________________
ज्ञानी पुरुष की पहचान
ज्ञानी पुरुष की पहचान
जरूरत है। उसको देखकर ही वह अवस्था प्राप्त हो जाती है। जैसे किसी लड़के को जेब काटने में ऐक्सपर्ट करना हो, तो वह कला का जो ऐक्सपर्ट है, उसके पास वह लड़के को छह महिना रखो तो वह छह महिने में तैयार हो जाता है। बस, ये ही रस्ता है, दूसरा रस्ता नहीं है।
दादाश्री : यहाँ प्रवचन रहता ही नहीं। प्रवचन कौन करते है? जो अहंकारी है। बाहर सब लोग प्रवचन ही करते है। हम तो कभी बोले ही नहीं। ये कौन बोलता है आपके साथ? ये आपके साथ ओरिजिनल टेपरेकर्ड बोलती है, उसको आप सुनते है और हम उनके ज्ञाता-द्रष्टा है। उनका व्यवहार ऐसा है। अहंकारी लोग सब प्रवचन ही बोलते है और वो संसार में ही है। हम संसार में एक मिनीट भी रहते नहीं। एक सेकन्ड भी रहे नहीं।
____ पुस्तक में रास्ता लिखा ही नहीं। पुस्तक में ज्ञान नहीं है और अज्ञान भी नहीं है। जो अज्ञान को जानते है, वो ज्ञान को जानने की तैयारी करते है। पुस्तक में अज्ञान हो तो बहुत अच्छा मगर अज्ञान भी नहीं है। अज्ञान जान ले तो ज्ञान क्या चीज है, वो मालूम हो जाता है और ज्ञान जान ले तो अज्ञान क्या चीज है, वो मालूम हो जाता है। सब लोग अज्ञान भी नहीं जानते है और बोलते है कि हम अज्ञानी है। ऐसा अज्ञानी मत बोलो। हम तो उसको अर्धदग्ध बोलते है। आधा जला हुआ, आधा लकड़ी ऐसा।
हमारा ये एक-एक शब्द है, वो ही शास्त्र है, सच्चे शास्त्र है। फिर शास्त्र लिखने में कुछ भूल हो तो वो लिखनेवाले की है। वो ठीक बात है मगर इसमें हमारे बोलने का आशय है, वो सच्ची बात है।
ऐसी बात है कि सारा जगत सब लौकिक ही बात जानता है। वो लौकिक तो इतना छोटा लडका भी जानता है और साध-संत भी लौकिक जानते है। जो ज्ञानी पुरुष है, वो ही अलौकिक बताते है। हम दिव्यचक्षु से देखकर बोलते है कि क्या चल रहा है ! हम कोई पुस्तक की बात नहीं बताते है। हम वास्तविक स्वरूप, हकीकत स्वरूप बताते है। हम जैन है, हम वैष्णव है, हम शीख है, हम मुसलमान है', वो सब मत है। मत है, वहाँ कोई दिन सच्ची बात मालूम नहीं होगी। मत है वहाँ वास्तविकता होती ही नहीं है। एक अज्ञानी को लाख मतभेद होते है और लाखो ज्ञानीओं का एक ही मत होता है।
बहुत बात निकली। ये तो सारा विज्ञान है। बहुत लंबा है। हम बाईस साल से बोलते है तो भी पूरा होता ही नहीं। ऐसे बात आगे निकलती ही जाती है और संपूर्ण अविरोधाभास है। एक शब्द भी विरोधाभास नहीं है। सब शास्त्र विरोधाभास से ही है। क्योंकि वो रिलेटिव में से रियल ढूँढते है, रिलेटिव के आधार से रियल ढूँढते है। ये अक्रम विज्ञान खुद ही रिलेटिव रियल है। हमारी वाणी में है, वहाँ तक रियल है लेकिन वो रिलेटिव रियल है। उसका फल रियल ही मिल जायेगा। नहीं तो ये दुनिया को किसी ने ऐसा नहीं बोला कि the world is the puzzle itself ! हम बोलते है, वो सभी अपूर्व बात है। पूर्वे कभी सुनी ही नहीं, पढ़ी नहीं ऐसी अपूर्व बात है और अपूर्व बात से ही भगवान मिलते है। ये पूर्वानुपूर्वी बात से भगवान कभी मिले नहीं और किसी को मिलेंगे भी नहीं। ये तो खाली आधार है, सभी लोगों का अवलंबन है। उससे आगे बढ़ते है मगर भगवान नहीं मिलेंगे। वो अवलंबन पकड़कर आगे जाना है, सदा के लिए रहने का नहीं है। मनुष्य अवतार में पूरा काम हो सके, ऐसा संजोग मिल जाये तो ये संजोग का लाभ उठाना चाहिये। नहीं तो संजोग नहीं मिले तो क्या करोगे?
'ज्ञानी पुरुष' को कोई चीज की जरूरत नहीं है। सारी दुनिया की
प्रश्नकर्ता : यहाँ प्रवचन जैसा कुछ होता है? ।
दादाश्री : नहीं, प्रवचन तो जिधर ज्ञान नहीं है. वहाँ प्रवचन है। प्रवचन याने अपना अभिप्राय। वो भी एक विषय में 'ज्ञानी पुरुष' प्रवचन कभी नहीं करते है। 'ज्ञानी' को तो प्रश्न पूछने चाहिये।
प्रश्नकर्ता : तो वहाँ मौन भाषा है? प्रवचन जैसा कुछ नहीं है?