Book Title: Dwatrinshad Dwatrinshika Author(s): Vijaysushilsuri Publisher: Vijaylavanyasuri Granthmala View full book textPage 8
________________ अशुद्ध पाठोने सुधार्या छे; अने ए सुधारेला पाठ मुजब टीकानी रचना करी छे। जो के ए सुधारेला पाठवाळी मूळ 21 बत्रीशीओना श्लोकनो सलंग पाठ अलग रीते ग्रन्थान्ते आपवामां आवेल छे। टीककार स्व०पू० गुरुदेवने अर्थसंगतिमां घणी मुस्केलोमो पडी छे, तेथी संपादन कार्यमां ते मुश्केलीओ अमने पण पड़ी। छे। अमारी मुश्केलीमोनो जवाब मेळवी शकाय एम न हतो: छतां अमे अमारा क्षयोपशम अनुसार यथामति आ ग्रन्थ सुधारीनेप्रकाशन संस्थाने अर्पण कर्यो / ए मुजब आ , ग्रन्थ प्रकशितथयेल छे, ते सो कोई तत्त्वजिज्ञासु माटे आनंदनो विषय छ / प्रेसनो मुश्केल मओ अपार हती एटले केटलीक अशुद्धिओ रही जवा पामी छे, ते तरफ विद्वान् वाचकवर्गनुं ध्यान खचीए छीए / गमे तेम पण आ महान् ग्रन्थ प्रकट थाय छे, तेने विद्वानो वांचे अने त्रुटिओ के स्खलनाओ तरफ अमारुं ध्यान दोरे तो ते धन्यवादने पात्र गणाशे / हंसचंचू ने दुग्धना न्याये खपी विद्वान् आत्मामोने आ ग्रन्थनुं वांचन-अध्ययन-अध्यापन करवानी विनम्र भलामण करी संपादकीय वक्तव्य समाप्त करुं छु. // शुभं भवतु // " श्रीवीर सं 2503. श्रीनेमि-लावण्य-दक्षचरणोपासक नेमिसं० 27. .विजयसुशीलसरि .वि० सं० 2033Page Navigation
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