________________
अनुसन्धान-५४ श्रीहेमचन्द्राचार्यविशेषांक भाग-२
लेवाने बदले बौद्धो पासे मोकली देवामां आवे छे ! मों-माथां वगरनी आ वात विचारकना गळे शी रीते ऊतरे ? हवे उपरोक्त नोंध उपर त्रिपुटी महाराजे लखेली नोंध जोईए :
"खरतरगच्छनी गद्य पट्टावलीओमां आ. जिनदत्त अने आ. जिनेश्वरबीजाने ऊंचा बताववा माटे अने कलिकालसर्वज्ञ हेमचन्द्रसूरि तेमज गूर्जरेश्वर कुमारपालने नीचा बताववा माटे आवी वातो जोडी काढवामां आवी छे. परन्तु आ. जिनेश्वर बीजानो समय वि.सं. १२७८ थी १३३१ छे. ज्यारे हेमचन्द्रसूरि अने गूर्जरेश्वर कुमारपालनो समय ११९९ थी १२२९ छे. साध्वी हेमश्रीनुं नाम पण कल्पित छे. आथी नक्की छे के पट्टावलीकारोए घणी घटनाओ गच्छरागथी ऊभी करी छे.' (जैन परम्परानो इतिहास-२, पृ. ३५२)
'हेमखाड' विषे ऊपर लखेल वातो अने आ वात - बन्ने वच्चे कट्टरता अने पक्ष/मतना रागने लीधे केटलुं बधुं साम्य जणाई आवे छे !
(४) गिरनारयात्रा अने दशारमण्डप
आपणे त्यां प्राचीन प्रबन्धो द्वारा एक वात प्रचलित छे के हेमचन्द्राचार्य अने कुमारपाल राजा गिरनार तीर्थे गया, त्यारे तेओ बन्ने जणा पहाड ऊपर चड्या नहि. एटला माटे के बे महापुरुषो एक साथे ऊपर चडे तो पहाड हालमडोलम थाय, भूकम्प थाय; एटले बे जणा साथे न चडी शके. प्रसिद्ध पुरुषनी महत्ता अने माहात्म्य वधारवा माटे केवी अतिउक्ति थती होय छे तेनो आ उत्तम नमूनो छे. आ प्रसङ्ग खरेखर आ प्रमाणे छे :
"राजा कुमारपाल, चतुरङ्ग सैन्य अने चतुर्विध संघ साथे, गुरु हेमचन्द्रनी निश्रामां तीर्थयात्राए नीकळ्या. थोडा ज वखतमां रैवतपर्वतनी नीचे गिरिनगर (गिरिनार) पासे आवीने तेणे पडाव नाख्यो. त्यां राजाए भुवनना अलङ्करणसरीखो ‘दशारमण्डप' दीठो, तेमज अखाडावाळो उग्रसेनराजानो महेल पण जोयो. ते चकित थयो, अने गुरुने पूछ्युं के आ बधुं शुं हशे? जवाबमां आचार्ये जणाव्यु के द्वारावती-द्वारिकामा समुद्रविजय आदि दश दशारो वसता हता. तेमां दशमा दशारनुं नाम वसुदेव हतुं, तेना पुत्र ते कृष्णवासुदेव. वळी,