Book Title: Gyanbhandaro par Ek Drushtipat
Author(s): Punyavijay
Publisher: Gujarat Vidyasabha

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Page 17
________________ पोले और मज़बूत नरकंट अधिक पसंद किए जाते थे। इनमें से भी का परकण्डे अधिक पसन्द किए जाते थे सरकण्डके गुण-दोषका विचार भी हमारे प्राचीन ग्रन्थोंमें किय है कि कलम कैसे बनानी तथा उसका कटाव कैसा होना चाहिए इत्यादि । कलमके नाप आदिके लिये भी भिन्न भिन्न प्रकारकी मान्यताएँ हमारे यहाँ प्रचलित हैं । भाजन दावात स्याही भरनेके लिये अपने यहाँ काँचकी, सफाईदार मिट्टीकी तथा तु आदि अनेक प्रकारकी दावातें बनती होंगी और उनका उपयोग किया जाता होगा । परन्तु उनके आकार-प्रकार प्राचीन युगमें कैसे होंगे - यह जाननेका विशिष्ट साधन इस समय हमारे सम्मुख नहीं है । फिर भी आज हमारे सामने दो सौ, तीन सौ वर्षकी धातुकी विविध प्रकारकी दावतें विद्यमान हैं और हमारे अपने ज़मानेके पुराने लेखक तथा व्यापारी स्याही भरके लिये जिन दावतों तथा डिब्बियों का उपयोग करते आए हैं उन परसे उनके आकार आदिके बारेमें हमें कुछ ख्याल आ सकता है । सामान्यरूपसे विचार करनेपर ऐसा मालूम होता है कि कांच या मिट्टीकी दावातों की तरह टूटने का भय न रहे इसलिये पीतल जैसी धातुकी दावतें और डेब्बिया ही अधिक पसंद की जाती होंगी । ओलिया अथवा फाँटिया ग्रन्थ लिखते समय लिखाईकी पंक्तियाँ बराबर सीधी लिखनेके लिये ताड़पत्र आदिके ऊपर उस ज़मानेमें क्या करते होंगे यह हम नहीं जानते, परन्तु ताड़पत्रीय पुस्तकोंकी जाँच करने पर अमुक पुस्तकोंके प्रत्येक पन्नेकी पहली पंक्ति स्याहीसे खींची हुई दिखाई देखी है । इससे ऐसा सम्भव प्रतीत होता है कि पहली पंक्तिके अनुसार अनुमानसे सीधी लिखाई लिखी जाती होगी। के ऊपर लिखे हए कछ प्रन्थों में भी ऊपर की पहली १६ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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