________________
फेब्रुअरी २०११
तो हेमाचार्यनी पावन भूमि 'हेमखाड'नी आ छे कथा. आ लखवा पाछळ कोईनी ये लागणी दूभववानो आशय नथी, परन्तु आ परिस्थिति थकी अमारी – जैनोनी धर्मलागणी खूब ज दूभाय छे ते चोक्कस छे, अने तेने वाचा आपवा माटेज आटलुं सन्तुलित - संयमित शब्दोमां अहीं नोंध्युं छे.
हेम-प्रतिमालेखो
६९
हेमचन्द्राचार्यना हस्ते प्रतिष्ठाओ तो थई ज हशे तेनी तवारीख ओछी ज मळे छे. सं. १२२८नी प्रतिष्ठाना उल्लेख जरूर मळे छे, परन्तु मुहूर्तफेरना कारणे बहु थोडा ज वखतमां ते मन्दिरो अने मूर्तिओनो नाश थयानी जाणकारी पण इतिहास आपे छे. फलतः तेमणे प्रतिष्ठा करी होय तेवी प्रतिमा अने परना लेखो जवल्ले ज मळे छे. जे मळे छे, ते पण हेमचन्द्राचार्यना ज सम्बन्धित होय ते विषे द्विधा प्रवर्ते छे. कारण के - हेमचन्द्राचार्यना समयमां तेमना समान नामवाळा अन्य पण बे आचार्य हता. एक, मलधारी श्रीहेमचन्द्रसूरि. तेमनो स्वर्गवास पण पाटणमां ज थयो छे. बे, वडगच्छना श्रीविजयसिंहसूरिना शिष्य अने श्रीसोमप्रभसूरिना गुरुभाई श्रीहेमचन्द्रसूरि. एटले जे ते प्रतिमा परनुं नाम कया हेमचन्द्रसूरिनुं छे ते नक्की थवुं कठिन छे.
बीजी वात, ‘जैन परम्परानो इतिहास' ग्रन्थमां (भाग २, पृ. ३५३, ई. २००१) त्रिपुटी महाराजे नोंध्युं छे "आ ज रीते (जिनदत्तसूरिना बनावटी लेखोनी रीते), कोई यतिए क. स. हेमचन्द्रसूरिना नामना बनावटी प्रतिमालेखो कोतराव्या छे. अमे आवा प्रतिमा लेखो अजारीमां जोया हता अने त्यांना श्री संघने साफ जणाव्युं हतुं के आ लेखो बनावटी छे."
अत्यारे बे प्रतिमालेखो मारी समक्ष छे. एक लेख, विख्यात तीर्थोना इतिहासकार मुनि श्रीजयन्तविजयजीना अप्रगट साहित्यमां सचवायेलो आ प्रमाणे छे :
(१) "सं. १२२० ज्येष्ट शुदि ५ र.... श्रेयसे श्रीशालकेन श्रीपार्श्वप्रतिमा कारिता प्रभुश्री हेमचन्द्रसूरिभि: ॥"
आमां ‘प्रतिष्ठाता' शब्द नथी, गाम के स्थळनुं नाम पण नथी, ते मुद्दा ध्यानार्ह छे. आ लेख, वर्षो पूर्वे, जयन्तविजयजीए थरादना महावीरस्वामी जिनालयमां विद्यमान पार्श्वनाथनी एकलबिम्बात्मक प्रतिमा परथी उतार्यो छे, तेम
-