Book Title: Gudhamrutlila
Author(s): Rajdharmvijay
Publisher: Shrutgyan Sanskar Pith

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Page 7
________________ सारस्वताष्टकम् शीतला शीतला शान्ता, शर्मदा शीलभूषणा । शोभिता शतपद्मेन, शरण्यानां शिवकरी ।। १ ।। लवणिमसमायुक्ता, सद्गुणवरदायिनी । पद्मस्थिता करेपद्मा, “पद्मा” प्रज्ञां प्रयच्छतु ॥ २ ॥ वरदा विमला वन्द्या, लोकत्रयहितैषिणी । सुरेन्द्रै र्या सदा स्तुत्या, “प्रीतिः ” प्रेक्षां प्रयच्छतु ।। ३ ॥ तीर्थकरमुखाब्जे या, संवसिता समुज्ज्वला । अज्ञानतमसो हन्त्री “ शीला " मतिं प्रयच्छतु ॥ ४ ॥ शान्तिशातस्य दात्री या, दुरितवृन्द-नाशिनी । सौम्यमुखारविन्दा मे, “शमा” ज्ञानं प्रयच्छतु ।। ५ ।। रम्य रमा - प्रसादेन, जडा भवन्ति पण्डिताः । हंसयाने समारूढा, “गूढा” ज्ञप्तिं प्रयच्छतु ।। ६ ।। दासित्री प्रतिभाबुद्ध्यो र्वीणापुस्तकधारिणी । बिभ्रती मालिकां हस्ते, “सीमा” मेधां प्रयच्छतु ॥ ७ ॥ राजेन्द्रसूरिसशिष्याः पन्न्यासराजपद्मकाः । सुविनेयाय तेषां हि, “भद्रा” दद्याद् वरं कदा ? ॥ ८ ॥

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