Book Title: Hemchandracharya mate Pravarteli Bhramanao ane tenu Nirasan
Author(s): Shilchandrasuri
Publisher: ZZ_Anusandhan

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Page 14
________________ फेब्रुअरी २०११ कालाग्निमिव दुःसह' वर्णव्यो छे. तो मंजरीने अत्यन्त तेजस्विनी, पवित्र अने भलभलाने आकर्षे तेवी छतां सहुनां गर्व गाळी नाखनारी वर्णवी छे. ७५ सामान्य रीते आ कथाश्रेणिमां जैनोने ऊतारी पाडवानी एक पण तक मुनशीए छोडी नथी. परन्तु हेमचन्द्राचार्यने मंजरीना सौन्दर्य प्रत्ये आकर्षाता, विह्वळ बनता अने अनुचित प्रार्थना करता कल्पीने तो तेमनी कल्पनाशक्तिए स्वच्छन्दतानां शिखर सर कर्यां छे. जैनद्वेष अने आत्मरति आ प्रसङ्गमां तेनी पराकाष्ठाए पहोंचे छे. सुज्ञ वाचकने काक- मंजरीमां मुनशी - दम्पतीनी काल्पनिक छबी अवश्य अनुभवाय. आनो विरोध पण घणो थयेलो थतो रह्यो छे. मुनशी पीढ राजपुरुष-मुत्सद्दी होई तेमणे ते विरोधने गांठ्यो नथी, ए तेमनी दृढता काबिलेदाद छे. साहित्यकारनी अभिव्यक्तिनी स्वतन्त्रतानो सिद्धान्त तेमने बचावे पण छे, बळ पण पूरुं पाडे छे. - विचित्रता ए छे के आ विरोधने 'साम्प्रदायिक मानसने लागेलो धक्को' गणाववामां आवेलो. एम पण कहेवायुं के 'हेमचन्द्राचार्यने महान सिद्ध करवा होय तो एमना जीवनमां एक मंजरी आणवी ज जोईए. अर्थात् आचार्यने चारित्र्यनुं पगथियुं चूकवा माटे तत्पर बताव्या ते पण तेमनी महानता सिद्ध करवाने ज ! केवी वाहियात दलील ! थोडा दहाडा अगाऊ ज डॉ. मधुसूदन ढांकी साथे वात चाली त्यारे तेमणे कहेलुं के हेमचन्द्राचार्यनी प्रतिभानुं खण्डन करवामां मुनशीए पूरा जैनद्वेषनुं प्रदर्शन कर्तुं छे. ए भयङ्कर जैन-द्वेषी हता, शङ्का नथी. आ सन्दर्भमां आ प्रकरणना प्रारम्भे लखेल बाबत विचारवा योग्य छे. (६) हेमाचार्यनुं आकाशगमन प्रबन्धोमां क्यारेक थयेली अतिशयोक्तिओए आचार्यनो महिमा वधार्यो छे के ओछो कर्यो ? ते एक सवाल छे. ह. मखदूम शाह वाळा प्रसङ्गमां आचार्यने उडता देखाडवामां आव्या छे. तेनो अर्थ ए के आचार्य पासे तेवी शक्ति होवानुं जैन प्रबन्धोमां क्यांक वर्णवायुं हशे. तपास करतां ए वात जडे

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