Book Title: Gyani Purush Ki Pahechaan Author(s): Dada Bhagwan Publisher: Dada Bhagwan Foundation View full book textPage 9
________________ नहीं होती, इसलिए उनका निरंतरायपद होता है। 'ज्ञानी पुरुष' का व्यवहार आदर्श होता है। किसी को खुद के निमित्त से जरा सी भी अड़चन नहीं पहुँचाते। वे समजपूर्वक के सरल होते है। लोग उन्हें भोले समजते है, लेकिन वे जानबूझकर लोगों को 'छलने' देते है। उनको जीवन में किसी से संघर्ष हुआ ही नहीं। क्योंकि उनमें 'कॉमनसेन्स''टॉप मोस्ट' रहती है। कोमनसेन्स' से हित और अहित तुरंत दर्शन में आ जाता है और आत्महित एक पल भी बिगड़ने नहीं देते। होता-बढ़ता प्रेम वह प्रेम नहीं किन्तु आसक्ति है। ज्ञानी पुरुष' की करुणा विश्व व्याप्त होती है, प्रत्येक जीव पर होती है। वे अनेकों के आधार होते है, किन्तु खुद किसी का आधार नहीं लेते। ___'ज्ञानी पुरुष' में अपार करुणा होती है, उनमें दया नहीं होती। क्योंकि दया वह अहंकारी गुण है, द्वन्द्व गुण है। दया है तो दूसरी तरफ निर्दयता भरी होती ही है, 'ज्ञानी पुरुष' द्वन्द्वातीत होते है। सब पर समान कारुण्यभाव। चूहे पर भी करुणा और उसे मारनेवाली बिल्ली पर भी उतनी ही करुणा। 'ज्ञानी पुरुष' को त्यागात्याग, त्याग या अत्याग करने का नहीं रहता, वे तो सहज भाव में रहते है। उदयाधीन उनका वर्तन होता है। राग-द्वेष से पर ऐसी वीतरागता उनकी विशेष लाक्षणिकता है। 'ज्ञानी पुरुष' तो संसार में रहते हुए भी वीतराग है। 'ज्ञानी पुरुष' की प्रत्येक क्रिया राग-द्वेष रहित होती है और अज्ञानी की राग-द्वेष सहित होती है, इतना ही फर्क होता है दोनों में! 'ज्ञानी पुरुष' किसी भी तरह से पहचाने नहीं जा सकते। मात्र उनकी वीतरागता से ही वे पहचाने जाते है। अक्रम ज्ञानी' वीतराग है लेकिन संपूर्ण वीतराग नहीं। वे 'खटपटवाले' वीतराग है। उनमें एक खटपट रह गई है कि किस तरह से सबको मोक्षसुख दूँ। दूसरे का आत्यंतिक कल्याण करने के लिए वे सभी खटपट कर लेते है। संपूर्ण वीतराग तो कोई उपर चढ़े तो उसके प्रति भी वीतराग और नीचे गीरे तो उनके प्रति भी वीतराग और 'अक्रम ज्ञानी' तो खटपटवाले वीतराग, वे तो नीचे गिरनेवाले को खटपट करके भी उपर उठा लेते है, वो ही अत्यंत करुणा है 'ज्ञानी पुरुष' की! 'ज्ञानी पुरुष' का प्रेम वह शुद्ध प्रेम है। ऐसा प्रेम वर्ल्ड में कहीं नहीं मिलता। जहाँ सांसारिक कोई स्वार्थ नहीं, केवल आत्मार्थ के लिए निरंतर करुणा बरसती है, वहाँ शुद्ध प्रेम-परमात्म प्रेम प्रगट होता है। ज्ञानी पुरुष' को कभी भी किसी के साथ मतभेद नहीं होता। हजारों भिन्न भिन्न प्रकृतियों से पाला पड़ने के बावजूद भी वे सभी के साथ बिना मतभेद, सबसे अभेदता से, प्रेम स्वरूप से रहते है। यह 'ज्ञानी पुरुष' का बड़ा अजायब गुण है। उनको गाली देनेवाले को भी वो उतने ही प्यार से संवारते है जितना फूल चढानेवाले को। उनका प्रेम तो फूल चढाये तो बढ़ता नहीं, और गाली दे तो कम होता नहीं, निरंतर अगुरू-लघु प्रेम रहता है। कम 15 'ज्ञानी पुरुष' कोई 'स्टान्डर्ड' में नहीं, 'आउट ऑफ स्टान्डर्ड' पूर्ण दशा में है। इसलिए उन्हें माला फेरनी नहीं पडती, पुस्तक पढ़ने की जरूरत नहीं. जो 'फिफ्थ' या 'सिक्स्थ "स्टान्डर्ड' में है, वे माला फिराते है, पुस्तक पढ़ते है। ___'ज्ञानी पुरुष' को पहचानना बहुत मुश्किल है। उन्हें न तो गेरूए वस्त्र है, न सफेद 'बोर्ड'। उन्हें तो जिस लिबास में 'ज्ञान' प्रगट हुआ हो वही लिबास में रहते है। वह फिर धोती, कुर्ता ओर काली टोपी क्यों न हो! 'ज्ञानी पुरुष' को पहचान लिया तो चौदह लोक के नाथ की पहचान हो जाती है। क्योंकि चौदह लोक के नाथ उनमें प्रगट हो गये है। 'ज्ञानी पुरुष' घरसंसार में रहते हुए भी गृहस्थी नहीं होते। सच्चा मुमुक्षु तो 'ज्ञानी पुरुष' के नेत्र को देखते ही, आँखो में वीतरागता देखते ही उन्हें पहचान लेता है। यदि यह द्रष्टि नहीं खुली, तो उनकी वाणी से उनकी पहचान हो सकती है। 'ज्ञानी' की वाणी स्यावाद वाणी होती है। वह किसी भी नय का प्रमाण खंडित नहीं करती। शिव, वैष्णव, मुस्लिम, दिगंबरी, श्वेतांबरी, कोई भी पक्षवाले को 'ज्ञानी पुरुष' की वाणी खुद की ही वाणी लगती है। 16Page Navigation
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