? ८. कुमारपालनी पासे कलमा पढाव्या वगेरे वात पोताना मजहबने ऊंचो देखाडवानी बालिश चेष्टाथी विशेष शुं होई शके ? सार ए के, उपरनी रजूआतमांनी एक पण बाबत गळे ऊतरे तेम नथी; अने धर्मना प्रचार माटे कट्टरपंथी तथा झनूनी लोको शुं करी शके छे, केवा प्रचार अने चमत्कार उपजावी शके छे, ते समजवा माटे आ मजेदार दाखलो बनी रहे तेम छे. आगळ जोईए. आ ज चोपडीमा आगळ लख्युं छे :
__ "इसी मस्जिदे आदीना के करीब, एक जैन मुनी हेमचन्द्राचार्य जतीकी पोशाल और पाठशाला थी । एक रोझका वाकेआ है के, हझरत मखदूम रे.अ. के कुछ शागिर्द बाहर गये हुए थे, इसी अस्नामे हेमचन्द्राचार्य जती के भी कुछ शागिर्द-चेले बाहर से, झोलियों में मिठाइ लेकर पाठशाला तरफ आ रहे थे ।
छोटी मस्जिद-जहां हझरत का मकाम था - जिसके पिशाबखाने की दिवार पर रखा हुवा ढेला जती के चेले की झोलीमे पवनकी वजह से गिरा। जब जती के चेले मिठाइ तकसीम करते थे, ओर ये मिठाइ खत्म न होती थी । आखिर जती हेमचन्द्रचार्य ने ये समज लीया के, उस फकीर - ह. मखहूम हिसामुद्दीन रे.अ. की हरकत है। उसने ह. मखदूम रे.अ. को बुलावाया
और कहा, 'अगर कोइ करामत-ताकत रखते हो तो बताओ' । आप रे.अ. ने फरमाया 'मेरे पास कुछ भी नही, तु अपना करतब बता ।' हेमचन्द्राचार्य
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फेब्रुआरी २०११ जती, एक काले पत्थर की सिला पर बैठा, और ये केहता हुआ उडा के 'मंय जन्नत के मेवे लाकर बताता हुँ' । और नझरोसे गायब हो गया ।
आप रे.अ.ने अपने पीरो-मुरशदकी पाउकी लकडे की खडाम को इशारा कीया, वो खडाम उडी, ओर उस जती को सरमें मारती हुई पत्थर समेत नीचे ले आई । वो जती वहीं झेरे झमीन गारत हो गया ।
(ये बात जैनो के पुस्तकोमें मौजुद है, ओर मेरे वालिदेबुझुर्गवार, बालासिनोर स्टेटमें तेहसीलदार थे जब एक जती थे जो जादुइ विद्या और करतबोका आमिल था, उसने मेरे वालिदे बुझुर्गवार को बताई थी ।)
शायद, हेमचन्द्राचार्य जतीने, नरसंगा वीरको ताबे कीया हुआ था, जिसकी ताकातसे वो उडा था । उस नरसंगा वीर को भी आप रे.अ.के मकबरे में दाखिल होने की जगा पर, काले पत्थर के नीचे गारत कीया हुआ है।" (पृ. १३-१४).
बन्ने प्रसङ्ग वांच्या पछी समजी शकाय तेम छे के एक ज प्रसङ्ग छे, तेने बे रीते कथारूपे व्यक्त करवामां आवेल छे. पहेलामां आचार्य रे.अ. पासे गया छे, तो बीजामां तेमने पोतानी पासे बोलाव्या छे. पहेलामा कुमारपालनी वात छे, बीजामां नरसंगा वीरनी वात छे. लेखक पोते पण घटनाक्रम तथा पात्रो विषे स्पष्ट नथी. मजहबमां चालती दन्तकथा प्रमाणे ते चालतां जणाय छे. आ बीजा लखाणमांनी विसंगतिओ जोईए :
१. मस्जीदनी पासे ज हेमाचार्यनो उपाश्रय होवा- लेखक जणावे छे. ते वात ज प्रमाणित करे छे के पोताना जुल्मी आक्रमणकाळ दरम्यान, मुस्लिम वर्गे पोशालनी नजीकनी जग्या पर कबजो लई त्यां पोतानां स्थानो बनाव्यां हशे. सम्भव छे के ते स्थान 'हेमखाड' होय. २. मीठाई खतम ज न थवी, पत्थरने चलाववो, ऊडवू, जूता वडे मारीने नीचे लाववा - आ बधुं ज 'इन्द्रजाल' (मायाजाळ) छे. ते बधुं एक मदारी, जादूगर के नजरबंदीना खेलवाळो पण करी बतावी शके तेम छे. जो आचार्यने उडतां आवडतुं होय, तो जूताने पाछा हझरत पर मोकलतां, मीठाईनो अन्त आणतां आवडतुं ज होत. आचार्य योगी-योगसाधक जरूर हता; जादूगर नहि. योगसाधनाना प्रतापे अमुक चमत्कारिक लागतां काम ते करी शकता, परन्तु तेमां इन्द्रजाल, जादू, नजरबन्दी
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न हतां. पोतानी बडाई माटे मजहबी मानसे अहीं आचार्यने, हझरत जेवा ज चीतरी दीधा छे, जे इतिहासनी तथा जैन परम्परानी दृष्टिए तद्दन जूठ छे. ३. आचार्य जमीनमां दटायानी वात आमां पण छे. मजहब के धर्मना प्रचार सा ज्यारे कट्टर कोमवाद भळे छे, त्यारे माणसने तथ्य - अतथ्यनो विवेक नथी रहेत अने प्रमाणभान चूकीने गमे तेवो प्रलाप करी बेसे छे. ४. ऊपर जणाव्युं तेम आचार्य योगी हता; तेमने नरसंगा वीरनी साधना करवानी कोई जरूरत न हती. तेमणे तेवी साधना कर्यानुं कोई सूचन के प्रमाण पण इतिहासमांथी क्यांय मळतुं नथी. हा, आ लखाण परथी एवं जरूर कल्पी शकाय के हझरते ते नरसंगा वीरने साधीने बांध्यो होय, अने तेना माध्यमथी चमत्कारिक परचा पूरता होय.
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५. अने छेल्ले एक महत्त्वनी वात : हझरत मखदूमशाह हिजरी सन ६३४ मां जन्म्या हता, अने हि. ७३६ मां मरण पाम्या हता, तेवी हकीकत आ पुस्तकना पहेला पाने नोंधाई छे. जो के 'शमीम' शेख 'पाटणना मुस्लिम शासन समयना सन्तो, स्मारको अने संस्कृति' नामे लेखमां हि. सन् ६३९ एटले ई.स. १२४१ मां मखदूम शाहनो जन्म थयानुं नोंधे छे. (Glorious History and Culture of Anhilwad Patan - ग्रन्थ, पाटण, ई. २००९, पृ. ६४५). आ प्रमाणे ई.स. १२४१ एटले वि.सं. १२९७ थाय. हेमचन्द्राचार्यना स्वर्गगमननुं वर्ष वि.सं. १२२९ छे. हसरत मखदूम शाहनो जन्म ज १२९७ मां थयो छे. तो ते बन्ने पाटणमां एकसाथे होय अने मळे ए वात ज केटली मिथ्या ठरे छे ! तो जे लोको कदापि मळ्या ज न होय तेमने विषे पण आवी कथाओ उपजावी काढवी, तेने धर्मझनूनी मानस न कहेवाय तो शुं कही शकाय ?
मूळ वात 'हेमखाड'नी छे, जे आजे मुस्लिमोना ताबामां छे, अने तेने एक पवित्र साधनाभूमिलेखे पाछी हस्तगत करीने तेने विकसाववानी अपील तथा आग्रह मकरन्द दवे जेवा उच्च कक्षाना साधक - कवि करे त्यारे आ विभूति तथा तेमनी भूमिनो महिमा केवो हशे तेनो अन्दाज बांधी शकाय छे. में ज्यारे कह्युं के, ए तो मुस्लिमोना कबजामां छे, ने पाछी मागवा जतां कोमवादी यातनाओ ऊभी थशे, ए करतां हवे जेम छे तेम भले चालवा दईए. त्यारे तेमणे खास भारपूर्वक पुनः कह्युं के "मुनि ! एवं न विचारो, पण कांईक करो ज. "
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तो हेमाचार्यनी पावन भूमि 'हेमखाड'नी आ छे कथा. आ लखवा पाछळ कोईनी ये लागणी दूभववानो आशय नथी, परन्तु आ परिस्थिति थकी अमारी – जैनोनी धर्मलागणी खूब ज दूभाय छे ते चोक्कस छे, अने तेने वाचा आपवा माटेज आटलुं सन्तुलित - संयमित शब्दोमां अहीं नोंध्युं छे.
हेम-प्रतिमालेखो
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हेमचन्द्राचार्यना हस्ते प्रतिष्ठाओ तो थई ज हशे तेनी तवारीख ओछी ज मळे छे. सं. १२२८नी प्रतिष्ठाना उल्लेख जरूर मळे छे, परन्तु मुहूर्तफेरना कारणे बहु थोडा ज वखतमां ते मन्दिरो अने मूर्तिओनो नाश थयानी जाणकारी पण इतिहास आपे छे. फलतः तेमणे प्रतिष्ठा करी होय तेवी प्रतिमा अने परना लेखो जवल्ले ज मळे छे. जे मळे छे, ते पण हेमचन्द्राचार्यना ज सम्बन्धित होय ते विषे द्विधा प्रवर्ते छे. कारण के - हेमचन्द्राचार्यना समयमां तेमना समान नामवाळा अन्य पण बे आचार्य हता. एक, मलधारी श्रीहेमचन्द्रसूरि. तेमनो स्वर्गवास पण पाटणमां ज थयो छे. बे, वडगच्छना श्रीविजयसिंहसूरिना शिष्य अने श्रीसोमप्रभसूरिना गुरुभाई श्रीहेमचन्द्रसूरि. एटले जे ते प्रतिमा परनुं नाम कया हेमचन्द्रसूरिनुं छे ते नक्की थवुं कठिन छे.
बीजी वात, ‘जैन परम्परानो इतिहास' ग्रन्थमां (भाग २, पृ. ३५३, ई. २००१) त्रिपुटी महाराजे नोंध्युं छे "आ ज रीते (जिनदत्तसूरिना बनावटी लेखोनी रीते), कोई यतिए क. स. हेमचन्द्रसूरिना नामना बनावटी प्रतिमालेखो कोतराव्या छे. अमे आवा प्रतिमा लेखो अजारीमां जोया हता अने त्यांना श्री संघने साफ जणाव्युं हतुं के आ लेखो बनावटी छे."
अत्यारे बे प्रतिमालेखो मारी समक्ष छे. एक लेख, विख्यात तीर्थोना इतिहासकार मुनि श्रीजयन्तविजयजीना अप्रगट साहित्यमां सचवायेलो आ प्रमाणे छे :
(१) "सं. १२२० ज्येष्ट शुदि ५ र.... श्रेयसे श्रीशालकेन श्रीपार्श्वप्रतिमा कारिता प्रभुश्री हेमचन्द्रसूरिभि: ॥"
आमां ‘प्रतिष्ठाता' शब्द नथी, गाम के स्थळनुं नाम पण नथी, ते मुद्दा ध्यानार्ह छे. आ लेख, वर्षो पूर्वे, जयन्तविजयजीए थरादना महावीरस्वामी जिनालयमां विद्यमान पार्श्वनाथनी एकलबिम्बात्मक प्रतिमा परथी उतार्यो छे, तेम
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तेमनी नोंध बोले छे. आ लेखनी नकल मुनिश्री सुयशचन्द्रविजयजी तरफथी प्राप्त थई छे.
(२) "संवत् १२२३ वर्षे माघ वदी ८ वीरासुतेन देपलाकेन भ्रातृय.... माडुकस्य श्रेयसे चतुर्विंशतिपट्टः कारितः प्रतिष्ठितश्च श्रीहेमचन्द्रसूरिभिः ॥१
आमां पण स्थळनाम नथी, ते जोई शकाय छे.
आ लेखो "हेमचन्द्राचार्य' साथे जोडायेला होय एवं मानवानुं मन एटला माटे नथी वधतुं के आचार्य पाटण छोडीने थरादनी दिशामां - खास करीने १२२० ना गाळामां – गया होय तेनां कोई प्रमाण मळतां नथी. बल्के ते समय तेमना जीवननां महान् कार्यो माटेनो श्रेष्ठ समय होईने तेमणे पाटण छोड्युं होय ए बनवाजोग नथी लागतुं. बीजूं, अमना जेवा आचार्य प्रतिष्ठा करावे ने प्रतिमा पर गामनु के भगवाननुं नाम पण न लखावे, अने पोताने माटे 'प्रभु' एवं विशेषण लखावे, पोतानो परिचय आपतुं गच्छनाम इत्यादि न लखावे - आ बधुं कोई रीते गळे ऊतरतुं नथी. त्रिपुटी महाराजनी वात वधु वजनदार लागे छे. वस्तुतः आचार्ये प्रेरेलां के तेमना द्वारा प्रतिष्ठित देरासरोनो तथा बिम्बोनो विनाश ज करवामां आवेलो होई तेमना द्वारा प्रतिष्ठित बिम्बो मळवां बहु मुश्केल छे. आटली नोंध ळकवानो आशय एटलोज के हेमचन्द्रसूरिना नामोल्लेख धरावती वस्तु मळी आवे तो हरखाई जईने तेनो सम्बन्ध कलिकालसर्वज्ञ साथे जोडवानी उतावळ करवा जेवू नथी. १. ई. १९९७मां प्रकाशित 'अनुसन्धान-८'मां पृ. ८१ पर आपेल 'ट्रंक नोंध'मां आ
प्रतिमालेख आपेल छे. तेनी साथेनी नोंधमां आ प्रतिमाने हेमचन्द्राचार्य द्वारा प्रतिष्ठित गणावेल छे. ते नोंधमां "१२२३मां हेमचन्द्रसूरि एक ज हता, बीजा नहि, ते इतिहासथी सिद्ध छे." - एवं पण लखेल छे.
आजे लागे छे के ए विधानो अधकचरां ज हतां. योग्य जाणकारीनो अभाव - ए ज आनुं निदान गणाय.
मलधारी हेमचन्द्रसूरि हेमचन्द्राचार्यना पूर्वसमकालीन हता, अने सिद्धराजना राज्यकाळ दरम्यान ज काळधर्म पाम्या हता, एटले १२२३ मां तेओ होय ते असम्भवित छे. अन्य हेमचन्द्रसूरि ते वखते आचार्य हता के केम ते जाणवा- कोई साधन नथी.
आम छतां, आ प्रतिमालेख क.स. हेमाचार्यनो निर्देश करे छे ते वात मानवानुं मन थाय तेम नथी. कारणमां त्रिपुटी महाराजे नोंध्युं छे तेम आवा लेखो बनावटी पण लखाता हता; तो आ लेख पण तेवो होय तो ? अस्तु.
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हेमश्रीः हेमचन्द्राचार्यनी बहेन
हेमचन्द्राचार्यनी माताए, तेमनी आचार्यपदवीना प्रसङ्गे दीक्षा लीधी हती, अने आशरे ४५ वर्ष दीक्षा पाळीने सं. १२११ मां देहत्याग कर्यो हतो, तेवो इतिहास उपलब्ध छे. पण हेमचन्द्राचार्यने अन्य कोई भाई के बहेन होवा विषे कोई ज नोंध मळती नथी. परन्तु 'खरतरगच्छ पट्टावली' मां एक नोंध एवी मळे छे, जे हेमाचार्यने एक बहेन होवानुं अने ते दीक्षित - साध्वी होवानुं निर्देशे छे.
आ नोंध, जोके, आचार्य प्रत्येनी अरुचिप्रेरित नोंध छे. अन्य गच्छोनुं कट्टरपणे सतत खण्डन करवामां सैकाओथी राच्या करता खरतरगच्छनी तीखी नजरमांथी हेमाचार्य बची जाय ए नितान्त अशक्य छे. आ रही ए नोंध :
“तत: शङ्कितो मनसि हेमाचार्यो न छोटयति । तदा हेमाचार्यभगिनी हेमश्रीमहत्तराऽस्ति । तयोक्तं - छोटयन्तु । तैरुक्तं - इदं लिखितमस्ति 'यः छोटयिष्यति तस्य जिनदत्तसूरीणामाज्ञाऽस्ति' तेन बिभेमि । महत्तरयोक्तं – को जिनदत्त: ? न कोऽपि भवदीयसमो गच्छाधिपः । अहं छोटयामि । कुमारपालेन दत्तम् । तया छोटितमात्रे तत्कालं नेत्रद्वयं पतितम् । अन्धा जाता । पुस्तकं भाण्डागारे मुक्तं । रात्रौ वह्निर्लग्नः । सर्वं पुस्तकं प्रज्वलितम् । तत् पुस्तकमाकाशमार्गेण बौद्धानां समीपे गतम्" । (सं. १६९० सुधीनी सत्तरमी सदीनी खरतरगच्छ पट्टावली । थोडा फेरफार साथे महो. क्षमाकल्याणनी खरतरगच्छ पट्टावली ।). ( जैन परम्परानो इतिहास - २, पृ. ३५२, इ. २००१)
सन्दर्भ एवो समजाय छे के आ . जिनेश्वरसूरिए के खरतरगच्छना कोई कोई पोथी आपी/मोकली हशे . ए खोले तेने हानि - एम कह्युं हशे . आचार्यना सामर्थ्यनी परीक्षा लेवानी मुराद हशे. आचार्य डर्या. तो तेमनी बहेने खोली. तर ते अन्ध थई गई. वधुमां ग्रन्थागार बळी गयो अने पेली पोथी बौद्धो पासे चाली गई.
आ नोंधमां मोटी विचित्रता ए छे के जैनाचार्य थईने जैन ग्रन्थभण्डारने खाक करी मूकवामां निमित्त बने छे; अने पेली पोथी पाछी पोताना हस्तक
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लेवाने बदले बौद्धो पासे मोकली देवामां आवे छे ! मों-माथां वगरनी आ वात विचारकना गळे शी रीते ऊतरे ? हवे उपरोक्त नोंध उपर त्रिपुटी महाराजे लखेली नोंध जोईए :
"खरतरगच्छनी गद्य पट्टावलीओमां आ. जिनदत्त अने आ. जिनेश्वरबीजाने ऊंचा बताववा माटे अने कलिकालसर्वज्ञ हेमचन्द्रसूरि तेमज गूर्जरेश्वर कुमारपालने नीचा बताववा माटे आवी वातो जोडी काढवामां आवी छे. परन्तु आ. जिनेश्वर बीजानो समय वि.सं. १२७८ थी १३३१ छे. ज्यारे हेमचन्द्रसूरि अने गूर्जरेश्वर कुमारपालनो समय ११९९ थी १२२९ छे. साध्वी हेमश्रीनुं नाम पण कल्पित छे. आथी नक्की छे के पट्टावलीकारोए घणी घटनाओ गच्छरागथी ऊभी करी छे.' (जैन परम्परानो इतिहास-२, पृ. ३५२)
'हेमखाड' विषे ऊपर लखेल वातो अने आ वात - बन्ने वच्चे कट्टरता अने पक्ष/मतना रागने लीधे केटलुं बधुं साम्य जणाई आवे छे !
(४) गिरनारयात्रा अने दशारमण्डप
आपणे त्यां प्राचीन प्रबन्धो द्वारा एक वात प्रचलित छे के हेमचन्द्राचार्य अने कुमारपाल राजा गिरनार तीर्थे गया, त्यारे तेओ बन्ने जणा पहाड ऊपर चड्या नहि. एटला माटे के बे महापुरुषो एक साथे ऊपर चडे तो पहाड हालमडोलम थाय, भूकम्प थाय; एटले बे जणा साथे न चडी शके. प्रसिद्ध पुरुषनी महत्ता अने माहात्म्य वधारवा माटे केवी अतिउक्ति थती होय छे तेनो आ उत्तम नमूनो छे. आ प्रसङ्ग खरेखर आ प्रमाणे छे :
"राजा कुमारपाल, चतुरङ्ग सैन्य अने चतुर्विध संघ साथे, गुरु हेमचन्द्रनी निश्रामां तीर्थयात्राए नीकळ्या. थोडा ज वखतमां रैवतपर्वतनी नीचे गिरिनगर (गिरिनार) पासे आवीने तेणे पडाव नाख्यो. त्यां राजाए भुवनना अलङ्करणसरीखो ‘दशारमण्डप' दीठो, तेमज अखाडावाळो उग्रसेनराजानो महेल पण जोयो. ते चकित थयो, अने गुरुने पूछ्युं के आ बधुं शुं हशे? जवाबमां आचार्ये जणाव्यु के द्वारावती-द्वारिकामा समुद्रविजय आदि दश दशारो वसता हता. तेमां दशमा दशारनुं नाम वसुदेव हतुं, तेना पुत्र ते कृष्णवासुदेव. वळी,
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समुद्रविजयना पुत्र अरिष्टनेमि हता, अने तेमना विवाह माटे, गिरिनगरमां आ महेलना स्वामी उग्रसेनराजानी पुत्री राजीमती पसंद करवामां आवी हती. ते दशारोनो आ मण्डप छे, अने उग्रसेननुं आ भवन छे."
राजाए पूछ्युं : "तो आ देखाय छे ते मण्डप वगेरे त्यार वखतनुं ज हजीये छे ?" गुरुए कह्युः "ना, आ ते वखतनुं नथी, पण थोडा समय पूर्वेनुं छे. आर्य नागहस्तीसूरिना शिष्य पादलिप्तसूरि थया, तेमनो शिष्यतुल्य नागार्जुन नामे हतो, तेणे नेमिनाथ प्रत्येना अनुरागथी आ बधु नेमिचरित सरज्यु छे, ते आ छे."
___आ सांभळतां राजाने विशेष उल्लास थयो अने ते गिरनार पर्वत पर चडवा उत्सुक थतां हेमचन्द्राचार्ये तेने कह्यु :
नरवर ! विसमा पज्जा अओ तुमं चिट्ठ चडउ सेसजणो । लहहिसि पुन्नं संबो व्व भावओ इह ठिओ वि तुमं ॥
राजन् ! पाज (पगथियां) विषम छे एटले तमे चडवानुं न राखो. बधां भले चडतां. तमे अहींथी भावना भावजो, पुण्य थशे..
आथी गुरुनी सलाह अनुसार राजा न चड्या; गुरु तो चड्या ज हता.
आ आखी वात, हेमाचार्यना समकालीन श्रीसोमप्रभाचार्ये, आंखे दीठा हेवालनी जेम, 'कुमारपालप्रतिबोध'मां आलेखी छे.
आमांथी फलित थता केटलाक मुद्दा पुरातात्त्विक दृष्टिए घणा महत्त्वना छे. जेमके
(१) उग्रसेननुं रहेठाण गिरिनगर (गिरनार)मां (नीचे) हतुं. प्रसिद्ध कथानुसार द्वारिकाथी जान लईने कृष्ण तथा नेमिकुमार उग्रसेनने त्यां आवेला. तो तेनो अर्थ के जान गिरिनगर आवी होय, अने द्वारिका तेनाथी, आजे छे तेटली दूर नहि होय. थोडा समय अगाऊ सेटेलाइट-फोटो द्वारा मळेली जाणकारी वृत्तपत्रोमां वांचवा मळेली, ते मुजब वंथली अने तेनी नजीकनो प्रदेश द्वारकाप्रदेश हतो. आ खलं होय तो ऊपरनी वातनो मेळ मळे खरो.
(२) आजे जे बौद्ध गुफामण्डपो तरीके ख्यात छे, ते ज सम्भवतः क्यारेक दशामण्डप तरीके प्रख्यात हशे एवं अनुमान थाय छे. अथवा तो ते मण्डप वगेरे नष्ट पण थया होय.
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(३) कुमारपाल ने गुरु साथे चडे तो गिरनार डोली ऊठे तेवी कथा मात्र कल्पनाकथा ज होवानुं नक्की थाय छे.
उपरोक्त आखो प्रसङ्ग 'कुमारपालप्रतिबोध' ग्रन्थमा उपलब्ध छे, अने तेने आधारे ज अत्रे नोंघेल छे. आ ग्रन्थ आचार्यना जीवन माटे सहुथी वधु प्रमाणिक अने अधिकृत साधन गणाय छे.
हेमचन्द्राचार्य अने क. मा. मुनशी
___ आ संसारमां नैष्ठिक ब्रह्मचर्य जेवी पण एक चीज विद्यमान छे. लाखो-करोड़ो साधकोमां कोई एकाद-बे व्यक्तिने ज आ चीज सांपडती होय छे. नखमांय विकार न संभवे, अने साव सहज-आयासविहीन निविकार स्थिति जेनामां जन्मजात होय, तेवी व्यक्ति ज आ चीज पामवाने भाग्यशाळी बने छे. आमां प्राक्तन पुण्य अने संस्कार, कुलनी खानदानी, योग्य गुरु द्वारा समुचित घडतर, सहज सत्त्वशीलता, पोतानी उभराती ऊर्जाने सद्गुरुना मार्गदर्शनपूर्वक ऊर्ध्वगामी बनाववा माटेनी जागृति अने पुरुषार्थ - आ बधां वानां मळे तो कोइ व्यक्तिमां नैष्ठिक ब्रह्मचर्य प्रगटे, अने ए चीज ए व्यक्तिने व्यक्ति मिटावी विभूति तरीके प्रस्थापी आपे. बाणभट्टे भले लख्युं होय के “किमस्ति कश्चिदसावियति लोके यस्य निर्विकारं यौवनमतिक्रान्तम् ?" अर्थात्, जगतमां विकारविहोणो जण हजी पेदा नथी थयो. परन्तु हेमाचार्य जेवी विभूतिने आ नियम लागु पडतो नथी, एम एमना जीवनने समग्रताथी जाण्या पछी, अन्ध भक्ति विना अने अनैतिहासिक बन्या विना जरूर कही शकाय. अलबत्त, स्वच्छन्द विचार अने अभिप्राय धरावनार कल्पनासेवी माणस तो गमे तेने माटे गमे ते लखी शके - बोली शके. मोटा भागे तो तेवी कल्पनामां ते कल्पना करनार आन्तरिक चारित्र्य तथा वलणोनुं प्रतिबिम्ब पडतुं होय छे..
__ वात आपणा प्रसिद्ध नवलकथाकार कनैयालाल मुनशीनी करवी छे. तेमणे सोलंकीयुगने वर्णवती नवलकथाओ लखी, तेमां काक अने मंजरी नामे बे पात्र काल्पनिक नीपजाव्यां छे. तेमां काक आगळ मुंजाल, उदयन वगेरे तमाम राजपुरुषोने झांखा पडता आलेख्या छे; काकने 'समुद्रमिव दुर्घर्ष अने
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कालाग्निमिव दुःसह' वर्णव्यो छे. तो मंजरीने अत्यन्त तेजस्विनी, पवित्र अने भलभलाने आकर्षे तेवी छतां सहुनां गर्व गाळी नाखनारी वर्णवी छे.
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सामान्य रीते आ कथाश्रेणिमां जैनोने ऊतारी पाडवानी एक पण तक मुनशीए छोडी नथी. परन्तु हेमचन्द्राचार्यने मंजरीना सौन्दर्य प्रत्ये आकर्षाता, विह्वळ बनता अने अनुचित प्रार्थना करता कल्पीने तो तेमनी कल्पनाशक्तिए स्वच्छन्दतानां शिखर सर कर्यां छे. जैनद्वेष अने आत्मरति आ प्रसङ्गमां तेनी पराकाष्ठाए पहोंचे छे. सुज्ञ वाचकने काक- मंजरीमां मुनशी - दम्पतीनी काल्पनिक छबी अवश्य अनुभवाय.
आनो विरोध पण घणो थयेलो थतो रह्यो छे. मुनशी पीढ राजपुरुष-मुत्सद्दी होई तेमणे ते विरोधने गांठ्यो नथी, ए तेमनी दृढता काबिलेदाद छे. साहित्यकारनी अभिव्यक्तिनी स्वतन्त्रतानो सिद्धान्त तेमने बचावे पण छे, बळ पण पूरुं पाडे छे.
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विचित्रता ए छे के आ विरोधने 'साम्प्रदायिक मानसने लागेलो धक्को' गणाववामां आवेलो. एम पण कहेवायुं के 'हेमचन्द्राचार्यने महान सिद्ध करवा होय तो एमना जीवनमां एक मंजरी आणवी ज जोईए. अर्थात् आचार्यने चारित्र्यनुं पगथियुं चूकवा माटे तत्पर बताव्या ते पण तेमनी महानता सिद्ध करवाने ज ! केवी वाहियात दलील !
थोडा दहाडा अगाऊ ज डॉ. मधुसूदन ढांकी साथे वात चाली त्यारे तेमणे कहेलुं के हेमचन्द्राचार्यनी प्रतिभानुं खण्डन करवामां मुनशीए पूरा जैनद्वेषनुं प्रदर्शन कर्तुं छे. ए भयङ्कर जैन-द्वेषी हता, शङ्का नथी.
आ सन्दर्भमां आ प्रकरणना प्रारम्भे लखेल बाबत विचारवा योग्य छे. (६)
हेमाचार्यनुं आकाशगमन
प्रबन्धोमां क्यारेक थयेली अतिशयोक्तिओए आचार्यनो महिमा वधार्यो छे के ओछो कर्यो ? ते एक सवाल छे. ह. मखदूम शाह वाळा प्रसङ्गमां आचार्यने उडता देखाडवामां आव्या छे. तेनो अर्थ ए के आचार्य पासे तेवी शक्ति होवानुं जैन प्रबन्धोमां क्यांक वर्णवायुं हशे. तपास करतां ए वात जडे
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छे. "भृगुकच्छमां आम्रभटे मुनिसुव्रतजिनालयनो उद्धार कर्यो, तेनी प्रतिष्ठा माटे हेमचन्द्राचार्य तथा कुमारपाल पधारेला. हवे प्रतिष्ठा पछी तेओ पाछा स्वस्थाने जाय छे. त्यार पछी आम्रभट जिनालयनी छत पर सायं वेळाए नृत्य करे छे, ते जोईने ते समये त्यांथी पसार थती जोगणीओ तेने वळगी. ते बेभान थई गयो. तेने साजो केम करवो ? आ वृत्तान्तनी खबर आचार्यने पडतां ज तेओ गगनमार्गे उडीने त्यां आव्या, अने उपद्रव, निवारण कर्यु." (प्रबन्धचिन्तामणि पृ. ८७-८८, सिंघी; तथा हीरसौभाग्य काव्य सर्ग ४, पृ. १७५)
___ आ वर्णन प्रमाणे 'स्वस्थाने'नो अर्थ 'पाटण' गया एवो थाय. तो ज गगनमार्गे आवq संभवे.
____ अहीं प्रश्न ए थाय के भृगुकच्छथी पाटण पहोंचता घणा दिवस लागे ज. आम्रभटना नृत्य-आनन्दनो प्रसङ्ग खरेखर तो प्रतिष्ठा-दिने ज सांजे बनेलो होवो जोईए. तेमां ज औचित्य पण छे. जो ते ज दहाडे ते घटना बनी होय तो आचार्य गाममां ज होय, तो तेमणे गगनमार्गे आववानुं रहे ? पछी 'स्वस्थाने' नो अर्थ 'उपाश्रये' एवो ज थाय.
बीजूं, धारो के आचार्य पाटण पहोंच्या पछी आ उपद्रव उद्भव्यो. पण तो तेना समाचार भृगुकच्छथी पाटण पहोंचता ३-४ दिवस तो लागे ने ? कदाच वधु दिवसो पण लाग्या होय. तो शुं तेटलो वखत ते निश्चेष्ट ज पडी रह्या हशे ? बहु गोटाळो थाय छे. गळे ऊतरे नहि.
वळी, आचार्यमां यौगिक शक्तिओ होय ते स्वीकारवा छतां आकाशगमनविद्या होय तेवं, अने आवा प्रयोजन माटे तेनो उपयोग करे तेवू पण, मानवामां आवतुं नथी. आटली शक्ति होय ते व्यक्ति तो स्वस्थाने रह्या रह्या ज उपद्रवनुं निवारण करी शके !
आ गोटाळानुं निराकरण एक ज रीते सम्भवे : आचार्य भृगुकच्छमां ज होय; अने प्रतिष्ठाना दिने ज सांजे आम्रभट आनन्दातिरेकमां तृप्त करी रह्या होय, अने ते वेळा पसार थती जोगणीओ द्वारा तेने उपद्रव थयो होय. तेनी खबर पडतां ज आचार्य त्यां गया होय, अने तेमणे ते उपद्रव, स्वसामर्थ्यबळे निवारण कर्यु होय.
आटलुं अनुमान कर्या पछी 'प्रभावकचरित' जोवानुं बन्युं, तो तेमां
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आ धारणाने ज समर्थन आपे तेवू ज प्रतिपादन जोवा मळ्युं. ते ग्रन्थमां आवता 'हेमचन्द्रसूरिचरित' (पृ. २०७, २०८, श्लोक २७५-७६२)मां आ बनावविस्तृत वर्णन मळे छे, तेमां ७३९मा श्लोकमां "आययौ पादचारेण" "पगे चालतां तेओ आव्या" - आ वाक्य द्वारा गगनयात्रानी, पाटण गयानी बधी वातो कल्पनाजन्य अत्युक्ति होवानुं पुरवार थाय छे, अने उक्त अनुमान लगभग यथार्थ ठरे छे. ___ 'प्रभावकचरित' प्रमाणे समग्र घटनाक्रम आम छे : -
"आम्बडे - आम्रभटे भृगुकच्छमां सुव्रतजिननुं पुराणुं काष्ठमय चैत्य साव जर्जरित थयेलुं जोयुं, अने तेनो जीर्णोद्धार करवानुं नक्की कर्यु. तेणे प्रभुजीने स्वस्थाने जेमना तेम राखीने पुराणो प्रासाद ऊतरावी लीधो अने नवा चैत्यनो पायो खोदाव्यो. ते दरम्यान ज छळ शोधीने जोगणीओ आम्बडने वळगी पडी. तेने लीधे तेना अंगे अंगे पीडा थवा लागी, भूख-तरस न रही, अने शरीर क्षीण थवा लाग्यु. तेथी मातानुं नाम पद्मावती हतुं. तेणे पद्मावतीदेवीनी आराधना करतां देवीए स्वप्नमां कडं के अहीं योगणीओनी महापीठ छे. ते आने लागी छे. आमांथी आने मात्र हेमचन्द्राचार्य ज उगारी शके; बीजुं कोई नहि.
प्रभाते गुरु पासे निवेदन कर्यु. तत्क्षण गुरु पोताना यशश्चन्द्र नामक शिष्यने लईने आम्बड पासे आव्या. यशश्चन्द्र गणितविद्यामां निष्णात हता. तेमणे मन्त्रीनी चेष्टा परथी गणित काढ्यु. अने तेनी माताने गुप्त सूचना आपी के- एक उत्तम, चपल अने विश्वासु माणसने अमारी पासे आजे राते मोकलजो. नगरना द्वारपालोने रात्रे द्वार खोली आपवानी सूचना अपावी. रात्रे आचार्य, यशश्चन्द्र अने पेलो माणस, गोपुर-दरवाजेथी बहार आव्या, ने सैन्धवी देवीना मन्दिरे गया. मार्गमां मन्दिरना द्वार सुधीमां विविध चरितर - प्राणीओना रूपमा - पेदा थयां, तो ते दरेकने रांधेल सुगन्धी बलि-बाकळां आपी, तुष्ट करी दूर कराव्यां. पछी देवी पासे जईने यशश्चन्द्र गणिए कह्यु : "हेमचन्द्राचार्य गुरु पगे चालीने तारा आंगणे आव्या छे. जालन्धरपीठ वगेरे पीठो द्वारा पण ते मान्य - पूजित छे. तेमनुं स्वागत - पूजन करवानुं तारा माटे उचित छे, तारा हितमां पण छे."
आ सांभळतां ज देवी प्रगट थईने हाथ जोडती आचार्य समक्ष आवीने
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________________ 78 अनुसन्धान-५४ श्रीहेमचन्द्राचार्यविशेषांक भाग-२ ऊभी रही. तेने जोतां ज आचार्ये सूचव्यु के 'तारा परिवारे कबजे लीधेला आम्बडने तो जोगणीओए वहेंची लीधो होइ काई थई नहि शके.' त्यारे यशश्चन्द्र गणीए देवीने समजावी के 'तो हवे तुं तारा स्थानके बेसी जो ! हजी आचार्यदेवने मान आप अने आ कार्य कर; तो तेमनुं मान रहे ने तारुं स्थान रहे.' आ सांभळतां ज भयभीत देवीए जोगणीओने आदेश को ने आम्बडने छोडावी देधो. आम्बड स्वस्थ थयो. बीजी सवारे आचार्यनी सूचनाथी आम्बडे सैन्धवीमाताने साहस्रिक (हजार रुपियानो) भोग धराव्यो. ते पछी तेणे चैत्यनो जीर्णोद्धार कराव्यो." प्र.च. नुं आ वर्णन वधु वास्तविक छे, अने प्र.चिं. गत वर्णन अत्युक्तिसभर छे, ते आ बधुं वांच्या पछी स्पष्ट थाय छे. सारांश के आचार्य आकाशगमन-शक्ति धरावता हता, ए प्रकारनी वार्ताओ तेमनुं माहात्म्य वधारवा माटे उपजाववामां आवेली कथामात्र छे, जे कथाओ खुद आचार्य पण मंजूर न राखे. तो, हेमचन्द्राचार्य विषे तेमना समयथी लईने आज सुधीमां फेलाती रहेली केटलीक महत्त्वनी गेरसमजणो के अनुचित वातो आ लेखमां नोंधी, तेनी तथ्यता परत्वे पण ऊहापोह को. एक वात स्पष्ट छे के तेजस्वीनो ज तेजोद्वेष थतो होय छे. द्वेष करीने पण तेमणे आचार्यनी तेजस्वितानो आडकतरो स्वीकार ज को छे एम कही शकाय. आचार्यना तेजने नमन !