________________ 18] જ્ઞાનાંજલિ संस्कृत, प्राकृत, अपभ्रंश आदि भाषाके चरित्र-ग्रन्थ, रास आदि विविध साहित्य विद्यमान है। संक्षेपमें हमें यह कहना चाहिए कि इन भाण्डारोंका सच्चा महत्त्व इनकी व्यापक और विशाल संग्रहदृष्टिके कारण ही है / जिस तरह इन विशाल भाण्डारोंमें विविध प्रकारके लेखन-संशोधन-रक्षण विषयक साधन एवं संग्रह है उसी प्रकार ताड़पत्र, कागज़ और कपड़ेके ऊपर काली, लाल, सुनहरी, रुपहरी आदि अनेक प्रकारको स्याहीसे लिखे हुए अनेक आकार-प्रकारके अत्यन्त सुन्दर और कलापूर्ण सचित्र-अचित्र पत्राकार, गुटकाकार कुंडली-आकार लिखे हुए ग्रन्थ विद्यमान हैं। अनेक प्रकारके सचित्र-अचित्र विज्ञप्तिपत्र, तीर्थयात्रादिके चित्रपट, यंत्रपट, विद्यापट आदिका विशाल संग्रह इन भाण्डारोमें है। जैनोंने इन भाण्डारोंके संग्रह के लिये हार्दिक मनोयोगके साथ ही साथ अपनी सम्पत्ति पानीकी नाई बहाई है। इसी तरह इनके संरक्षणके लिये भी उन्होंने सब शक्य उपाय किए हैं। इस प्रकार ज्ञानभाण्डार, उनमें उपलब्ध सामग्री एवं ग्रन्थराशि तथा उनकी व्यवस्था आदिके बारेमें हमने संक्षिप्त वर्णन यहाँ पर किया / विशाल एवं वैविध्यपूर्ण इन ग्रन्थरत्नोंका परीक्षक सम्यक् उपयोग करें - यही हमारी आन्तरिक अभिलाषा है / Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org