Book Title: Dwatrinshad Dwatrinshika
Author(s): Vijaysushilsuri
Publisher: Vijaylavanyasuri Granthmala

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Page 12
________________ 11 राजसभा केवी रोते शोभावो, तेनी वीगतो पण प्रबन्धप्रन्थोमांथी मळे छे। चित्रकूटमाथी एमने चमत्कारिक रोते एक स्तंभमांथी विधाओ प्राप्त थई, जेनो उपयोग ए करमारना राजा देवपालना लाभार्थे करो शकया / आ०सिद्धसेने मंत्रविद्याना बळथी एक सेना नीपजावी, तेना सामर्थ्यथी देवपाल शत्रु राजा पर विजय मेळवो शकयो / आ चमत्कारी घटनाने कारणे एमर्नु नाम 'सिद्धसेन' पड्युं / नामर्नु सार्थक्य दर्शावनारी भारतीय परंपरा अहीं पण जळवाई छ / एक समये आ० सिद्धसेने संघ समक्ष पोतानो भावना प्रगट करी, आगमग्रन्थोने प्राकृतमांथी संस्कृतमा रूपांतर करवानी / आने कारणे संघे एमने प्रायश्चित्त आप्यु ने संघ बहार कर्या / बार वर्ष सुधो आ० सिद्धसेनने ज्यांत्यां भटकवू पड्यु। समय पूरो थतां एमणे उज्जैनना कुडंगेश्वरना शिवमंदिरमा एक चमत्कार कर्यो / शिवलिंगमाथी राजा विक्रमादित्य समक्ष पार्श्वनाथ भ० प्रगट थया / 'द्वात्रिंशत् द्वात्रिंशिका' द्वारा आ बन्यु / केटलाक बीजा उल्लेखो अनुसार आ० सिद्धसेने 'कल्याणमंदिर' स्तोत्र गायुं हतुं / मा चमत्कारथी विक्रमादित्य राजा घणो अभिभूत थयो अने एणे जैनधर्म स्वीकार्यों / आ० सिद्धसेने एनी पासे एक जैनमंदिर बंधाव्यु / ._आ० सिद्धसेननी जीवनकथामां अनेक मुद्दाओ अनिश्चित रहे छ। ए उत्तर भारतना हता के दक्षिणना : तेमना गुरुनु नाम आ०

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