Book Title: Digambar Jain Parshwanath Janmabhumi Mandir Bhelupur Varanasi ka Aetihasik Parichay Author(s): Satyendra Mohan Jain Publisher: Devadhidev Shree 1008 Parshwanath Manstambh Panch Kalyanak Mohatsav Samiti Bhelupur View full book textPage 5
________________ फिर बारी आई बाबा छेदीलाल की। उन्होंने भदेनी घाट पर उस स्थान पर जहाँ कि चरण बने थे एक मंदिर स्थापित करके १८६५ प्रतिष्ठा कराई ३ । एक मंदिर सारनाथ में बना जिसमें सन् १८२४ की पभोसा में प्रतिष्ठित काले पाषाण की प्रतिमा विराजमान है । सारनाथ से सांतवीं शताब्दी ई.. की निकली मूर्ति का चित्र, मुख्य पृष्ठ पर, जिसकी कायोत्सर्ग व ध्यान मुद्रा देखते बनती है। लगभग इसी समय मैौदागिन के प्रमुख चौराहे पर लाला बिहारी लाल जैन ने एक विशाल मंदिर व विशाल धर्मशाला अपनी पूरी सम्पत्ति लगा कर बनवा दी । सम्पत्ति के दान का अनोखा उदाहरण उन्होंने उपस्थित किया । एक भाट की गली में चैत्यालय स्थापित किया गया जो अनोखा था अपनी हीरे की बहुमूल्य मूर्ति के लिये, जो मूर्ति अपनी ख्याति के कारण बाद में चोरों द्वारा लूट ली गयी। इस चैत्यालय को आज तक सुरक्षित रखने वाले श्री संतोष कुमार जौहरी ने बताया कि यह चैत्यालय लगभग १०० वर्ष पूर्व स्थापित हुआ था। बहुत से जैन विद्यार्थी विद्या अध्ययन को बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय में आते थे। उनकी धर्म भावना को अक्षुण रखने हेतु श्री ज्योति राम बैजनाथ सरावगी ने कलकत्ता से आकर नरिया में भूमि क्रय की। मंदिर के लिये धन श्री सेठ स्वरूप चंद हुकुम चंद इन्दौर वालों से प्राप्त किया व स्वयं सरावगी जी ने महावीर स्वामी की विशाल मूर्ति स्थापित की । एक मंदिर खोजवा में नगर ग्राम जो वरूणा के किनारे था, जो अब वाराणसी शहर में आ गया है, से आये जैन परिवार ने स्थापित किया था जिसे श्री धर्म चन्द्र जैन ने इस शताब्दी के प्रारम्भ में पक्का कराया व बाद में समाज ने इस मंदिर का पुनः निर्माण दिनांक २६-८- ६४ में कराया । एक मन्दिर ग्वालदास साहू लेन, बुलानाला पर था जो समाज ने ई. सन् १६६३ में श्री के प्रधान मकसूदन दास की अध्यक्षता में व श्री विजय कृष्ण उपनाम खच्चूबाबू मंत्रित्व काल में पुनः निर्माण कराया। बुलानाला का यह मंदिर पंचायती मंदिर कहलाता है। उसमें से प्राप्त एक खंडित मूर्ति (चित्र २२ ) बनावट के आधार पर लगभग १० वीं शदी की है। ललिता घाट पर सड़क के किनारे एक मूर्ति वैष्णव मंदिर की दिवार में जड़ी है (चित्र २३ ) जो श्री गणेश प्रसाद जैन ने लेखक को दिखाई। इस मंदिर जिसका यह वर्णन है का पुनः निर्माण १६६० में बाबू ऋषभ दास की अध्यक्षता में तथा श्री खच्चू बाबू के प्रधान मंत्रित्व काल में हुआ । Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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