Book Title: Dwatrinshad Dwatrinshika
Author(s): Vijaysushilsuri
Publisher: Vijaylavanyasuri Granthmala

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Page 9
________________ उपोद्घात भारतीय दार्शनिकोमा जे जैन विचारकोनुं प्रदान सहुथी वधु महत्त्वपूर्ण गणवामां आवे छे तेमां आ०सिद्धसेन दिवाकर अग्र स्थाने छे। भारतीय तत्त्वविद्या अंगेनो कोई पण ग्रन्थ आ० सिद्धसेनना उल्लेख विना अधूरो गणावो जोईए / तेमनी बहुमुखी प्रतिमा आधुनिक विद्वानोने जरूर आकर्षी शकशे, पण आ प्रतिभाने विद्वानो सामे योग्यरीते रजू कराइ नथी एनो प्रतो अभ्यास थयो नथी / आमां एक मात्र गौरवशाली कार्य पंडित सुखलालजी भने पंडित बेचरदासजीए कयु छे परन्तु तेमनुं कार्य घणुंखरु आ. सिद्धसेन कृत 'सन्मतितर्क' पूरतुं मर्यादित हेतुं / आ०सिद्धसेननी बीजो महत्त्वपूर्ण कृतिमोनो समुच्चय 'द्वात्रिंशद्वात्रिंशिका' छे / आ ग्रन्थ प्रमाणमां दुरूह छे भने तेथी तेना हार्द सुधी पहोचवू मुश्केल हतुं / आ०विजय लावण्यसूरिजीए तेना पर टीका रची कृतिमोनो अर्थ अवगत कराववामां उपकारक कार्य कयु छे / मारा पीएच्.डी.ना' महानिबंधनो विषय पण आ०सिद्ध-- सेननी कृति मोनो अभ्यास हतो / तेने माटे प्रथम चार द्वात्रिंशिकाओ प्रकाशित अने पांचमी अप्रकाशितं द्वात्रिंशिका मने आ. श्रीविजयलावण्यसूरिजी द्वारा प्राप्त थई हती / बीजी द्वात्रिंशिकाओ पर पण तेमणे टोका तैयार करी हती पण 'काम काचुं छे' कही मने न पी शक्या, पछी तेओ स्वर्गस्थ थया.।

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