Book Title: Dighnikayo Part 1
Author(s): Vipassana Research Institute Igatpuri
Publisher: Vipassana Research Institute Igatpuri

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Page 14
________________ अतः विपश्यना विशोधन विन्यास ने निर्णय किया कि तिपिटक सहित तत्संबंधी सारे पालि साहित्य को मूल पालि और देवनागरी लिपि में प्रकाशित किया जाय और तदनंतर उसका हिंदी अनुवाद करके साधकों को और शोध पंडितों को सुविधा प्रदान की जाय । कंप्यूटर जैसे आधुनिक उपकरणों के उपलब्ध हो जाने से इस कार्य के तीव्र गति से पूरा हो सकने की संभावना बनी । उत्साही साधकों ने हर प्रकार से सहयोग देना आरंभ किया । बहुत कम समय में ही पालि के सारे साहित्य का प्रेमी से नागरीकरण हुआ और उसे कंप्यूटर में निवेशित कर दिया गया । इस निवेशन तथा छपे हुए साहित्य के अंतिम प्रूफ पठन के काम में ब्रह्मदेश के विपश्यी साधक और अन्य मूर्धन्य विद्वानों ने अत्यंत मनोयोगपूर्ण सहयोग दिया है ताकि छट्ठ संगायन के प्रेमी वाङ्मय का यह देवनागरी संस्करण पूर्णतया निर्दोष हो, प्रामाणिक हो। क्या है तिपिटक में ? तिपिटक में सर्वत्र महाकारुणिक भगवान बुद्ध का दिव्य, भव्य व्यक्तित्व छाया हुआ है । एक है भगवान की भौतिक रूपकाया का मनोहारी व्यक्तित्व जो महापुरुषों के बत्तीस शारीरिक लक्षणों की परिपूर्णता के साथ-साथ अप्रतिम रूप-सौंदर्य लिए हुए है, जिसे देख कर दर्शक देखता ही रह जाय । उनके चेहरे पर सदा बनी रहने वाली शांति, कांति और प्रसन्नता देखने वाले के मन में भी प्रसन्नता भर दे। दूसरा है उनकी अनुपम धर्मकाया का व्यक्तित्व जो सम्यक सम्बोधि से, विद्या और सदाचरण से. प्रज्ञा और करुणा से ओतप्रोत है। तथागत विकार रूपी अरियों का याने शत्रओं का हनन कर देने वाले अरहंत हैं; सम्यक सम्बोधि प्राप्त सम्यक सम्बुद्ध हैं; मोह-विच्छेदनी विद्या और शील समाधि के आचरण में प्रतिष्ठित विद्याचरण संपन्न हैं; सुष्टु कायिक, वाचिक और चैतसिक गति वाले सुगत हैं, तथागत हैं; समग्र लोक और लोकोत्तर निर्वाण के जाननहार लोकज्ञ हैं; अद्वितीय हैं अतः अनुत्तर हैं; बिगड़े घोड़ों जैसे पथभ्रष्ट लोगों को ठीक रास्ते पर ले आने वाले कुशल सारथी हैं; देव और मनुष्यों के शिक्षक हैं, शास्ता हैं और राग, द्वेष तथा मोह को भग्न किये हुए बोधि प्राप्त बुद्ध भगवान हैं। उनके इन विशिष्ट सद्गुणों के कारण ही वह औरों से भिन्न हैं और प्रभूत लोक-मंगल के सृजक हैं। उनकी इस धर्मकाया की कल्याणी मेघमाला के अमृत वर्षण से सारा तिपिटक अभिसिंचित है। तिपिटक में भगवान की धर्मकाया से निकली पावन धर्म-गंगा का कल-कल निनाद है, मुक्ति प्रदायक अमृत-प्रवाह है। इसमें हमें पग-पग पर ऐसे धर्म का दर्शन होता है जो कि अच्छी प्रकार से समझाया हुआ, सुआख्यात है; जो हमें परोक्ष कल्पनाओं में न भरमा कर, प्रत्यक्ष, सांदृष्टिक सत्य का दर्शन कराता है। जिसके धारण करने से तत्काल सुफल मिलना आरंभ हो जाता है, इस 13 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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