Book Title: Heersaubhagya Mahakavyam Part 03
Author(s): Devvimal Gani, Sulochanashreeji
Publisher: Kantilal Chimanlal Shah

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Page 9
________________ शुद्धिपत्रक शुद्ध अदीद्युतद् श्लाधते स्म ज्ञातम् स्वय अनगार ४६३ ४६६ ४६७, . अभजत भुव ४६८ अशुद्ध .. अदिद्युतत् श्लाधत स्म ज्ञातिमि स्वय अनगर भजम्द्रुव मुखद्वदनाग्दह यदर्थ कामपिया महांसाहस क्षेत्रोभ्दूतां नरकाभ्दूतां सग्दगमन गोरात् मुम्दाव: हतधारण मरुग्दिरिं: दुराकजनीय गज इव गवामवीश महेस्तेज हतेपा ४७० ४७१ ४७१ .४७२ ४७२ ४७२ ४७२ ४७२ ५७८ ४७९ ४८७ वदनाद्गर यदर्थ कामपिता महांहसां क्षेत्रोद्भूतां नरकाद्भूतां सद्गमन गोचरात् मुद्भाव: व्रतधारण मरुदगिरि : दुराकेतनीय गजा इव गवामधीश महस्तेज एतेषां मैत्र्य पेपिवान्य ज्ञानानासद्भूतानां कल्पितानप महानुत्तमजनः पात्पते श्लोक ५ ( टीका) १० ( टीका) १२ ( टीका) १३ (टीका) १४ (टीका ) १५ (टीका) २० ( टीका ) २१ ( टीका) २१ ( टीका) २३ ( भूल) २३ (टीका) २३ (टीका) २४ (टीका) २४ (टीका) ३५ (,) ३७ (,) ५४ (,) ५६ (,) ५७ (,) ५५ (,) ५५ (,) ५५ (,) ५५ ( ,,) ४५ ( ,,) ६८ (ठीका) ७१ ( ,,) ७१ (,) ७३ ( ,,) ७४ (मूल) ४८८ ४८५ ४५० ४५० ४५० मैत्य - ४५० पेपिवान्थ ज्ञानागां सम्वृत्ताना कल्पितानात्य महानुत्तजनः पात्य। ४९६ ४८७

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