Book Title: Haribhadra ke Grantho me Drushtant va Nyaya
Author(s): Damodar Shastri
Publisher: Z_Umravkunvarji_Diksha_Swarna_Jayanti_Smruti_Granth_012035.pdf
View full book text ________________ चतुर्थ खण्ड / 142 81. भणियं कवणायं (श्रावक-प्रज्ञप्ति-३४७)। 52. श्रावक-प्रज्ञप्ति-३४५-३४७, पंचवस्तुक-१२२४, षोडशकप्रकरण-९।१४, 83. पंचवस्तुक-१०१ 84. योगबिन्दु-३४५, 85. योगबिन्दु-३४६-३४९, 86. जातिप्रायश्च सर्वोऽयं प्रतीतिफलबाधतः / हस्ती व्यापादयत्युक्ती प्राप्ताप्राप्तविकल्पवत् (योगदृष्टिसमु०-९१) / 87. यश्चात्र शिखिदृष्टान्तः शास्त्रे प्रोक्तो महात्मभिः। स तदण्डरसादीनां सच्छक्त्यादि प्रसाधन: (योगबिन्दु-२४५)। 88. योगबिन्दु-३५१, षोडशकप्रकरण ( 3 / 11 ) पर यशोविजयकृत टीका, 89. दशवकालिक वृत्ति (नियुक्ति-३७) पृ० 12 90. योगदृष्टिसमुच्चय--१४-१५, तथा स्वोपज्ञ व्याख्या। तुलना-अभिधर्मदीप-११४३ पर विभाषाप्रभा टीका, तथा-११४१ पर भाष्य / / 00 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
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