Book Title: Dwatrinshad Dwatrinshika Author(s): Vijaysushilsuri Publisher: Vijaylavanyasuri Granthmala View full book textPage 6
________________ // ॐ ह्री अहं नमः // वन्दे शासनसम्रोट् श्रीनेमिसूरिं जगद्गुरुम् / शब्द-साहित्यसम्राश्रीलावण्यसूरिसद्गुरुम् // 1 // संपादकीय वक्तव्य "द्वात्रिंशद् द्वात्रिंशिका" एटले बत्रीश बत्रीशीओ / आना रचयिता कविसम्राट् अने तार्किकशिरोमणि सूरिशेखर श्रीसिद्धसेन दिवाकरजी महाराज छ। आ ग्रंथ 'बत्तीशा बत्तीशी' ना नामथी पण ख्यात छ। काळनी विषमताने लइने. बत्रीस बत्रीशोओ पैकी हाल वर्तमान काले 21 बत्रीशोओ उपलब्ध थाय छे, जे मूळमात्र भावनगरनो 'आत्मानंद सभा' तरफथी पूर्वे प्रकाशित थयेल छ / आ ग्रन्थ दर्शनशास्त्रमा मूर्धन्य कोटिनो होई मोखरे गणाय छ / विषय अने भाषा घणी मुश्केलीथी समजाय एवी छे , एटले एना भावना उद्घाटन द्वारा वर्तमानकालीन विद्वानो ने जिज्ञासुओनी जिज्ञासानी पूर्ति निमित्ते, अमारा स्व० साहित्यसम्राट् पूज्याद गुरुदेव श्रीविजयलावण्यसूरीश्वरजी म.श्रीए 'किरणावलो' नामनी टीका रची छे / मा 21 बत्रीशीओ पैकी एक एक एवी पांच पुस्तिकाओमा पांच बत्रोशीओ स्व० प० पू० गुरुदेवे सुधारीने तैयार करेली, ते आ ज ग्रंथमाळा तरफया पूर्वे प्रकाशित थई हती। ए -पुस्तिकाओ पण दुर्लभ बनी ग़ई / एटले 21 बत्रोशीओ एक ज ग्रन्थमा सळंग एक ज पन्थरूपे प्रकट थाय तो ठीक के जेथी एकी"साचे एक न पुस्तिकाथी काम सरे। प्रांते एना संपादन- कार्य समारे शिरे आन्युं /Page Navigation
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