Book Title: Gyan bhandaro par Ek Drushtipat
Author(s): Punyavijay
Publisher: Punyavijayji

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Page 7
________________ જ્ઞાનભંડા પર એક દષ્ટિપાત [७ जैसे कि विलासवईकहा, अरिटनेमिचरिउ इत्यादि । इसी तरह छन्द विषयक कई ग्रन्थ हैं जिनकी नकले पुरातत्त्वकोविद श्री जिनविजयजीने जेसलमेर में जाकर कराई थी। उन्हीं नकलोंके आधार पर प्रोफेसर वेलिनकरने उनका प्रकाशन किया है । खम्भातके श्रीशान्तिनाथ ताड़पत्रीय ग्रन्थभाण्डारकी दो-एक विशेषताएँ ये हैं । उसमें चित्रसमृद्धि तो है ही, पर गुजरातके सुप्रसिद्ध मंत्री और विद्वान् वस्तुगलकी स्वहस्तलिखित धर्माभ्युदयमहाकाव्यको प्रति है । पाटनके तीन ताड़पत्रीय संपहोंकी अनेक विशेषताएँ हैं। उनमेंसे एक तो यह है कि वहींसे धर्मकीर्तिका हेतुबिन्दु अर्चटकी टीकावाला प्राप्त हुआ, जो अभीतक मूल संस्कृतमें कहींसे नहीं मिला । जयराशिका तत्त्वोपप्लब जिसका अन्यत्र कोई पता नहीं वह भी यहींसे मिला । ___ कागज़-ग्रन्थके अनेक भाण्डारोंमेंसे चार-पाँचका निर्देश ही यहाँ पर्याप्त होगा। पाटनगत तपागच्छका भाण्डार गुजराती, राजस्थानी, हिन्दी और फारसी भाषाके विविध विषयक सैकड़ों प्रन्थोंसे समृद्ध है, जिसमें 'आगमडम्बर' नाटक भी है, जो अन्यत्र दुर्लभ है । पाटनगत भामाके पाडेका भाण्डार भी कई दृष्टिसे महत्त्वका है । अभी अभी उसीमेंसे छठी-सातवीं शतीके बौद्ध तार्किक आचार्य श्री धर्मकीर्तिके सुप्रसिद्ध 'प्रमाणवार्तिक' ग्रन्थकी स्वोपज्ञ वृत्ति मिली है जो तिब्बतसे भी आजतक प्राप्त नहीं हुई । खम्भातस्थित जैनशालाका भाण्डार भी महत्त्व रखता है । उसीमें वि. सं. १२३४ की लिखी जिनेश्वरीय 'कथाकोश' की प्रति है। जैन भाण्डारोंमें पाई जानेवाली काग़जकी पोथियों में यह सबसे पुरानी है । आठ सौ वर्षके बाद आज भी उसके कागज़की स्थिति अच्छी है। उपाध्याय श्री यशोविजयजीके स्वहस्त-लिखित कई ग्रन्थ, जैसे कि विषयतावाद, स्तोत्रसंग्रह आदि, उसी भाण्डारसे अभी अभी मुझे मिले हैं । जेसलमेरके एक कागज़के भाण्डारमें न्याय और वैशेषिक दर्शनके सूत्र, भाष्य, टीका, अनुटीका आदिका पूरा सेट बहुत शुद्ध रूपमें तथा सटिप्पण विद्यमान है, जो वि. सं. १२७९में लिखा गया है। अहमदाबादके केवल दो भाण्डारोंका हो मैं निर्देश करता हूँ। पगथियाके उपाश्रयके संग्रहमेंसे उपाध्याय श्री यशोविजय जीके स्वहस्तलिखित प्रमेयमाला तथा वीतरागस्तोत्र अष्टम प्रकाशकी व्याख्या- ये दो ग्रन्थ अभी अभी आचार्य श्री विजयमनोहरसूरिजी द्वारा मिले हैं। बादशाह जहाँगीर द्वारा सम्मानित विद्वान् भानुचन्द्र और सिद्धिचन्द्र रचित कई ग्रन्थ इसी संग्रहमें हैं, जैसे कि नैषधकी तथा वासवदत्ताको टीका आदि । देवशा के पाडेका संग्रह भी महत्त्वका है । इसमें भी भानुचन्द्र, सिद्धिचन्द्र के अनेक ग्रन्थ सुने गए हैं। कपड़े पर पत्राकारमें लिखा अभी तक एक ही ग्रन्थ मिला है, जो पाटनगत श्रीसंघके भाण्डारका है। यों तो रोल - टिप्पनेके आकारके कपड़े पर लिखे हुए कई ग्रन्थ मिले हैं, पर पत्राकार लिखित यह एक ही ग्रन्थ है। सोने-चाँदीकी स्याहीसे बने तथा अनेक रंगवाले सैकड़ों नानाविध चित्र जैसे ताड़पत्रीय Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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