Book Title: Gyani Purush Ki Pahechaan
Author(s): Dada Bhagwan
Publisher: Dada Bhagwan Foundation

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Page 21
________________ ज्ञानी पुरुष की पहचान ज्ञानी पुरुष की पहचान ये जो दिखता है न, वो A.M. Patel है लेकिन आज A.M. Patel पब्लीक ट्रस्ट में चले गये है। क्योंकि ये बोडी का, ये माइन्ड का, ये वाणी का मैं छब्बीस साल से मालिक नहीं हूँ। 1958 से हम देह में एक पल भी नहीं रहे। कभी आपके साथ बात करते है तो हमारे को 'इधर' आना पडता है, वो भी प्रकाश स्वरूप में-ज्ञान स्वरूप में! हम ये देह में छब्बीस साल से नहीं रहते। हमारा इसके साथ पडौशी जैसा संबंध है। ये जो 'दादा भगवान' है न, सारा दिन हम 'दादा भगवान' के साथ नहीं रह सकते। कभी कभी हमारे को 'पटेल' होना पडता है, तो हमारे को भी बोलना पडता है कि 'दादा भगवान' को नमस्कार करता हूँ और जब 'हम' और 'दादा भगवान' एक हो जाते है, फिर नहीं बोलना पडता। फिर जब अलग हो जाते है तो फिर बोलना पडता है। वो 'दादा भगवान' अंदर है, चौदह लोक के नाथ है। वो 'दादा भगवान' का नाम लिया तो आपका भी बहुत काम हो जायेगा। सब लोग जानते है कि यहाँ सत्संग होता है। मगर इधर क्या दवाई मिलती है वो नहीं जानते। ये तो दुनिया का ऐसा आश्चर्य है, जो पहेले कभी नहीं हुआ। तो हम आपको क्या बोलते है कि आप आपका काम निकाल लो इधर। हम तो निमित्त है। हम कोई चीज के कर्ता नहीं है। जो कर्ता है, उसको कर्म बंध जाता है । हम ये दुनिया को सब चीज देने को आये है, मगर निमित्त है सिर्फ। प्रश्नकर्ता : किसका साक्षात्कार? दादाश्री : खुद का! अभी तो आप 'रविन्द्र' है। प्रश्नकर्ता : उसके बाद में क्या? दादाश्री : फिर आप ईन्डीपेन्डेंट हो जायेगा। प्रश्नकर्ता : कब तक? दादाश्री : फिर मरने का ही नहीं। ज्ञान लेने के बाद मृत्यु नहीं, अमर हो जाता है। प्रश्नकर्ता : कैसे अमर? in what sence? दादाश्री : शरीर में नहीं! जो विनाशी चीज है, वो विनाशी चीज निकल जाती है। आप खुद ही अविनाशी है लेकिन आप मानते है कि 'मैं रविन्द्र हूँ, मैं एन्जीनीयर हूँ', ऐसी विनाशी चीजों की बातें करते हो। आप फिर अविनाशी हो जाओगे। फिर आपको कुछ फीयर(भय) नहीं होगा। प्रश्नकर्ता : मगर अपने खुद का रेफरन्स हमें कैसे मिले कि मैं कौन हूँ? दादाश्री : वो रेफरन्स सब मिल जायेगा। फिर आप पूर्ण हो जाओगे। प्रश्नकर्ता : अमर हो गया तो कौन सी विनाशी चीज निकल जायेगी? दादाश्री : ये शरीर जो विनाशी है। प्रश्नकर्ता : तो फिर क्या रहेगा? दादाश्री : आत्मा रहेती है, वो भी in perfact sense ! प्रश्नकर्ता : तो अपनी खुद आत्मा में ही रहना चाहिये? बिना अनुभूति, बातें क्या? प्रश्नकर्ता : मनुष्य जन्म में आफ्टर ओल क्या पाने के लिए हम जिते है? दादाश्री : अपने पर बोस नहीं चाहिये। ईन्डीपेन्डंट होना चाहिये। कोई गाली दे, मार मारे तो भी तकलीफ नहीं, ऐसा होना चाहिये। प्रश्नकर्ता : ज्ञान लेने का आफ्टर ओल मक़सद क्या है? दादाश्री : साक्षात्कार।

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