Book Title: Gyanbhandaro par Ek Drushtipat Author(s): Punyavijay Publisher: Gujarat Vidyasabha View full book textPage 4
________________ हिन्दी साहित्य, ज्योतिष, वैद्यक, फारसी साहित्य, गुरुमुखीमें लिखी हुई पुस्तकें आदि रखे गए हैं। २. जैनेतर विद्वानोंके लिखे ग्रन्थोंके ऊपर जैनाचार्यों द्वारा रचित व्याख्या-ग्रन्थ । ३. दिगम्बराचार्य कृत ग्रंथ। ४. एक ही व्यक्तिके लिखाए हुए ग्रन्थोंकी राशि । ५. विषयानुक्रमसे श्रेणिबद्ध लिखाए ग्रन्थ । ६. ग्रन्थकारोंकी स्वयं लिखी हुई या शुद्ध की हुई या लिखाई हुई प्रतियाँ। ७. ग्रन्थकी रचनाके बाद उसमें किए गए सविशेष परिवर्तनकी सूचक प्रति । ८. ख़ास ख़ास महापुरुषोंके हस्ताक्षर । ९. श्रावक और श्राविका द्वारा लिखित ताड़पत्रीय प्रति । १०. शुद्ध किए हुए तथा टिप्पणी किए हुए ग्रन्थ । ११. स्याहीकी प्रौढ़ता और एक जैसी लिखावटको सूचित करनेवाली प्रन्थ सामग्री। १२. लेखनपद्धतिके प्रकार - त्रिपाठ, पंचपाठ, सस्तबक आदि। १३. भिन्न भिन्न शताब्दियोंकी भिन्न भिन्न प्रकारकी लिपियाँ । १४. ताड़पत्रीय अक्षरांकोंका दर्शन । १५. प्राचीन भारतमें व्यवहृत कागज़ोंकी जुदी जुदी जातें। १ प्रदर्शनी देखनेवाले प्रेक्षकोंको एक खास सूचना है कि यहाँ पर रखी गई सामग्रीमें जो उसके लेखन आदिके संवत्का निर्देश किया गया है वह विक्रम संवत् समझना चाहिए। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
1 2 3 4 5 6 7 8 9 10 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30