Book Title: Dwatrinshad Dwatrinshika Author(s): Vijaysushilsuri Publisher: Vijaylavanyasuri Granthmala View full book textPage 7
________________ जो के स्व० पूज्यपाद गुरुदेवेन्याय, व्याकरण, साहित्य, काव्य, छंद तेमज दर्शनशास्त्र उपर कलम चलावी लगभग साडा आठ लाख श्लोक प्रमाण संस्कृत साहित्य, अजोड ने अणमोल सुंदर सर्जन करेल छे, तेथी ज तेओश्री विश्वमां “साहित्य-सम्राट" ना नामथी प्रख्यात थया छे। स्व० पू० गुरुदेवना स्वर्गवासने 12 वर्षनां वाणां वाई गयां / तेमोश्रीए अनेक श्रेष्ठ ग्रन्थो उपर टोकाग्रन्थो रच्या छे, जेनी नकलो . अमारी पासे छे। तेमोश्रीनी विद्यमानतामा केटलाक ग्रन्थो प्रकाशित थया परन्तु प्रेस तथा कागळ वगैरेनी अगवडता आदिना कारणे बाकीनी बधी कृतिमओ अद्यापि अमुद्रित तेमज अप्रकाशित ज रही छे / आ बधी कृतिमओने प्रकाशित करवानुं कार्य कठिन छे, छतां विचार करीने अमे आ० श्रीसिद्धसेन दिवाकरमूरिजी विरचित कोश बत्रीशीओना प्रकाशननुं कार्य हाथमां लीधुं / 5.50 गुरुदेव आ किरणावली विवृतिने बीजी वार जोई-तपासीने सुधारे, ए अगाउ तेओश्रीना पुण्य भौतिकदेहनो विलय थयो, अने ए प्रन्थोने तैयार करवानुं कार्य अमारे शिरे आव्युं / आ प्रस्तुत ग्रन्थने तैयार करवामां "आत्मानन्दसभा, भावनगर"थी प्रकाशित थयेल मूळ मात्र बत्रीशीओ टोकाकार महर्षि पू०. गुरुदेवनी सामे हती परन्तु पूना भाण्डारकर इन्टीट्यूटनो अशुद्ध प्रतिने ध्यानमा राखीने स्व० पू० गुरुदेवे आ किरणावली टीका रची छे, एटले मूळ श्लोकना अशुद्ध पाठो तदवस्थ राखी, टीकार्मा केPage Navigation
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