Book Title: Dwatrinshad Dwatrinshika
Author(s): Vijaysushilsuri
Publisher: Vijaylavanyasuri Granthmala

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Page 5
________________ अंगे खूब खर्च संस्थाने थयेल होई तेनी कीमत रू. 30) राखवी. पडी छे / .... किरणावलो टीकाकार स्व०प०पू०साहित्यसम्राट् आचार्य भगवंत श्रीविजयलावण्यसूरीश्वरजी म.सा.नो स्वर्गवास थतां, बाकीनी बत्रोशोओनो के जे काचा स्वरूपमा हती, तेने सुधारवार्नु कार्य घणु मुश्केल हतुं, छतां व्याकरणतीर्थ प० श्रीअंबालाल प्रेमचंद शाहने समक्ष राखो संपादन कार्य शरू करवामां आवेल अने धीमे धोमे ए कार्य पूर्ण थयु / आ प्रस्तुत ग्रन्थना प्रकाशनमा घणो समय बीती गयो छे, तेनुं कारण प्रेसनी अगवडो घणी हती। प्रांते विद्वानोने एक ज भलामण के विनम्र सूचन छे के बनती काळजीपूर्वक प्रुफ रीडींग आदि करवामां आवेल छे, छतां. केटलीक अशुद्धिो रही गई छे ते तरफ विद्वानोनुं अमो ध्यान दोरी विरमोए छोए / बगडिया हसमुखलाल दीपचंद "ज्ञानोपासक समिति"-ना कार्यवाहक बोटाद..

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