Book Title: Guptavati Yukta Durga Saptashati
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Page 277
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir www.kobatirth.org पथ कात्यायनीसन्धानुसारेण यथा श्रुतयाहि অথ হ্মাম্মাম্বলীনা / घथा शुतग्राहि गुप्तवतीमतेन मन्त्र विभानः। भिन्नमतेन / गुप्तवतीमतेन मन्चविभागः। भिन्नमनेन 125 कथन्ते किब्रुसवृत्ता 3 // कथं ते किन्तु•३ // 37 समाधिर्नाम वैश्योऽसो 8 समाधिर्नाम. म.वि 26 राजोवाच 3 ,, राजोवा. 3 38 कृत्वा तु तौ यथा न्याय // उपविष्टौ // 27 यैर्निरस्तो भवांमुथैः 4 // यैर्निरस्तो० 4 | 38 राजोवाच / ,, राजोवा. 28 तेषु किं भवतह 5 // तेषु किं. 5 // 4. भगवंस्त्वामहं प्रष्टु 1. ,, // भगवंस्त्वा 1. 28 वैश्य उवाच 4 ,, वैश्यउ. 4 // 41 दुःखाय यन्मे मनसः 11 / दुःखाय यन्मे 2. एवमेतद् यथा प्राह // एवमेतत् 6 42 ममत्वं गतराज्यस्य जानतोऽपि 21 यैः सन्त्यज्य पिस्नेह किं करोमि 43 अयञ्च निकृतः पुत्र खजनेन च 22 किमेतवाभिजानामि पतिः स्वजन 44 एवमेष तथाहञ्च दृष्टदोषेऽपि // 33 तेषां कृते मे नि:खासो 6 यत्प्रेम प्रवर्ण 45 तत् केनैतन्महाभाग // ममास्य च 11 // 34 करोमि किं यवमनः 7 // करोमिकिं. 746 ऋषिरुवाच ऋषि 7 35 मार्कण्डेय उवाच 5 मार्कण्डेय 5 47 ज्ञानमस्ति समस्तस्य // ज्ञानमस्ति 12 126 ततस्तौ सहितौ विप्र 8 // ततस्तौ 848 दिवान्धाः प्राणिनः केचित् | विषयच महाभाग For Private and Personal Use Only

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