________________
६६
अनुसन्धान-५४ श्रीहेमचन्द्राचार्यविशेषांक भाग-२
गुरु पासे लई जई रजू करे - आ मर्यादा छे. ५. आचार्य क्रोधान्ध थाय अने हझरतने बांधी लाववानो हुकम शिष्योने करे ए वात ज हास्यास्पद छे; आ कांई एवी आफत नहोती के जेने माटे आटलो मोटो उश्केराट लाववो पडे ! अने आचार्य पासे तो राजा हतो ज; तेने कहे ते बनी शके; पण आ तो साधुए कायदो हाथमां लीधानी रजूआत छे, जे केवळ मूर्खतानुं प्रदर्शन ज करे छे. ६. आचार्य रत्नजडित पत्थर-चोकी पर त्यां आवे, पछी ऊडी जाय, आ बेहूदी वात केम मानवी ? ए तो बांधवा माटे आव्या'ता एम पुस्तकनुं कथन छे, तो ते ऊडी शुं काम जाय ? तमाचानी बीकथी ? नयँ हास्यास्पद ! ७. हझरते जूता वडे मार्या ने चोकी साथे आचार्य जमीनमा गरक थई गया (पछी पाछा काढ्या के नीकळ्यानी तो वात छे नहि !) तो पछी आचार्यना शेष जीवननीमृत्युनी-बधी वातो खोटी ज गणवी ? ८. कुमारपालनी पासे कलमा पढाव्या वगेरे वात पोताना मजहबने ऊंचो देखाडवानी बालिश चेष्टाथी विशेष शुं होई शके ? सार ए के, उपरनी रजूआतमांनी एक पण बाबत गळे ऊतरे तेम नथी; अने धर्मना प्रचार माटे कट्टरपंथी तथा झनूनी लोको शुं करी शके छे, केवा प्रचार अने चमत्कार उपजावी शके छे, ते समजवा माटे आ मजेदार दाखलो बनी रहे तेम छे. आगळ जोईए. आ ज चोपडीमा आगळ लख्युं छे :
__ "इसी मस्जिदे आदीना के करीब, एक जैन मुनी हेमचन्द्राचार्य जतीकी पोशाल और पाठशाला थी । एक रोझका वाकेआ है के, हझरत मखदूम रे.अ. के कुछ शागिर्द बाहर गये हुए थे, इसी अस्नामे हेमचन्द्राचार्य जती के भी कुछ शागिर्द-चेले बाहर से, झोलियों में मिठाइ लेकर पाठशाला तरफ आ रहे थे ।
छोटी मस्जिद-जहां हझरत का मकाम था - जिसके पिशाबखाने की दिवार पर रखा हुवा ढेला जती के चेले की झोलीमे पवनकी वजह से गिरा। जब जती के चेले मिठाइ तकसीम करते थे, ओर ये मिठाइ खत्म न होती थी । आखिर जती हेमचन्द्रचार्य ने ये समज लीया के, उस फकीर - ह. मखहूम हिसामुद्दीन रे.अ. की हरकत है। उसने ह. मखदूम रे.अ. को बुलावाया
और कहा, 'अगर कोइ करामत-ताकत रखते हो तो बताओ' । आप रे.अ. ने फरमाया 'मेरे पास कुछ भी नही, तु अपना करतब बता ।' हेमचन्द्राचार्य