Book Title: Gyan Pradipika
Author(s): Ramvyas Pandey
Publisher: Nirmalkumar Jain

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Page 6
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir प्रस्तावना। प्रस्तुत (ज्ञान प्रदीपिका) पुस्तक जोतिष के उस भाग से सम्बन्ध रखती है जिसमें प्रश्न लग्न पर से फल बताया जाता है। उसे प्रश्नतन्त्र कहते हैं । नोलकण्ठ ने अपनी पुस्तक के अन्तिम अध्याय में इसी विषय का वर्णन किया है। और भी कई प्रश्नतन्त्र की पुस्तके प्रचलित हैं। प्रश्नतन्त्र के विषय में यह एक स्वतन्त्र और पूर्ण पुस्तक कही जा सकती है। इस ग्रन्थ के रचयिता के नाम आदि के बारे में जानने के लिये हमारे पास साधन नहीं है पर प्रारंभिक मंगलाचरण से इतना तो स्पष्ट हो जाता है कि वे जैन थे। अस्तु जो प्रति हमारे सामने है वह अत्यन्त अशुद्ध है। पाठ शुद्ध करने का कोई भी साधन नहा है। इस विषय के अन्य ग्रन्थों से मिलान करने पर कुछ कुछ शुद्ध करने का प्रयत्न किया गया है। पर उसमें भी कठिनता यह है कि इस ग्रन्थ में फल कहने का प्रकार कहाँ कहों अन्य ग्रन्थों से बिलकुल निराला है। यह बात एक प्रकार से मान ली गई है कि वर्षफल और प्रश्न फल इस देश में यवनों के संसर्ग से प्रचलित हुये हैं। फिर भी इस ग्रन्थ में स्थान स्थान पर को विशेषताओं के देखने से जान पड़ता है कि इस शास्त्र का विकास भी अन्य शास्त्रों की तरह जैनों में स्वतन्त्र और विलक्षण रूप से हुआ है। व्याकरण की अशुद्धियाँ तो प्रस्तुत प्रति में इतनी अधिक हैं कि उससे शायद ही कोई श्लोक बचा हो। उनके शुद्ध करने में इस बात का पूरा ध्यान रखा गया है कि ग्रन्थकार का भाव न विगड़ने पावे। पदों के शुद्ध करने से जिस स्थान पर श्लाक की वन्दिश टूटती दिखाई दी वहां उसे वैसा ही छोड़ दिया गया। इसका कारण परम्परागत अशुद्धि समझी गई और उन्हें ज्यों का त्यों विद्वानों के सम्मुख रखने का प्रयत्न किया गया। एक बात और। लग्न की जगह पर हर जगह प्रश्नलग्न समझना चाहिये। ग्रहों की स्थिति से प्रश्नकालिक ग्रहों की स्थिति से आशय है जिस प्रकार इस बात को बार बार कहना ग्रन्थकार ने ठीक नहीं समझा उसी प्रकार अनुवाद कर्ता ने भी। कई स्थान पर श्लोक के श्लोक छूट और टूट गये हैं। यथासाध्य अन्य ग्रन्थों से मिला कर उन्हें पूर्ण करने की चेष्टा की गई। फिर भी जो रह गये उन्हें विद्वान् पाठक सुधार लें। शीघ्रता, प्रमाद, आलस्य आदि कारणों से अशुद्धि रह जाने की संभावना हो नहीं निश्चय है। गुणग्राही पाठक यदि सूचना देंगे तो सुधारने का प्रयत्न किया जायगा। -अनुवादक For Private and Personal Use Only

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