Book Title: Haribhadra ke Grantho me Drushtant va Nyaya
Author(s): Damodar Shastri
Publisher: Z_Umravkunvarji_Diksha_Swarna_Jayanti_Smruti_Granth_012035.pdf

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Page 3
________________ चतुर्थ खण्ड / १३० विषय-वस्तु को स्पष्ट करते हुए उचित उदाहरणों दृष्टान्तों का प्रयोग करना चाहिए।' उन्होंने 'आचार्य' के लिए उदाहरण व हेतु के प्रयोग में निपूण होने की अपेक्षा को उचित ठहराया। जैन-परम्परा में प्राचार्य के लिए नाना उपाख्यानों दृष्टान्तों में कुशल होनाएक अपेक्षित योग्यता मानी गई है । २० 'दृष्टान्त' का अर्थ, और उसके पर्याय नियुक्तिकार के मत में ज्ञात, उदाहरण, उपमा, निदर्शन-ये सभी एकार्थक हैं, परस्पर पर्याय हैं । २१ आख्यानक (कल्पित या ऐतिहासिक कथाएँ) उपमान, उपपत्ति—इन्हें भी दृष्टान्त के पर्याय रूप माना गया है ।२२।। 'दृष्टान्त' पद की निरुक्ति करते हुए प्रा. हरिभद्र ने बताया कि 'जो दृष्ट अर्थ तक पहँचा दे, वह 'दृष्टान्त' है। २3 उक्त निरुक्ति और पर्यायों को सामने रख कर 'दृष्टान्त' का स्वरूप इस प्रकार समझा जा सकता है-किसी वस्तु या प्रसंग-विशेष को अधिक स्पष्ट करने के लिए जो लौकिक या शास्त्रीय उदाहरण निदर्शन प्रस्तुत किया जाय, वह 'दृष्टान्त' है, वह उपमा या सादृश्य-बोधक मात्र भी हो सकता है, उदाहरण भी, अथवा समर्थनकारी कोई कहानी-किस्सा भी हो सकता है। न्याय-शास्त्र में अनुमान-वाक्य में प्रयुक्त पांच अवयवों में 'दृष्टान्त' (या उदाहरण) का परिगणन किया गया है ।२४ वादी–प्रतिवादी या लौकिक परीक्षक समीक्षक को साध्य व हेतु-इन दोनों के साहचर्य का, या साध्य के अभाव में हेतु के प्रभाव का निश्चय कराने के लिए, संदेहरहित कोई उदाहरण ( जो प्रासंगिक अनुमान के साथ वैचारिक साम्य रखता हो) प्रस्तुत किया जाता है-वह 'दृष्टान्त' है । ५ आ. हरिभद्र ने अनुमानावयव 'दृष्टान्त' का भी निरूपण किया है। प्रस्तुत निबंध में उक्त अनुमान-प्रक्रियागत 'दृष्टान्त' गहीत नहीं है। न्याय और दृष्टान्त : साम्य व वैषम्य न्याय, दृष्ट, अभिसमन्वागत-ये एकार्थक हैं । २० 'न्याय' शब्द का प्रयोग कई अर्थों में होता है। जैसे-१. परमात्मपद या मोक्ष अथवा अभीष्ट अर्थ का साधक उपाय, २. मुमुक्ष साधक का सदाचार, ३. प्रस्तुत अर्थ का साधक प्रमाण२८ ४. दयावृत्तिता । २8 ५. प्रमाणों से अर्थ-परीक्षण की प्रक्रिया।३० ६. अनुमिति–प्रक्रिया का साधक पंचावयवात्मक वाक्य. ७. (अनुमिति में चरम कारण) लिंग-परामर्श के प्रयोजक शब्द-ज्ञान का जनक वाक्य ३२ ८. युक्ति, या युक्ति का प्रतिपादक शास्त्र । 33 . लोक व शास्त्र में प्रसिद्ध घटना-विशेष के दृष्टान्तों को भी 'न्याय' कहा जाता है ।३४ धवला-कार के मत में ज्ञेयानुसारी सिद्धान्त 'न्याय' है।३५ प्रस्तुत निबन्ध में 'न्याय' पद से घटना-विशेष पर आधारित 'सिद्धान्त-विशेष' गृहीत किया गया है। न्याय और दृष्टान्त में काफी समानता है। वस्तुत: 'न्याय' 'दृष्टान्त' का ही एक प्रकार है । इन दोनों में सूक्ष्म भेद-रेखा भी है, वह यह कि 'न्याय' किसी घटना-विशेष पर आधारित सिद्धान्त का प्रतिनिधित्व करते हैं, और वक्ता उपदेशक उक्त सिद्धान्त के क्रियान्वयन www.jainelibrary.org | Jain Education International For Private & Personal Use Only

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