________________
ज्ञानी पुरुष की पहचान
ज्ञानी पुरुष की पहचान
प्रश्नकर्ता : 'मैं ही सब हूँ' वो ही रीत?
औरते, देवीयाँ आ जाये तो 'ज्ञानी' उनके पेकींग नहीं देखते है, वो अंदर क्या चीज है. वो ही देखते है। ये गध्धा है वो भी पेकींग है, कुत्ते का पेकींग है, औरत का पेकींग है, पुरुष का पेकींग है। इस पेकींग में क्या देखने का? कोई लकड़े का पेकींग हो, कोई सोने का पेकींग हो, इसमें हम तो अंदर क्या चीज है, वो देखते है। जो जीर्ण होनेवाला है, जो टेम्पररी एडजस्टमेन्ट है, उसको क्या करने का? जो परमेनन्ट है, उसके साथ हमारा संबंध है।
दादाश्री : वो ठीक बात है। वो तो रियालिटी में 'मैं ही सब हूँ' वह बड़ी बात है। 'तुं ही-तुं ही' नहीं है, अभी 'मैं हूँ-मैं हूँ' सब में है। मगर what is in relative? व्यवहार तो चाहिये न? व्यवहार में तो, इसने ऐसा किया, उसने वैसा किया, ये आम खट्टा है, ये आम मीठ्ठा है, फिर व्यवहार में क्या करने का? रिलेटिव में हम जीवमात्र से अभेद प्रेम से रहते है, निरंतर अभेद प्रेम। हमारी फिलसूफी ये ही है। वो आज खुल्ला कर दिया। जिसको ठीक लगे वो पकड़ ले, नहीं ठीक लगे तो रख दो।
ये 'दादा भगवान' नहीं है। ये तो 'A. M. Patel' है और हम 'ज्ञानी पुरुष' है। 'ज्ञानी पुरुष' और 'दादा भगवान' में क्या डिफरन्स है? दादा भगवान की ३६० डिग्री है और हमारी ३५६ डिग्री है। हमको चार डिग्री कम है, इसलिए हम अलग बताते है। अंदर भगवान है, वो चौदह लोक के नाथ हो गये है और संपूर्ण प्रगट हो गये है। हम भी बोलते है कि 'हम' 'दादा भगवान' को नमस्कार करते है और आपको भी बोलते है कि 'आप भी दादा भगवान को नमस्कार करो।' हमको चार डिग्री कम है तो आपको हन्ड्रेड डिग्री कम है। तो सरप्लस टाईम में 'दादा भगवान को नमस्कार करता हूँ' बोलना। हम ३६० डिग्री पूरी करने के लिए प्रयत्न करते है। प्रयत्न याने प्रयत्न करने की कोई जरूरत नहीं लेकिन 'दादा भगवान' की कृपा माँगते है। आपको भी क्या चाहिये? 'दादा भगवान' की कृपा चाहिये?
हमने ये थीयरी एडोप्ट किया है कि जीवमात्र से अभेद भाव। चाहे वो गुन्डा हो या दानेश्वरी हो। चाहे वो सती हो या वेश्या हो। हमको कोई एतराज नहीं। रिलेटिव में अभेद प्रेम। और हम सभी जीवों को निर्दोष ही देखते है। जीवमात्र निर्दोष ही है लेकिन आप प्रुफ नहीं कर सकते है, हम प्रुफ कर सकते है।
अंत में क्या होने का है? वीतराग होने का है। वीतराग याने एब्सोल्यूट ! I am in absolutism, not in theory but in theorm !! ये थीयरेटिकल बात नहीं है। हम अनुभव की बात करते है। जब हमारी बात पर चलेगा, तो अनुभव में आ जायेगा।
जय सच्चिदानंद
आपके अंदर भी 'दादा भगवान' है लेकिन वो प्रगट नहीं हुए और हमारे अंदर प्रगट हो गये है। छब्बीस साल से प्रगट हो गये है। वो सूरत के स्टेशन पर हमको लाईट लाईट हो गया, फूल लाईट (संपूर्ण प्रकाश) हो गयी, ज्योति स्वरूप हो गये और हमें एक घंटे में सब कुछ दिखाई दिया। फिर कभी सारी जिंदगी में अड़चन ही नहीं रही। वह भगवान के आशीर्वाद से सब कुछ कर सकते है, हम खुद कुछ नहीं कर सकते है।
सारी दुनिया में सभी जीव के साथ मैत्री करने की क्या रीत है? हमारे पास ये रीत है। ये थीयरी नहीं है, थीयरम में है।