Book Title: Gyani Purush Ki Pahechaan
Author(s): Dada Bhagwan
Publisher: Dada Bhagwan Foundation

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Page 34
________________ ज्ञानी पुरुष की पहचान ज्ञानी पुरुष की पहचान बात बता देगा। वो शब्दब्रह्म भी है और शब्दब्रह्म में बहुत कुछ फायदा नहीं, वो लास्ट स्टेशन नहीं है। आत्मा शब्द से आगे है। लास्ट स्टेशन 'ज्ञानी पुरुष' अकेले ही है। ये चमत्कार या यशनाम कर्म? प्रश्नकर्ता : तंत्र के बारे में आपका क्या खयाल है? दादाश्री : वो तो तांत्रिक विद्या है। हमारे पास जो विद्या थी, वो अभी एक परसेन्ट भी नहीं है। हमारे पास पच्चीससो साल पहेले बहुत विद्या थी लेकिन विद्या का नाश कर दिया गया। क्योंकि भगवान जानते थे कि जो युग आनेवाला है, वहाँ सब लोग वो विद्या का दुरुपयोग ही करेंगे। इसलिए विद्या का नाश कर दिया। थोड़ा थोड़ा लीकेज़ हो गया, उसमें कुछ सच होगा, बाकी सब जूठ है। विद्या वो सब रिलेटिव है and all these relative are temporaryadjustment. रिलेटिव में क्या जानने का? रियल जानने का है। ये रिलेटिव कितने आदमी जानते है? हमने कागज का ऐसे बर्तन बनाया और अंदर तेल डाला। फिर स्टव पर रखा और गरम किया। फिर उसमें पकोड़े बनाये थे और सबको खिलाया था। जो जानता नहीं, उसके लिए वो तांत्रिक है। जो जानता है, उसके लिए कुछ नहीं। दुनिया में कोई आदमी से चमत्कार होता ही नहीं कभी भी। चमत्कार क्या चीज है वो आपको बता दूँ। यश क्या चीज है? हम छोटे थे, तब हमको क्या विचार आता था कि सब लोग का अच्छा हो जाये, सबका भला हो जाये, सब सुखी होने चाहिये। फिर उसका फल यशनाम कर्म होता है। जिसका ऐसा विचार है, सब दु:खी होने चाहिये तो उसको अपयश मिलता है। यश-अपयश अपने भाव के साथ है कि अपना भाव कैसा है ! स्त्री मर जाये, धंधे में नुकसान हो, उसको अपयश नहीं बोलते है, वो तो आत्मा का विटामिन है। क्योंकि स्त्री अच्छी हो, पैसा ज्यादा हो तो भगवान का नाम ही नहीं लेता। दवाई है, वो देह का विटामिन है, ऐसे ये प्रतिकूलता वह आत्मा का विटामिन है। देह का विटामिन मिला तो फायदा है और आत्मा का विटामिन मिला तो बहुत फायदा है। इससे नुकसान तो होता ही नहीं कभी। _ 'ज्ञानी', ' कारण' सर्वज्ञ ! प्रश्नकर्ता : आपको 'सर्वज्ञ' क्यों लिखा है? दादाश्री : हम सर्वज्ञ नहीं है। हम तो कारण सर्वज्ञ है। सर्वज्ञ तो तीर्थंकर को बोला जाता है। प्रश्नकर्ता : क्या कारण सर्वज्ञ और कारण परमात्मा में कोई फर्क हमारे यहाँ चालीस-पचास हजार आदमी आते है। वो सब 'दादा भगवान' को मानते है। वो क्या बोलते है, 'आज दादा भगवान ने हमको ऐसा किया, आज ऐसा किया। दादा भगवान तो बड़े चमत्कारी है।' तो मैं क्या बोलता हूँ कि 'मैं जादूगर नहीं हूँ। मैं तो 'ज्ञानी पुरुष' हूँ। जादूगर चमत्कार करता है।' हम पूर्वभव से यशनाम कर्म लेकर आये है। यशनाम कर्म से क्या होता है? हम ऐसे हाथ लगाये तो भी आपका अच्छा हो जाता है। फिर आप बोलते है कि 'दादा भगवान ने चमत्कार किया।' किसी को अपयशनाम कर्म रहता है, तो वो करे तो भी उसको यश नहीं मिलता। दादाश्री : कोई फर्क नहीं। हम कारण सर्वज्ञ है। कार्य सर्वज्ञ महावीर भगवान थे। कारण सर्वज्ञ याने सर्वज्ञ होने का कारण हम सेवन कर रहे है। कारण का कार्य में आरोपण किया है। जैसे ये आदमी इधर से औरंगाबाद के लिए अभी निकला। कोई पछेगा कि 'ये कहाँ गया?' तो आप बोलेंगे कि 'वो औरंगाबाद गया।' तो वो भाई औरंगाबाद तो अभी पहुँचा नहीं, इधर ही स्टेशन पर है। लेकिन व्यवहार में ऐसी ही बात बोली जाती है। इसी तरह हमें सर्वज्ञ कहा जाता है। हम सर्वज्ञ होने के कोझीझ सेवन करते है, हम वो हो गये नहीं है लेकिन व्यवहार में उनको ये सर्वज्ञ है, ऐसा बोला जाता है। हमारी तो चार डिग्री कम है, 356 डिग्री है। सर्वज्ञ तो 360 डिग्री होते है। 'ज्ञानी पुरुष' तो दुनिया की अजायबी (आश्चर्य)

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