Book Title: Heersaubhagya Mahakavyam Part 03
Author(s): Devvimal Gani, Sulochanashreeji
Publisher: Kantilal Chimanlal Shah

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Page 12
________________ श्रीमद् देवविमलगणि-विरचितम् હીરસૌભાગ્ય મહાકાવ્ય स्वोपज्ञया व्याख्यमा समल कुकृतम गूर्जर भाषानुवाद- सुशोभितम् तृतीय भागः 455 चतुर्दश: सर्ज : ! अथ प्रदेशीव स केशीनामुना विधातुकामः सुकृतस्य संकथाम् । इदं महीन्दुर्मुनिचन्द्रमब्रवीन्पुनन्तु पूज्या मम चित्रशालिकाम् ॥ १ ॥ अथ साहिजातानामाशीर्वाददानानन्तरं स महीन्दु' सुधासुधांशुर कब्बर ला हिर्मुनिचन्द्र रविजयसूरिं प्रति इदमेतदग्रे वक्ष्यमाणमब्रवीद्वभाषे । किंभूतः सः । अमुना सूरिणा सम तस्य धर्मस्य कथां वार्ताम् । धर्म गोष्ठीमित्यर्थ: । विधातु कामः कतु मिच्छन । कइव | देशीव । यथा प्रदेशी नामा राजा केशिना श्रीपार्श्वनाथापत्य केशिगणधरेण सार्धं धर्मकथां कर्तुकाम आसीत । इदं किम् । हे पूज्या जगन्मान्या भगवन्तः, मम शालिक पुनन्तु पवित्रीकुर्वन्तु ।।

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