Book Title: Gyandhara 06 07
Author(s): Gunvant Barvalia
Publisher: Saurashtra Kesari Pranguru Jain Philosophical and Literary Research Centre
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पुरुषार्थ करे। जिसे जैन संघ की शोभा बढेगी।
(४) तीर्थरक्षा एवं तीर्थसंबंधी विवाद जैन संघ की एकता को दुषित करता एक परिबल है तीर्थो की मालिकी। समेतशिखर, अंतारक्षजी, मक्षीजी आदि पवित्र तीर्थस्थलो पर विवाद के समाधान कुछ Practical Solution द्वारा लाया जा सकता है। Ex समेत शिखर तीर्थ मे पादुका तो दोनो पंथ के लीए समान ही है, तो कीसी का भंडार न रखते हुए सभी दर्शनार्थी दर्शन करे और श्वेतांबर दिगंबर के अपने अपने मंदिर में ही द्रव्य आदि जमा कराये। तीर्थो ओर मंदिरो की राज्यसत्ता द्वारा ट्रस्ट एक्ट ओर अन्य नये कायदाओ के सामने भी सामूहिक पुरुषार्थ सिद्धि देनेवाला बनेगा।
राजस्थान के तेरापंथ बहुत विस्तारो में जीर्ण हुए जिनमंदिरो को सांस्कृतिक धरोहर समज कर उस की रक्षा, देखदिखाव एवं जीर्णोद्धार आदि कार्यों में स्थानकवासी, तेरापंथी आचार्यो भी अपने मत पर दृढ रहते हुए भी श्रावको को सहकार करने की आज्ञा प्रदान करे या वो भी न हो सके तो भी कम से कम अडचन दूर करे।
(५) प्राचीन तीर्थनिर्माण तीर्थो की रक्षा के साथ साथ नव्य तीर्थो के निर्माण भी जैन संघ व्यापक रुप से कर रहा है। मगर समय को ध्यान में रखते हुए अत्यावश्यक न हो तो नये तीर्थो के निर्माण पर रोक लगाये। जहा
आवश्यक हो वहा भी प्राचीन प्रतिमा आदि की व्यवस्था हो सके तो पुराने 'मंदिरो की देख दिखाव के प्रश्न कम होंगे और जैन संघ दूसरे कार्यो के प्रति अपनी धनराशि जोड पायेगा।
(६) साधु-साध्वीओ का विहार भी वर्तमान विषम परिस्थिति में अपने आप में एक समस्या बना हुआ है। बढती हुई वहानसंख्या विहारो को कठिन बनाता है। इस वर्ष ही हम हमारे जवाहिर सम आगम संशोधक मुनि जंबुविजयजी को मार्ग अकस्मात में गवा चूके। एसे समय में चतुर्विध संघ साधु-साध्वीओ की विहार दौरान सुरक्षा के योग्य उपाय कार्यान्वित करे। __(७) जैन धर्म विश्व का अमूल्य जवाहिर है। परमात्मा महावीरने (जागधारा -
७ ४१४० साहित्य SIMAR E-0