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अनुसन्धान-५४ श्रीहेमचन्द्राचार्यविशेषांक भाग-२
तेमनी नोंध बोले छे. आ लेखनी नकल मुनिश्री सुयशचन्द्रविजयजी तरफथी प्राप्त थई छे.
(२) "संवत् १२२३ वर्षे माघ वदी ८ वीरासुतेन देपलाकेन भ्रातृय.... माडुकस्य श्रेयसे चतुर्विंशतिपट्टः कारितः प्रतिष्ठितश्च श्रीहेमचन्द्रसूरिभिः ॥१
आमां पण स्थळनाम नथी, ते जोई शकाय छे.
आ लेखो "हेमचन्द्राचार्य' साथे जोडायेला होय एवं मानवानुं मन एटला माटे नथी वधतुं के आचार्य पाटण छोडीने थरादनी दिशामां - खास करीने १२२० ना गाळामां – गया होय तेनां कोई प्रमाण मळतां नथी. बल्के ते समय तेमना जीवननां महान् कार्यो माटेनो श्रेष्ठ समय होईने तेमणे पाटण छोड्युं होय ए बनवाजोग नथी लागतुं. बीजूं, अमना जेवा आचार्य प्रतिष्ठा करावे ने प्रतिमा पर गामनु के भगवाननुं नाम पण न लखावे, अने पोताने माटे 'प्रभु' एवं विशेषण लखावे, पोतानो परिचय आपतुं गच्छनाम इत्यादि न लखावे - आ बधुं कोई रीते गळे ऊतरतुं नथी. त्रिपुटी महाराजनी वात वधु वजनदार लागे छे. वस्तुतः आचार्ये प्रेरेलां के तेमना द्वारा प्रतिष्ठित देरासरोनो तथा बिम्बोनो विनाश ज करवामां आवेलो होई तेमना द्वारा प्रतिष्ठित बिम्बो मळवां बहु मुश्केल छे. आटली नोंध ळकवानो आशय एटलोज के हेमचन्द्रसूरिना नामोल्लेख धरावती वस्तु मळी आवे तो हरखाई जईने तेनो सम्बन्ध कलिकालसर्वज्ञ साथे जोडवानी उतावळ करवा जेवू नथी. १. ई. १९९७मां प्रकाशित 'अनुसन्धान-८'मां पृ. ८१ पर आपेल 'ट्रंक नोंध'मां आ
प्रतिमालेख आपेल छे. तेनी साथेनी नोंधमां आ प्रतिमाने हेमचन्द्राचार्य द्वारा प्रतिष्ठित गणावेल छे. ते नोंधमां "१२२३मां हेमचन्द्रसूरि एक ज हता, बीजा नहि, ते इतिहासथी सिद्ध छे." - एवं पण लखेल छे.
आजे लागे छे के ए विधानो अधकचरां ज हतां. योग्य जाणकारीनो अभाव - ए ज आनुं निदान गणाय.
मलधारी हेमचन्द्रसूरि हेमचन्द्राचार्यना पूर्वसमकालीन हता, अने सिद्धराजना राज्यकाळ दरम्यान ज काळधर्म पाम्या हता, एटले १२२३ मां तेओ होय ते असम्भवित छे. अन्य हेमचन्द्रसूरि ते वखते आचार्य हता के केम ते जाणवा- कोई साधन नथी.
आम छतां, आ प्रतिमालेख क.स. हेमाचार्यनो निर्देश करे छे ते वात मानवानुं मन थाय तेम नथी. कारणमां त्रिपुटी महाराजे नोंध्युं छे तेम आवा लेखो बनावटी पण लखाता हता; तो आ लेख पण तेवो होय तो ? अस्तु.