Book Title: Gyandhara 06 07
Author(s): Gunvant Barvalia
Publisher: Saurashtra Kesari Pranguru Jain Philosophical and Literary Research Centre
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पर्वी भारत में अपनी अनेक पावन कल्यामक भूमि आई है, मगर काल के प्रभाव से आज यहा दरिद्रता का निवास हुआ है । ईस दरिद्रता का लाभ लेते हुए अनेक क्रिश्चीयन मीशनरी यहा सेवा कार्य मे रत है। उन के द्वारा कीया हुआ विनवासी प्रजाओ का धर्मान्तरण यहा की सांस्कृतिक एकता को खंडित कीये जा रहा है। ईस घटनाचक्र को ध्यान में रखते हुए पूर्वी भारत ईशान भारत में भारतीय संस्कृति की सुगंध से सजे हुए स्कूल, होस्पिटल, अन्नक्षेत्र, गौशाला, दूध और छास की परब, आयुर्वेदिक होस्पिटल आदि स्थापित करे। ये प्रयत्नो से ईस विस्तार में आर्यसंस्कृति की नांव मजबूत करेंगा एवं भारतीय राष्ट्रीयता पर आता हुआ संकट को दूर कर के ये तीर्थभूमि को भारत के मुख्य प्रदेशो से सांस्कृतिक रूप से जुडा हुआ रखेंगा । ये भूमि पर वनस्पति की विपुल मात्रा के उपलब्धि को ध्यान में रखते हुए आयुर्वेदिक संशोधन केन्द्रो की भी स्थापना हो सकती है । चतुर्विध जैन संघ भविष्य में अपनी प्राचीन सांस्कृतिक धरोहर को सुरक्षित रखना चाहता है। तो इस दिशा में अपना हाथ बढाना ही चाहिये । पद्मसूरि स्थापित धर्म-मंगल विद्यालय एवं मुनि श्री जयंतिलालजी स्थापित चक्षु चिकित्सालय ईस दिशा में महत्त्वपूर्ण कदम है और आनेवाले काल में हमे संगठित रुप में ईस दिशा में कार्य करना होंगा। साथ में ही १९ वे मल्लिनाथ एवं २२वे नेमिनाथ की कल्याणक भूमि मिथिलानगरी का पुनरुत्थान है।
(२) कुछ एक सालों में अपनी आहार प्रणालि पर व्यापक रूप से आक्रमण आ रहे है। उसी समय मांसाहार विरोध के साथ ही indirect मांसाहार की ओर ले जानेवाले जिनेटिक फूड के बारे में एक केन्द्रस्थ समिति संशोधन कर के जैन प्रजा को एक राह दिखाये । कुछ जिनेटिक फुड पशुओं की जिन्स के मिलावट वाले बनाने का वैज्ञानिको का पुरुषार्थ जारी है। ईस समय चतुर्विध जैन संघ को सही मार्गदर्शन देने की आवश्यकता है।
(३) ईस देशमें अनेक प्रकार के यांत्रिक कत्लखानों की बरमार हो रही है। अहिंसा का पूजारा एसा जैन संघ ईस दिशा में संगठित विरोध का प्रयास करे एवं दुष्काल आदि समय पर संगठित हो कर पशुरक्षा का व्यापक ૧૩૯ नैनसाहित्य ज्ञानसत्र ६-७
જ્ઞાનધારા ૬-૭