Book Title: Digambar Jain Parshwanath Janmabhumi Mandir Bhelupur Varanasi ka Aetihasik Parichay
Author(s): Satyendra Mohan Jain
Publisher: Devadhidev Shree 1008 Parshwanath Manstambh Panch Kalyanak Mohatsav Samiti Bhelupur

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Page 23
________________ अब तक के तथ्यों से यह स्पष्ट हुआ कि ईसा की चौथी शताब्दी में यहाँ एक मन्दिर निर्माण हुआ जिसमें दो वेदियाँ थीं एवं दो ही मूर्तियाँ थी एवं एक मानस्तम्भ था । यहाँ पर चन्दन व केशर घिसने का पत्थर ५० से. मी. व्यास का एवं एक चन्दन व केशर रखने का पत्थर का अर्धगेंदाकार वर्तन ३० से. मी. व्यास का उपलब्ध हुआ है, जिससे विदित होता है कि यह बहुमान्य मन्दिर था। काफी लोग दर्शन व पूजा हेतु यहाँ आते थे । . ४- एक और पद्मासन मूर्ति का धड़ है जो यहाँ से प्राप्त हुआ । यह चित्र १७ पर प्रदर्शित है । यह मूर्ति ३५ से. मी. चौड़ी है । चित्र १८ पर एक वेदी का शीर्ष का पत्थर दिखाया गया है जिसकी चौड़ाई ४७ सें.मी. है। प्रो.सागरमल ने इस मूर्ति को ६वीं शताब्दी का माना है यह वेदी व यह मूर्ति छठी शताब्दी में इस मन्दिर में बनाई गई होगी । । . ५- एक अभिलेख एक स्तम्भ के शीर्ष पर लिखा हुआ प्राप्त हुआ जो प्रो. सागरमल ने निम्न पढ़ा पंक्ति १-ॐ (महा) राजश्री भोजदेव मनि पंक्ति २-क पंक्ति ३-टूट श्री कच्छम्(वी?) - (लं?) कारित । इस भोजदेव को प्रो. साहब ने प्रतिहार वंशीय कन्यकुब्ज के राजा भोजदेव माना है, जिसका राज्य काल ईशा पूर्व वीं शताब्दी था। इसे उन्होंने मन्दिर का जीर्णोद्वार काल कहा। उपरोक्त विवरण से यह सही बैठता है। निर्माण के ५०० वर्ष बाद मन्दिर में बृहत जीर्णोद्वार की आवश्यकता पड़ी होगी । यह अवशेष भी शेष सब अवशेषों के साथ पुराने मन्दिर के दायें छोर की नीव से प्राप्त हुआ है । उपरोक्त से यह निष्कर्ष निकलता है कि यह लेख कुतुबुद्दीन ऐबक को ई. सन् ११६४ की तोड़-फोड़ से पहला होना चाहिए जो प्रो साहब के निर्णय के समर्थन में है । ६- एक खड्गासन मूर्ति भी प्राप्त हुई जो चित्र २० पर है । इस मूर्ति के लेख को प्रो. सागरमल के उपरोक्त लेख के बाद ई. सन् १६६६ में मेरे अनुरोध पर निम्न प्रकार पढ़ा है - पंक्ति १- जयपतिः अ- र - पंक्ति २- -----|----- Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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