Book Title: Gyanbhandaro par Ek Drushtipat
Author(s): Punyavijay
Publisher: Gujarat Vidyasabha

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Page 15
________________ ताडपत्रमें मोटी-पतली, कोमल-रूक्ष, लम्बीछोटी, चौड़ी-संकरी आदि अनेक प्रकारकी जातें थीं । इसी प्रकार कागज़ोंमें भी मोटी-पतली, सफ़ेदपावलापन ली हुई, कोमल-रूक्ष, चिकनी-सादी आदि अनेक जातें थीं । इनमें से शास्त्रलेखनके लिये, जहाँ तक हो सकता था वहाँ तक, अच्छे से अच्छे ताड़पत्र और कागज़की पसंदगी की जाती थी। कागज़की अनेक जातोंमें से कुछ ऐसे भी कागज़ आते थे जो आजकलके कार्ड के जैसे मोटे होनेके साथ ही साथ मज़बूत भी होते थे। कुछ ऐसे भी कागज़ थे जो आजके पतले बटरपेपर की अपेक्षा भी कहीं अधिक महीन होते थे । इन महीन कागज़ोंकी एक यह विशेषता थी कि उस पर लिखा हुआ दूसरी ओर फैलता नहीं था। ऊपर जिसका उल्लेख किया गया है वैसे बारीक और मोटे कागज़ोंके ऊपर लिखी हुई ढेरकी ढेर पुस्तकें इस समय भी हमारे ज्ञानपाडारोंमें विद्यमान हैं । इसके अतिरिक्त हमारे इन ज्ञानभाण्डारोका यदि टकरण किया जाय तो प्राचीन समयमें हमारे देशमें बननेवाले कागज़ोकी विविध जातें हमारे देखने में आएँगी । ऊपर कही हुई कागज़की जातोमें से कुछ ऐसी भी जाते हैं जो चार सौ, पांच सौ वर्ष बीतने पर भी धुंधली नहीं पड़ी हैं। यदि इन ग्रन्थोंको हम देखें तो हमें ऐसा ही मालूम होगा कि मानों ये नई ही पोथिया हैं । स्याही ताड़पत्र और कागज़के ऊपर लिखनेकी स्याहिया भी ख़ास विशेष प्रकारको बनती थीं। यद्यपि आजकल भी ताड़पत्र पर लिखनेको स्याहीकी बनावटके तरीकोंके विविध उल्लेख मिलते हैं फिर भी उसका सच्चा तरीका, पन्द्रहवीं शतीके उत्तरार्द्ध में लेखनके वाहनके रूपमें कागज़की ओर लोगोंका ध्यान सविशेष आकर्षित होने पर, बहुत जल्दी विस्मृत हो गया । इस बातका अनुमान हम पन्द्रहवीं शतीके उत्तरार्द्ध में लिखी गई अनेक ताड़पत्रीय पोथियों के उखड़े हुए अक्षरोंको देखकर कर सकते हैं । पन्द्रहवीं शतीके पूर्वार्द्ध में लिखी हई ताडपत्र की पोथियोंकी स्याहीकी चमक और उसी Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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