Book Title: Dhyan Sadhna Paddhati Author(s): Ratanmuni Publisher: Z_Lekhendrashekharvijayji_Abhinandan_Granth_012037.pdf View full book textPage 7
________________ क्रिया करें। तीसरा चरण । आप प्राणायाम क्रिया को समझ चुके हैं, इसका अभ्यास भी हो गया है। अब मैं आपको तीसरे चरण की ओर ले चलना चाहता हूँ यह तीसरा चरण है कार्योत्सर्ग अथवा शवासन। मैंने कायोत्सर्ग को शवासन कहा हैं, इसमें एक रहस्य है, वह रहस्य योग और ध्यान साधना पद्धति से संबंधित है। शास्त्रों के अनुसार कायोत्सर्ग, एक तप है। यह खड़े होकर भी किया जा सकता है, बैठकर भी और शव के समान लेटकर भी । कायोत्सर्ग का शाब्दिक अर्थ है काया का उत्सर्ग त्याग करता क्योंकि काया का त्याग तो आत्महत्या है, जो सभी दृष्टियों तब कायोत्सर्ग का योग और ध्यान में अर्थ है काया के ममत्व का त्याग साथ ही काषायिक वृत्तियों का चिन्ताओं, उद्वेगों का त्याग जो शरीर, मन और आत्मा में तनाव उत्पन्न करती हैं, यानी मन-मस्तिष्क को तनावरहित करना कायोत्सर्ग है। - तनावरहितता को यदि विधेयात्मक रूप में कहें तो इसको सकते हैं और पूर्ण शिथिलता मानव को जीवित अवस्था में है इसीलिए मैंने यहाँ शवासन शब्द का प्रयोग किया है। शवासन का अभिप्राय है शव के समान निश्चेष्ट और शिथिल होकर लेट जाना। सिर्फ शरीर ही नहीं, मन, प्राण, आवेग, संवेग सभी शिथिल हो जावें, सम और शांत हो जायें। मन की शिथिलता का अभिप्राय है कि वह (मन) जो विषय कषायों की ओर दौड़ लगाता रहता है उसकी वह दौड़ कम हो जाय, वह शांत-उपशांत हो जाय। इसी प्रकार प्राण ( श्वासोच्छ्वास) की क्रिया जो प्रतिपल तीव्रगति से ( वैज्ञानिकों के मतानुसार ४ सैकण्ड में एक श्वासोच्छवास) हो रही है, उसकी भी गति कम निम्नतम सीमा तक कम हो जाय । लेकिन साधक काया का त्याग नहीं से निन्दित है। प्राण अथवा श्वासोच्छ्वास को शांत-उपशांत अथवा उसकी गति कम करना इसलिए आवश्यक है कि श्वोच्छ्रवास की तीव्र गति से शरीर में चंचलता अधिक होती है। यदि गति कम होगी तो शरीर के आन्तरिक भागों, नसा-जाल आदि में भी चंचलता कम होगी। और चंचलता जितनी कम होगी उतना ही काययोग स्थिर होगा। आप शवासन में वह भावना करिए - १ / शरीर शिथिल हो रहा है। २/ श्वास शिथिल हो रहा है। मन की भी दो अवस्थाएँ हैं- चंचल और स्थिर । प्राणशक्ति ( प्राणवायु ग्रहण करना, छोड़ना अथवा श्वासोच्छ्रवास) मन को भी चंचलता प्रदान करती है। इसीलिए कायोत्सर्ग अथवा योग की भाषा में शवासन में श्वासोच्छ्वास को सीमित करना अथवा शिथिल करना अति आवश्यक है। / ममत्व विसर्जन हो रहा है। ४ / मैं आत्मस्थ हो रहा हूँ। आप सोच रहे होंगे, मन तो अत्यधिक चंचल हैं, उसे शिथिल करना बहुत कठिन है लेकिन यह काम भावना से संभव है। ३३४ शिथिलता शब्द से व्यक्त कर शवासन में ही प्राप्त हो पाती Jain Education International संसार में प्रत्येक पुरुष के जीवन में आत्म निरीक्षण द्वारा सिद्धि के एक-दो अवसर मिलते है। For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
1 ... 5 6 7 8 9 10 11 12 13 14