Book Title: Digambar Jain Parshwanath Janmabhumi Mandir Bhelupur Varanasi ka Aetihasik Parichay
Author(s): Satyendra Mohan Jain
Publisher: Devadhidev Shree 1008 Parshwanath Manstambh Panch Kalyanak Mohatsav Samiti Bhelupur

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Page 26
________________ ११ में रखा गया व यहाँ के पुजारी के कहने पर इनका नाम बनारसी दास रखा गया " । उपरोक्त वर्णन से यह लगता है कि यह पार्श्व भेलूपुर के ही होगें। स्पष्ट है भेलूपुर मन्दिर १४६४ से १४६६ ई में टुटा व ई. १५६२ से पहले बनकर पुनः तैयार हुआ । हो सकता है यह मन्दिर अन्य हिन्दू मन्दिरों से पहले बन गया हो। इस मन्दिर का स्वरूप चित्र १ से ५ में दिखाया गया है । यही वह मन्दिर है जो वर्ष १९८६ ई. में तोड़ा गया । अबकी बार तोड़ने के बाद में एक यह विशाल मन्दिर निर्मित किया गया । भेलूपुर का दूसरा मन्दिर : भेलूपुर में इस मन्दिर के बराबर में दूसरा जैन मन्दिर मौजूद है जो शीघ्र ही तोड़ा जा रहा है, क्योंकि वहाँ विशाल श्वेताम्बर जैन मन्दिर बन गया है। उसकी वेदी का चित्र जो भारत के दिगम्बर जैन तीर्थ भाग १ से लिया गया ई. सन् १६७१ का चित्र २१ पर है । ई. सन् १६८८ के फैसले से पूर्व पिछले २०० वर्ष श्वेताम्बर दिगम्बर मुकदमे इन, दोनों मन्दिरों के सम्बन्ध में हो रहे थे। । कब व कैसे यह दूसरा मन्दिर बना इन मुकदमों के क्या बिन्दु थे , यह अलग से अध यन का विषय है। जिस मन्दिर का यह इतिहास है उसकी व्यस्था के स्वरूप के विषय में भी इन मुकदमों के अध्ययन से कुछ प्रमाण मिल सकेगा । स्तूप की सम्भावना : खुदाई में गोलाकार नीव, मध्य से चली हुई किरणों के समान नीवें अथवा चौखम्भा स्तूप की नीवें नहीं मिली है जिन्हें कहा जा सकता कि ये स्तूप की नीवें हैं । स्पष्ट है कि अगर स्तूप वहाँ था तो मन्दिर के प्रथम निर्माण से पूर्व उसकी नीवें हटा दी गयी। निम्न स्थितियाँ स्तूप की सम्भावना व्यक्त करती - . . १- पार्श्वनाथ का जन्म वीं शदी ईसा पूर्व में हुआ । उस समया स्मृति संजोने हेतु एवं स्थान को चिन्हित करने का साधन स्तूप बनाना ही था । २- षटखड़ागम् पुस्तक एक की प्रस्तावना में पंडित हीरालाल जैन ईन्द्रनंदी के श्रुतावतार का सन्दर्भ देते हुए कहा कि आचार्य अर्हद्वली ने एकत्व और अपनत्व भावना से धर्मवात्शलय एवं धर्म प्रभावना बढ़ाने हेतु भिन्न-भिन्न संघ स्थापित किये जिसमें एक पंचस्तूप संघ भी था १२ । नन्दी अमानाय की पट्टावली का संदर्भ देकर इस प्रस्तावना में अर्हद्वली के आचार्य पद ग्रहण का समय ई. के Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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