Book Title: Dhyan Sadhna Paddhati
Author(s): Ratanmuni
Publisher: Z_Lekhendrashekharvijayji_Abhinandan_Granth_012037.pdf

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Page 10
________________ इस चक्र का योग साधना में अत्यधिक महत्व है। इस चक्र को त्रिवेणी संगम भी कहा जाता है, क्योंकि इसी केन्द्र पर ईडा, पिंगला और सुषुम्ना तीनों नाड़ियों का संगम (मिलन) होता है इस चक्र के जागृत होने पर साधक को अन्य किसी से भी निर्देश लेने की आवश्यकता नही रहती, वह अपने सतत् अभ्यास से ही आगे बढ़ जाता है और सहस्त्रार चक्र को जागृत कर लेता है। (७) सहस्त्रार चक्र इस को शून्य चक्र और ज्ञान केन्द्र भी कहा जाता है। इसका स्थान कपाल में स्थित तालू में है यह स्थान समस्त शक्तियों का केन्द्र है। अतः इस चक्र के जागृत होते ही, साधक की समस्त शक्तियाँ उद्घाटित हो जाती है। उसकी शक्ति अतुल और तेज प्रचण्ड हो जाता है। - आधुनिक विज्ञान के अनुसार भी मस्तिष्क समस्त शारीरिक-मानसिक क्रियाओं का केन्द्र है। स्मृति, ज्ञान-शक्ति, क्रिया-शक्ति आदि सभी प्रकार के केन्द्र यहीं अवस्थित हैं। मस्तिष्क में ही निर्देशन कक्ष हैं, जहाँ से समस्त आवेगों, संवेगों, क्रियाओं-प्रतिक्रियाओं का नियंत्रण होता है और योग्य निर्देशन दिया जाता है। आधुनिक भाषा में मस्तिष्क एक पावर हाउस है, जहाँ से समस्त शरीर को उर्जा सप्लाई होती है नियंत्रक के रूप में यह हैड आफिस है जिसके निर्देशन में शरीर के अंगोपांग रूपी समस्त ब्रांच ओफिस कार्य करते है। अतः योग साधना की दृष्टि से भी इस केन्द्र का सर्वाधिक महत्व है। योग ग्रंथों में यहाँ सहस्त्रदल कमल अवस्थित माना गया है। सहस्वार का अभिप्राय ही है-हजार आरक आरकों को ही योग की भाषा में दल या पंखुड़ियाँ कहा गया है। इस केन्द्र में अवस्थित कमल अवर्ण माना गया है। यानी इस पर ध्यान केन्द्रित करते समय किसी भी वर्ण (रंग) की कल्पना नहीं की जाती है। नवपद की साधना में भी इस केन्द्र पर सिद्ध परमेष्ठी का ध्यान किया जाता है और सिद्ध भगवान अवर्ण हैं ही। इस केन्द्र पर ध्यान करके जब साधक इसे जागृत करता है तो प्रचण्ड तेज प्रकट होता है और इसका फल मुक्ति प्राप्ति है। तीर्थंकरों, आदि अलौकिक पुरुषों के सिर के पीछे चित्रों में जो प्रभामंडल दिखाया जाता है, वह इस चक्र से ही प्रस्फुटित तेज से निर्मित होता है। इस स्थान पर अवस्थित सहस्त्रदल कमल के प्रत्येक दल से एक-एक किरण निकलती है, इस प्रकार हजार किरणें प्रस्फुटित होती हैं इसीलिए योग-ग्रंथों में शास्त्रों में कहा गया है कि पूर्ण महापुरूषों का प्रभामंडल हजार किरणों वाला होता है। स्तोत्रों में भी भगवान तीर्थंकर के भाममण्डल। ( प्रभामण्डल) । के विषय में कहा गया है 'चन्देसु निम्मलयरा आइच्चेसु अहियं पयासयरा' भगवान का तेज सूर्य चन्द्र के प्रकाश से भी कोटि गुना अधिक निर्मल शुभ्र और प्रभास्वर होता है। इतना अवर्णनीय प्रभाव है सहस्त्रार चक्र का। इसके जाग्रत होते ही साधक पूर्णतया किष्काम, निष्पाप, ममत्व रहित, परमसमाधि में लीन, जीवन्मुख हो जाता है। यह मैंने आप लोगों को इन सातों चक्रों का स्वरूप और उनके जागृत होने पर प्राप्त उपलब्धियों के विषय में समझाया। अब मैं आपको इन चक्रों को जागृत करने की विधि का परिचय देना चाहता हूँ। Jain Education International संसारी और संसार त्यागी, दोनों का संरक्षण करने वाली यदि कोई संजीवनी है, तो वह है मात्र धर्म For Private & Personal Use Only ३३७ www.jainelibrary.org

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