Book Title: Hemchandracharya mate Pravarteli Bhramanao ane tenu Nirasan
Author(s): Shilchandrasuri
Publisher: ZZ_Anusandhan
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फेब्रुआरी २०११
७७
आ धारणाने ज समर्थन आपे तेवू ज प्रतिपादन जोवा मळ्युं. ते ग्रन्थमां आवता 'हेमचन्द्रसूरिचरित' (पृ. २०७, २०८, श्लोक २७५-७६२)मां आ बनावविस्तृत वर्णन मळे छे, तेमां ७३९मा श्लोकमां "आययौ पादचारेण" "पगे चालतां तेओ आव्या" - आ वाक्य द्वारा गगनयात्रानी, पाटण गयानी बधी वातो कल्पनाजन्य अत्युक्ति होवानुं पुरवार थाय छे, अने उक्त अनुमान लगभग यथार्थ ठरे छे. ___ 'प्रभावकचरित' प्रमाणे समग्र घटनाक्रम आम छे : -
"आम्बडे - आम्रभटे भृगुकच्छमां सुव्रतजिननुं पुराणुं काष्ठमय चैत्य साव जर्जरित थयेलुं जोयुं, अने तेनो जीर्णोद्धार करवानुं नक्की कर्यु. तेणे प्रभुजीने स्वस्थाने जेमना तेम राखीने पुराणो प्रासाद ऊतरावी लीधो अने नवा चैत्यनो पायो खोदाव्यो. ते दरम्यान ज छळ शोधीने जोगणीओ आम्बडने वळगी पडी. तेने लीधे तेना अंगे अंगे पीडा थवा लागी, भूख-तरस न रही, अने शरीर क्षीण थवा लाग्यु. तेथी मातानुं नाम पद्मावती हतुं. तेणे पद्मावतीदेवीनी आराधना करतां देवीए स्वप्नमां कडं के अहीं योगणीओनी महापीठ छे. ते आने लागी छे. आमांथी आने मात्र हेमचन्द्राचार्य ज उगारी शके; बीजुं कोई नहि.
प्रभाते गुरु पासे निवेदन कर्यु. तत्क्षण गुरु पोताना यशश्चन्द्र नामक शिष्यने लईने आम्बड पासे आव्या. यशश्चन्द्र गणितविद्यामां निष्णात हता. तेमणे मन्त्रीनी चेष्टा परथी गणित काढ्यु. अने तेनी माताने गुप्त सूचना आपी के- एक उत्तम, चपल अने विश्वासु माणसने अमारी पासे आजे राते मोकलजो. नगरना द्वारपालोने रात्रे द्वार खोली आपवानी सूचना अपावी. रात्रे आचार्य, यशश्चन्द्र अने पेलो माणस, गोपुर-दरवाजेथी बहार आव्या, ने सैन्धवी देवीना मन्दिरे गया. मार्गमां मन्दिरना द्वार सुधीमां विविध चरितर - प्राणीओना रूपमा - पेदा थयां, तो ते दरेकने रांधेल सुगन्धी बलि-बाकळां आपी, तुष्ट करी दूर कराव्यां. पछी देवी पासे जईने यशश्चन्द्र गणिए कह्यु : "हेमचन्द्राचार्य गुरु पगे चालीने तारा आंगणे आव्या छे. जालन्धरपीठ वगेरे पीठो द्वारा पण ते मान्य - पूजित छे. तेमनुं स्वागत - पूजन करवानुं तारा माटे उचित छे, तारा हितमां पण छे."
आ सांभळतां ज देवी प्रगट थईने हाथ जोडती आचार्य समक्ष आवीने

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