Book Title: Dvadasharam Naychakram Part 2 Tika
Author(s): Mallavadi Kshamashraman, Sighsuri, Jambuvijay
Publisher: Atmanand Jain Sabha

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Page 21
________________ प्रास्ताविक छट्ठा उभयविधि अरमां उभय नयनु खंडन करीने वैशेषिक मतने अनुसारे उभयनोविधि-नियमनो सामान्य विशेषनो उत्सर्ग -अपवादनो विधि स्वीकारवामां आव्यो छे । आ विचारधारानु मूळ आगमग्रंथोमां क्यां मळे छे ते जणावतां जीवाजीवाभिगमसूत्रना एक पाठ अरना अंतमां उध्धृत करवामां आव्यो छे । आ नय नैगमना भेद छ । प्रारंभना छ अरो द्रव्यास्तिक होवाथी छ द्रव्यास्तिक नयोन वर्णन अहीं पुरु थाय छे । हवे पछी पर्यायास्तिक नयना छ अर शरु थाय छ । सातमा अरमां वैशेषिकसूत्र, ते उपरनु वाक्य, ते उपर भाष्य, ते उपर प्रशस्तमतिए रचेली टीका तथा वैशेषिकसूत्र उपर रचायेली कटन्दी नामनी टीकार्नु विस्तारथी ख डन करीने विधि-नियमना सामान्य-विशेषनो भाव तथा अभाव बने छे' आ रीते सातमा उभयोभय नये पोताना मसनी स्थापना करी छ । वैशेषिकसूत्र उपरनी वाक्य आदि व्याख्याओ सेंकडो वर्षाथी 'नामशेष थई गई छे, तेथी नयचक्रमा आवता उल्लेखो तिहासिक दृष्टिए घणा ज महत्त्वना छ । वैशेषिकसूत्र उपरना रावणभाष्यनु बीजु नाम कटदी छे एम पण केटलाकनुं मानवु छे । आ नय ऋजुसूत्रनो भेद छे अने तेना मते अन्यापोह शब्दार्थ छ । आठमा उभयनियम अरमां ‘विधि गौण छे, नियम मुख्य छे' आ रीते उभयनो-विधि नियमना नियम स्वीकारवामां आव्यो छे । अने सातमा अरनु विस्तारथी खंडन करवामां आव्यु । नाम, स्थापना, द्रव्य आदि समर्थ न होवाथी 'शब्द भाववाची छे' एम शब्दनयने अनुसारे जणावेलु छे । शब्दार्थनी चर्चामां भर्तृहरि अने तेना उपाध्याय (अध्यापक गुरु ) वसुरातनो ते नाम पूर्वक करेला उल्लेख तथा तेना मतनी विस्तारथी चर्चा मैतिहासिक दृष्टिले खास ध्यान खेचे छ । दिइनाग तथा तेना ग्रंथना टीकाकारोए वर्णवेला 'अन्यापोह' शब्दार्थना खंडन-मडनमां आ अरनो घणो मोटो भाग रोकाएलो छ । नयचक्रना बधा अरोमां आ सौथी मोटो अर छ । आ आठमा अर शब्दनयनो मेद छे ते पूरो थाय एटले उभय नयना भेदो पूर्ण थाय छे तथा नवचक्रनो ५ थी ८ अरनो बनेला बीजो मार्ग (नेमि) पण पूर्ण थाय छे । आठमा अरमां बौद्धाचार्य दिङ्नागना मत अन्यापोह विषे घणा ज विस्तारथी चर्चा छ । दिङ्नागे नाना-मोटा से प्रकरणग्रंथो रचेला हता ओवी अनुश्रुति छे। तेमांना लगभग बधा ज ग्रंथो संस्कृतमा अत्यारे नष्ट थई गया छे । काईक काईक ग्रंथोनां टिबेटन तथा चीनी भाषामां से कडो वर्षा पूर्वे थयेला अनुवादा मळे छे । आठमा अरमां आ. श्रीमल्लवादीए जे चर्चा करेली छे ते प्रमाणसमुच्चय नामना दिङ्नागना ग्रंथमां मळे छे एवं अमारा जाणवामां १. जुश्री पृ. ४९८ टि. ११, पृ. ५१२ टि. ७ वगेरे । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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