Book Title: Dhyan Sadhna Paddhati Author(s): Ratanmuni Publisher: Z_Lekhendrashekharvijayji_Abhinandan_Granth_012037.pdf View full book textPage 4
________________ ऑखों के व्यायाम से नेत्र-ज्योति बढ़ती है, छोटे-मोटे विकार दूर हो जाते हैं, दृष्टि संबंधी शिरा-धमनी-नसों में लचीलापन आने से रक्तसंचार निराबाध होता है, मोतियाबिन्दु जैसी बीमारियाँ नही होती, वृद्धावस्था तक नेत्रज्योति मन्द नही होती। नेत्रों का एक वस्तु पर टिके रहना और मन का उस वस्तु के रूप आदि से संयोजित रहना, ध्यान-साधना में परम सहायक है। आगमों में ध्यान के लिए स्थान-स्थान पर आता है - एगपोग्गल निविट्ठदिट्ठीए। (किसी भी एक पुद्गल-पौद्गलिक वस्तु पर निर्निमेष दृष्टि से लगातार अवलोकन करते रहना।) भगवान महावीर की ध्यान साधना के विषय में आचारांग में उल्लेख आता है - अदु पोरिसिं तिरियभित्तं, चक्खुमासन अंतसों झाई। (भगवान ने प्रहर-प्रहर तक तिरछी भित्ति पर आँख टिकाकर ध्यान किया।) इसीलिए मैंने आप से कहा कि किसी भी वस्तु को यथासंभव जितने समय तक आप अपलक दृष्टि से देख सकें, देखें और मन को उस वस्तु में संयोजित करें। यह बाह्य वस्तु का स्थूल ध्यान धीरे-धीरे सूक्ष्म रूप ग्रहण कर लेगा, आप अपने शरीरगत चैतन्य केन्द्रों पर ध्यान टिका सकेंगे, शरीर के अन्दर होती हुई क्रियाओं को देख सकेंगे और आत्म-साक्षात्कार करने में भी सक्षम हो सकेंगे। तो अब आइये, हम इसी ओर बढें। इन हाथ, पाँव, गरदन आदि के हल्के व्यायामों के बाद अपने शरीर की ओर दृष्टि डालें इसकी क्रियाओं को अनुशासित करने की विधि समझें। दूसरा चरण यह हमारी स्वानन्दानुभूति ध्यान साधना पद्धति का द्वितीय चरण है। इसमें हमें शरीर की क्रियाओं को नियंत्रित तथा अनुशासित करना है, क्योंकि इस शरीर (औदारिक शरीर - आपका-हमारा जैसा शरीर) से ही ध्यान साधना की जा सकती है और वह भी तब जब शरीर की क्रियाओं को हम साध लें। __ इस शरीर साधना की क्रिया को योग की भाषा में प्राणायाम कहा जाता है। प्राणायाम में दो शब्द हैं-प्राण+आयाम = प्राणों का अभ्यास-व्यायाम। प्राण श्वासोच्छ्वास को कहा जाता है। श्वासोच्छ्वास शरीर की सहज क्रिया है। प्रत्येक जीवित प्राणी श्वास लेता है और उच्छ्वास बाहर छोड़ता है। शरीर की सहज क्रिया को नियन्त्रित करना, अपनी इच्छा के अनुकूल चलाना ही प्राणायाम है। इसको मैं तीन खण्डों में आपको समझाऊँगा - १/दीर्घ श्वास। २/ सौम्य भस्त्रिका क्रिया। ३/ पूरक, कुम्भक, रेचक क्रिया। दीर्घ श्वास - श्वासोच्छवास जीवन का लक्षण है. प्राणीमात्र श्वासोच्छवास लेता है. यह शरीर की सहज क्रिया और है। किन्तु योग ध्यान साधना पद्धति में इसमे कुछ विशेषता लाई जाती है। दीर्घश्वास, वस्तुत: श्वासोच्छ्वास शुद्धि का उपाय है। सामान्यतया श्वास लेते समय हम कम ऑक्सीजन लेते हैं; जबकि दीर्घश्वास में ऑक्सीजन की मात्रा काफी खींच ली जाती है। और आप जानते ही हैं कि ऑक्सीजन हमारे रक्त को शुद्ध करती है। इस प्रकार दीर्घश्वास से शंका के विचित्र भूल से ही जीवन और जगत दोनों ही हलाहल हो जाते है। ३३१ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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