Book Title: Gyan bhandaro par Ek Drushtipat
Author(s): Punyavijay
Publisher: Punyavijayji

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________________ ज्ञानभाण्डारों पर एक दृष्टिपात साहित्य-प्रदर्शनी विभाग और उनका अवलोकन आजकी हमारी साहित्य-प्रदर्शनीमें विद्वान् , जिज्ञासु एवं सामान्य जनता- सबको लक्षमें रख कर छुदे छुदे विभाग किए गए हैं। सामान्य जनताका सम्बन्ध तो सिर्फ़ चित्र तथा चमकीलीभड़कीली वस्तुओंके साथ ही होता है, जब कि विद्वान् एवं जिज्ञासुका तो प्रत्येक वस्तुके साथ तन्मयतापूर्ण सम्बन्ध होता है। अतः उन्हें साहित्य-प्रदर्शनीके विभागोंका अवलोकन इसी दृष्टिसे करना चाहिए । ऐसी साहित्यिक प्रदर्शनीमें सुविधा एवं योग्यताके अनुसार चाहे जो वस्तु चाहे जिस स्थान पर रखी हो, परन्तु यहाँ पर जो सूचना तथा तालिका दी गई है उसके आधार पर प्रेक्षक उन उन वस्तुओंका पर्यवेक्षण करें। इसी दृष्टि से यह तालिका दी गई है। साहित्य एवं कला सम्बन्धी विज्ञानकी अपेक्षासे प्रदर्शनीका महत्त्व हैं, और हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि प्रदर्शनीकी सच्ची आत्मा एवं हार्द भी यही है । यह दृष्टिकोण सम्मुख रखकर यदि प्रदर्शनीका निरीक्षण किया जाय तो वह रसप्रद एवं हमारे जीवन में प्रेरणादायी बन सकेगा। तालिका १. साहित्य विभागकी दृष्टिसे प्रदर्शनीमें व्याकरण, कोश, छन्द, अलंकार, काव्य, नाटक, दार्शनिक साहित्य, ऐतिहासिक साहित्य, प्राचीन गुजराती-हिन्दी साहित्य, ज्योतिष, वैद्यक, फारसी साहित्य, गुरुमुखीमें लिखी हुई पुस्तकें आदि रखे गए हैं । * अखिल-भारतीय प्राच्यविद्या परिषद्के १७वें अधिवेशनके प्रसंग पर गुजरात विधासभा, अहमदाबाद श्री भो. जे. अध्ययन-संशोधन विद्याभवन योजित साहित्य-प्रदर्शनीके प्रयोजक मुनि श्री पुण्यविजयजीका प्रवचन; ३० अक्तूबर, १९५३ । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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