Book Title: Haribhadra ke Grantho me Drushtant va Nyaya
Author(s): Damodar Shastri
Publisher: Z_Umravkunvarji_Diksha_Swarna_Jayanti_Smruti_Granth_012035.pdf
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आ. हरिभद्र के ग्रन्थों में दृष्टान्त व न्याय / १३७
निरन्तर जल आता रहता है, अत: जल की कभी कमी नहीं होती। यह प्रवाह निरन्तर होता रहे इसके लिए पत्थर, कीचड़ आदि अवरोधक तत्त्वों को हटाना भी उचित है, वैसे ही पवित्र मन में शुभ भावनाओं का प्रवाह उत्तरोत्तर समृद्ध होता रहता है। ८४ साधक को चाहिए कि धर्मोपदेश सुनने आदि कार्य को करता रहे ताकि शुभ भावना का प्रवाह कभी अवरुद्ध न हो।८५
८. मूर्खताकिक-दृष्टान्त योगदृष्टिसमुच्चय (पद्य सं. ९१) में छिद्रान्वेषी व कुतर्की व्यक्ति की दुर्दशा का दृष्टान्त देकर, कुतर्क की अनुपादेयता/तुच्छता का प्रतिपादन किया गया है। प्रस्तुत दृष्टान्त एक घटना के रूप में है। एक तार्किक कहीं जा रहा था। मार्ग में एक मदोन्मत्त हाथी दौड़ता हुआ पा रहा था । सभी लोग रास्ते से हट कर सुरक्षित स्थान पर खड़े हो गए किन्तु वह तार्किक वहीं खड़ा रहा। वह तर्क कर रहा था कि हाथी समीपस्थ व्यक्ति को ही मारता (मार सकता) है। सब से समीपस्थ व्यक्ति तो हाथी पर बैठा महावत ही है, उसे ही मारेगा, मुझे नहीं। इसी बीच वह हाथी नजदीक आ गया और उस तार्किक पर झपट पड़ा। किसी उपाय से महावत ने अंकशादि का प्रयोग कर उस ताकिक के प्राणों की रक्षा की।
९. अज्ञानिशबरक्रिया-दृष्टान्त इस दृष्टान्त का प्रयोग योगबिन्दु (पद्य नं. १४८) में किया गया है। अज्ञानी जन ' की क्रिया में दोषबहलता ही रहती है, कभी-कभी प्रांशिक रूप से सच्चेष्टा का आभास होता है, किन्तु अज्ञानमय होने के कारण सम्पूर्ण क्रिया दोषपूर्ण ही मानी जाएगी। इस तथ्य को समझाने के लिये एक अज्ञानी भीलराज की कहानी का दृष्टान्त प्रस्तुत किया गया है। कथा इस प्रकार है
एक भीलराज अपने साथी भीलों के साथ दुराचारपूर्ण जीवन बिता रहा था। लोगों को लूटना, मांस-मदिरा का सेवन करना उनका दैनिक कृत्य था। एक बार एक तापस उसके पास आगया और उसने अपने सदपदेश के प्रभाव से भीलों को भक्त बना लिया। तापस के मस्तक पर मोर-मुकूट शोभित होता रहता था। वह मुकुट भीलराज को काफी मन भाया । उसने तापस से वह मुकुट देने के लिए कहा, किन्तु तापस ने देने से इन्कार कर दिया । भीलराज ने साथियों को आदेश दिया कि तापस को मार कर मुकुट ले पायो, किन्तु साथ ही यह भी कहा कि ख्याल रखना कि तापस हम सब के गुरु हैं, इसलिए उन्हें पैर मत लगाना क्योंकि गुरुजनों को पैर छु जाये तो पाप लगता है । भीलों ने वैसा ही किया । यहाँ भीलराज की सारी क्रिया अज्ञानमय होने से दोषपूर्ण ही है। गुरु के प्रति आदर प्रदर्शित करने वाली बात निस्सार है । भीलराज के मन में तापस के प्रति थोड़ा सा भी आदर होता तो वह तापस को मारने का आदेश क्या दे सकता था ?
१०. मयूरी-दृष्टान्त मयूरी-दृष्टान्त द्वारा सद्योग साधक की आत्मिक आन्तरिक विशेषताओं की महत्ता प्रतिपादित की गई है । जैसे, मयूरी के अण्डों में अन्य पक्षियों के अण्डों की तुलना में अधिक
धम्मो दी) संसार समुद्र में धर्म ही दीय है
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