Book Title: Gyani Purush Ki Pahechaan
Author(s): Dada Bhagwan
Publisher: Dada Bhagwan Foundation

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Page 29
________________ ज्ञानी पुरुष की पहचान ज्ञानी पुरुष की पहचान पढ़ते है, माला फेरते है, वो सभी स्टान्डर्ड में है, तीसरे-चौथे स्टान्डर्ड में है। जिसने सब जान लिया है, पढ़ने का पूरा हो गया है, फिर पढ़ने की कोई जरूरत नहीं, वो खुद में ही रहता है। लकड़ी की माला फिराये वो ज्ञानी कैसा? ज्ञानी कभी जड़ की माला फेरते है क्या? ज्ञानी तो ऐसे आत्मा के बाहर रहते ही नहीं, ये देह में नहीं रहते. वो देह से अलग ही रहते है। 'ज्ञानी पुरुष' खुद में ही रहते है। . दादाश्री : और आप यहाँ भी फिट हो। बद्रीनाथ में कुछ आत्मा रखी है? बद्रीनाथ में तो खाली हिमालय है। वहाँ wild animals है। और इधर सब आदमी है। आदमीयों के बीच में ज्ञान होता है। जंगल में ज्ञान नहीं होता। 'ज्ञानी' जंगल में घुमते ही नहीं। 'ज्ञानी' तो हमेशा आदमीयों के बीच में ही रहते है। क्योंकि उनको सब का कल्याण करने की भावना है। जो जंगल में घुमते है, वो सच्चे ज्ञानी नहीं है। 'ज्ञानी पुरुष' - किसे कहा जाय? 'ज्ञानी' हिन्दुस्तान में ही होते है। बाहर तो कभी नहीं होते। संत पुरुष और सत् पुरुष होते ही रहते है। संत पुरुष और सत् पुरुष है, उन्हों ने अपना काम पूरा नहीं कर लिया। उनके सिर पर 'ज्ञानी पुरुष' होने चाहिये। 'ज्ञानी पुरुष' के बिना तो कुछ नहीं चलता। संत पुरुष किसे बोला जाता है? जिसकी चित्तवृत्ति की मलिनता बहुत कम हो गई हो और भगवान के लिए ही सारा दिन उसकी भक्ति है, उनको संत पुरुष बोला जाता है। सत् पुरुष किसे बोला जाता है? जिसने सत् प्राप्त किया हो याने अविनाशी आत्मा प्राप्त किया है वो। वो खुद का कल्याण करते है मगर दूसरों का कल्याण नहीं कर सकते। और 'ज्ञानी पुरुष', जो तरणतारण है, मोक्षदाता है। जिनका खुद का कल्याण तो हो गया है और अनेकों का कल्याण करते है। 'ज्ञानी पुरुष' सारी दुनिया में कभी एक होते है। और वो अजोड़ बोले जाते है, उनकी जोड़ी नहीं रहती है। उनकी स्पर्धा करनेवाला कोई आदमी नहीं होता है। क्योंकि उनका अहंकार शून्य हो गया है। ज्ञानी पुरुष' की तो किसी के साथ तुलना नहीं कर सकते। वो अनुपम है, कोई भी आदमी के साथ उनकी तुलना मत करना। तुलना करने से 'ज्ञानी पुरुष' को नुकसान नहीं है, तुलना करनेवाले को नुकसान है। इसलिए हम तुलना करने को ना बोलते है, क्योंकि कोई झवेरी नहीं हो गया है। इसलिए हीरा भी अच्छा है और काँच भी अच्छा है ऐसा बोलते है। इसलिए आपकी जिम्मेदारी हो जाती है। 'ज्ञानी पुरुष' कभी होते है, तो वो अनुपम होते है। एक घंटे में जो मोक्ष देते है, उसकी उपमा किसके साथ करेंगे? ये दस लाख साल का इतिहास नहीं बोलता है, कोई कागज भी नहीं बोलता है। उनकी वाणी भी अनुपम है, एक-एक शब्द में अनंताअनंत शास्त्रो लिखे ऐसे शब्द होते है। वर्तन भी अनुपम रहेता है। उनकी सभी चीजें अनुपम ही रहेती है। कभी ज्ञानी पुरुष मिल जाये, जो मुक्त पुरुष है, परमेनन्ट मुक्त है, ऐसा कोई मिल जाये तो अपना काम हो जाता है, नहीं तो नहीं हो सकता। ऐसे मुक्त पुरुष दुनिया में कभी होते ही नहीं। शास्त्रों के ज्ञानी तो बहत है मगर उससे तो कोई काम नहीं चलेगा। सच्चा ज्ञानी चाहिये और मुक्त पुरुष चाहिये, मोक्ष का दान देनेवाला चाहिये। मनुष्य का अवतार है, वो कभी कभी मिलता है और मनुष्य के अवतार में जो ये काम पूरा नहीं हुआ तो कभी नहीं हो जायेगा। 'ज्ञानी पुरुष' का संजोग मिल जाये तो मनुष्य के अवतार में ये काम पूरा हो सकेगा। तो ये संजोग का लाभ उठाना दुनिया की भाषा भ्रांति की है। वो संत पुरुष, सत् पुरुष और 'ज्ञानी पुरुष' सबको एक ही बोलते है। तो ये डायमन्ड है, उसमें पाँच करोड का डायमन्ड भी अलग है और पच्चीस करोड का डायमन्ड भी अलग होता है और काँच का डायमन्ड भी रहता है। इसकी भ्रांतिवाले को खबर नहीं रहती। ज्ञानी किसको बोला जाता है? जिसको दुनिया में कोई चीज जानने की बाकी नहीं है, जो पुस्तक कभी नहीं पढ़ते, माला नहीं फेरते। जो पुस्तक

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