Book Title: Hemchandracharya mate Pravarteli Bhramanao ane tenu Nirasan
Author(s): Shilchandrasuri
Publisher: ZZ_Anusandhan

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Page 6
________________ ६७ फेब्रुआरी २०११ जती, एक काले पत्थर की सिला पर बैठा, और ये केहता हुआ उडा के 'मंय जन्नत के मेवे लाकर बताता हुँ' । और नझरोसे गायब हो गया । आप रे.अ.ने अपने पीरो-मुरशदकी पाउकी लकडे की खडाम को इशारा कीया, वो खडाम उडी, ओर उस जती को सरमें मारती हुई पत्थर समेत नीचे ले आई । वो जती वहीं झेरे झमीन गारत हो गया । (ये बात जैनो के पुस्तकोमें मौजुद है, ओर मेरे वालिदेबुझुर्गवार, बालासिनोर स्टेटमें तेहसीलदार थे जब एक जती थे जो जादुइ विद्या और करतबोका आमिल था, उसने मेरे वालिदे बुझुर्गवार को बताई थी ।) शायद, हेमचन्द्राचार्य जतीने, नरसंगा वीरको ताबे कीया हुआ था, जिसकी ताकातसे वो उडा था । उस नरसंगा वीर को भी आप रे.अ.के मकबरे में दाखिल होने की जगा पर, काले पत्थर के नीचे गारत कीया हुआ है।" (पृ. १३-१४). बन्ने प्रसङ्ग वांच्या पछी समजी शकाय तेम छे के एक ज प्रसङ्ग छे, तेने बे रीते कथारूपे व्यक्त करवामां आवेल छे. पहेलामां आचार्य रे.अ. पासे गया छे, तो बीजामां तेमने पोतानी पासे बोलाव्या छे. पहेलामा कुमारपालनी वात छे, बीजामां नरसंगा वीरनी वात छे. लेखक पोते पण घटनाक्रम तथा पात्रो विषे स्पष्ट नथी. मजहबमां चालती दन्तकथा प्रमाणे ते चालतां जणाय छे. आ बीजा लखाणमांनी विसंगतिओ जोईए : १. मस्जीदनी पासे ज हेमाचार्यनो उपाश्रय होवा- लेखक जणावे छे. ते वात ज प्रमाणित करे छे के पोताना जुल्मी आक्रमणकाळ दरम्यान, मुस्लिम वर्गे पोशालनी नजीकनी जग्या पर कबजो लई त्यां पोतानां स्थानो बनाव्यां हशे. सम्भव छे के ते स्थान 'हेमखाड' होय. २. मीठाई खतम ज न थवी, पत्थरने चलाववो, ऊडवू, जूता वडे मारीने नीचे लाववा - आ बधुं ज 'इन्द्रजाल' (मायाजाळ) छे. ते बधुं एक मदारी, जादूगर के नजरबंदीना खेलवाळो पण करी बतावी शके तेम छे. जो आचार्यने उडतां आवडतुं होय, तो जूताने पाछा हझरत पर मोकलतां, मीठाईनो अन्त आणतां आवडतुं ज होत. आचार्य योगी-योगसाधक जरूर हता; जादूगर नहि. योगसाधनाना प्रतापे अमुक चमत्कारिक लागतां काम ते करी शकता, परन्तु तेमां इन्द्रजाल, जादू, नजरबन्दी

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