Book Title: Gyandhara 06 07
Author(s): Gunvant Barvalia
Publisher: Saurashtra Kesari Pranguru Jain Philosophical and Literary Research Centre
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विश्वकल्याण हेतु ये जैनधर्म की प्ररुपणा की है। विश्व के समक्ष आज के अनेक सुलगते हुए प्रश्नो के समाधान हेतु जैनधर्म एक अनुपम शांति समान प्रतीत होता है। ईस समय वैश्विक भूमिका पर जैनधर्म के सिद्धांतो का यथार्थ प्रचार कर शके उस के लीए एक विशिष्ट प्रचारक वर्ग तैयार करना चाहिये। पूर्व काल में संप्रतिराजा ने भी अनार्य देशो में एसे विशिष्ट वर्ग द्वारा धर्मप्रचार कराया था ये घटना को ध्यान में रखते हुए एक नया वर्ग को तैयार करना अपना आवश्यक कर्तव्य बनता है। उस कार्य के लीए इंग्रेजी
ओर विश्व की विभिन्न भाषाओमें जैनधर्म के उत्तम पुस्तको का अनुवादकार्य होना चाहीए। विश्वभर में फेले हुए NRI जैन कुटुंबो में भी ये प्रचारक वर्ग द्वारा धर्मश्रद्धा की दृढ नीव डाली जा सकती है।
() जैनधर्म की अपनी अमूल्य ज्ञानसंपत्ति आगम में सुरक्षित है। ये आगमो का संपादन, अनुवाद, टीका विवेचन आदि का अनुवाद एवं प्रकाशन का कार्य संकलितरुप से कीया जाये।
(९) जैन संघ के पास करीब २० लाख जैसी हस्तप्रत (पाण्डुलिपि) की अमूल्य संपत्ति है। उस संपत्ति की रक्षा, संशोधन, संपादन, प्रकाशन आदि का कार्य एक केन्द्रीय संस्था के छत्र में हो एवं संशोधको को सुलभ रुप से पाण्डुलिपि का फोटो कोपी आदि प्राप्त हो उस की व्यवस्था होनी चाहिए। ___(१०) साधुसंघ जैन संघ का प्राण है। अगर साधु साध्वी ज्ञानवंत है तो वो ही संघ का समर्थ, सक्षम नेतृत्व कर सकते है। साधु-साध्वीओ के अध्ययन अध्यापन के लिए देशभर में अनेक अध्ययन केन्द्र की हो। वहा जैन धर्म के गहन अध्ययन के साथ ही वही पर अन्य दर्शनो के अभ्यास की व्यवस्था हो। साथ ही मे विद्वान पंडित आदि की भी व्यवस्था हो। शक्तिवंत महात्माओ को राष्ट्र के संविधान एवं कायदाओ की जटिल गुत्थी की भी जानकारी भी दी जाये। उसी के परिणामस्वरुप वो राष्ट्र में संविधान की धाराओ को ध्यानमें रखते हुए अहिंसा एवं संस्कृतिरक्षा के कार्यो की यथार्थ मार्गदर्शन दे सके। साथ ही में आधुनिक विज्ञान का भी अभ्यास (જ્ઞાનધારા ૬-૭ ૧૪૧ જૈિનસાહિત્ય જ્ઞાનસત્ર ૬-૩