Book Title: Dhyan Sadhna Paddhati
Author(s): Ratanmuni
Publisher: Z_Lekhendrashekharvijayji_Abhinandan_Granth_012037.pdf

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Page 12
________________ जान सकते हैं कि हमारा अमुक चक्र जागृत हुआ अथवा नहीं। इसकी पहचान के लिए निम्न सूत्र हैं - (१) चक्र पर प्राणों की सहज गति होना यानि आप आज्ञाचक्र जागृत करना चाहते हैं तो श्वास प्रक्रिया (आपके बिना प्रयास के सहजतया) ऐसी बन जाय कि आप जो श्वास द्वारा प्राणवायु ग्रहण कर रहे हैं, वह नाभि प्रदेश तक जाय, वहाँ कुछ क्षण के लिए रूके और ऊर्ध्वगामिनी बनकर आज्ञा चक्र तक पहुँचे, वहाँ कुछ क्षणों तक के लिए स्तम्भित हो और फिर उस वायु का नासापुट द्वारा रेचन हो, उच्छ्वास के रूप में बाहर निकल जाय। (२) ऐसा प्रतीत हो कि सुषुम्ना नाडी में और विशिष्ट रुप से उस चक्र में जिसे आप जागृत करने का अभ्यास कर रहे है, उस चक्र में चींटियाँ सी रेंग रही है अर्थात् स्पन्दनों की अनुभूति सतत् होती रहे। (३) जिस चक्र को आप जगा रहे है, उसमें स्पन्दनों की स्पष्ट अनुभूति के साथ प्रकाश भी दिखाई दे। जैसे-आज्ञा चक्र की साधना में जागृत होने पर आँखें बन्द करते ही शरत् चन्द्र की ज्योत्स्ना जैसा धवल दूधिया प्रकाश सभी और फैला हुआ दिखाई देने लगे, जैसे सभी वस्तुएँ दुग्ध धवल हो गई हैं। (४) वृत्तियों में अप्रत्याशित परिवर्तन परिलक्षित हो और हृदय में अपूर्व आनन्द की अनुभूति हो। उदाहरणार्थ-विशुद्धि चक्र पर ध्यान करने का फल कामना विजय है। तो आपकी इच्छाओं और कामनाओं की संसार की ओर रुचि थी उसमें इतना अधिक परिवर्तन आ जाये, आपकी रुचि उस ओर से इतनी अधिक हट जाए कि आप स्वयं ही आश्चर्यचकित रह जायें कि ऐसा परिवर्तन बिना किसी बाह्य कारण के कैसे हो गया? इसके अतिरिक्त बहुत से साधक यह प्रश्न भी पूछते हैं कि कोई भी चक्र कितने समय में जागृत हो जाता है। यानी चक्र जागृति की महीना, दो महीना, छह महीना, एक वर्ष, दो वर्ष आदि कितनी समय-सीमा हैं। इस विषय में मेरा अनुभव यह है कि चक्र जागृति की कोई समय-सीमा निश्चित नहीं की जा संकती। यह तो साधक के संकल्प बल पर आधारित है। दृढ संकल्पी साधक १०-१५ मिनट प्रतिदिन ध्यान करके किसी भी चक्र को तीन महीने में जागृत कर सकते हैं, जबकि शिथिल संकल्प वाले साधक वर्षों में भी सफल नहीं हो पाते। नोट-इस चक्र जागरण विधि, समय-सीमा आदि में मैंने सहस्त्रार चक्र (जो ब्रह्मरंध्र में अवस्थित है और ज्ञान केन्द्र भी कहा जाता है)। की जागरण विधि इसलिए नहीं बताई है कि यह योग की उच्च्तम सिद्धि है, दृश्य रुप में इससे प्रभामण्डल बनता है और साधक के अन्दर प्रचण्ड तेज उत्पन्न होता है तथा फल मुक्ति है। किन्तु आज के मानवों की शारीरिक क्षमता इतनी नहीं है कि वे उस प्रचण्ड तेज को सह सकें और मुक्ति प्राप्त कर सकें। शरीर स्थित चक्रो की पूरी जानकारी के बाद अब मैं चाहता हूँ कि आपको शरीर शिथिलीकरण के बारे में भी कुछ बता दूँ। तनाव मुक्ति - शरीर शिथिलीकरण कायोत्सर्ग का ही एक अंग है। इससे शारीरिक और मानसिक तनाव समाप्त होकर नई स्फूर्ति और ऊर्जा प्राप्त होती है, शरीर में हल्कापन आता है। सिर्फ शारिरीक लाभ ही अध्यात्म साधक का लक्ष्य नहीं होता, और इससे स्वानन्दानुभूति भी नहीं होती। इसलिए शरीर शिथिलीकरण के साथ व्युत्सर्जन का चिन्तन भी आवश्यक है। स्मृति के चित्र, मन की दुनिया है। मन की दुनिया स्पष्ट हुए बिना स्वच्छता आती ही नहीं हैं। ३३९ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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